भारत की जनता और किसान मजदूर विरोधी है यह बजट

मुनेश त्यागी

गोदी मीडिया और जेबी अखबारों में बजट को लेकर धूम मची हुई है जिसमें दिखाया जा रहा है कि सरकार मध्यम वर्ग को 12 लख रुपए तक टैक्स छूट देने जा रही है। इसके अलावा बजट में गरीबों, किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों, बेरोजगारी, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा पर हो रहे हमलों को लेकर कोई जिक्र नहीं है। भारत के मजदूर पिछले कई साल से 26000 न्यूनतम वेतन प्रति माह मांग रहे हैं। भारत के किसान को अपनी फसलों की एमएसपी की कोई गारंटी नहीं है। अपनी मांगों को लेकर पिछले कई सालों में 300 से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं। कई गन्ना मिलों द्वारा, किसानों के आंदोलन के बावजूद भी, छह छह महीने तक गन्ने का भुगतान नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा भारत में करोड़ों करोड़ों बुजुर्ग हैं, उनकी रोटी, निवास, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा को लेकर बजट में कोई चर्चा नहीं है।

आज हकीकत है कि भारत के 82 करोड़ लोगों की कोई आमदनी नहीं है, उनके पास खरीदने के लिए कोई पैसा नहीं है, उन्हें इस गरीबी से कैसे मुक्ति मिलेगी इस बजट में इस बारे में कोई चर्चा नहीं है। हमारे बाजार सामानों से भरे पड़े हैं, ये सामान बिक नहीं रहे हैं, लोगों के पास पैसा न होने के कारण बाजार में मांग नहीं है। सरकार ने इस मांग को बढ़ाने का कोई काम नहीं किया है। मजदूरी और रोजगार लगातार काम होते जा रहे हैं। 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता, उनसे नौ हजार रुपए में दस बारह घंटे काम करने को मजबूर किया जा रहा है। वे आधुनिक काल के आधुनिक गुलाम बन गए हैं।घटती मजदूरी की दर लगातार बढ़ रही है। बेरोजगारी को दूर करने के लिए सरकार ने कोई नीति पेश नहीं की है।

इसी के साथ-साथ सरकार सरकारी आमदनी में कटौती कर रही है, अमीरों पर टैक्स नहीं लगा रही है, अमीर वर्ग को मनमानी रियायतें दी जा रही हैं। सरकार मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं दे रही है, सरकारी सार्वजनिक परिवहन को नहीं बढ़ा रही है, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं दे रही है अमीरों को रियायती दे रही है। जनता को राहत देने वाले मुद्दों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा में कटौती की जा रही है।

सरकार भारत की जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं देने जा रही है, इसकी कोई योजना उसके पास नहीं है। हमारे देश में इस वक्त 5 करोड़ से भी ज्यादा मुकदमे लंबित हैं, मुकदमों के अनुपात में अदालतें नहीं हैं, मुकदमों के अनुपात में जज और सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। सरकारी निवेश की जगह निजी निवेश को बढ़ाया दिया जा रहा है। सरकारी शिक्षा और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को देने की कोई मंशा और योजना सरकार के पास नहीं है। बिजली का निजीकरण किया जा रहा है। बीमा क्षेत्र विदेशी लुटेरों के लिए खोल दिए गए हैं। यह अमीरों को और अमीर बनाने वाला बजट है।

यह जनता की सुख सुविधा बढ़ाने वाला बजट नहीं है। बजट में राज्यों के अधिकारों पर कटौती की जा रही है, उन्हें उनको मिलने वाला वाजिब पैसा नहीं दिया जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती, खाद्य पदार्थ, ग्रामीण विकास, समाज कल्याण, शहरी विकास जैसे सभी क्षेत्रों में कटौती की जा रही है। मुद्रास्फिति और महंगाई पर रोक लगाने की कोई नीति और योजना सरकार के पास नहीं है। गांव के गरीबों की जीवन रेखा मनरेगा के बजट में  वांछित बढ़ोतरी नहीं हुई है। 100 दिन के काम को अमली जामा पहनाने की कोई कार्यवाही बजट में नहीं है।

किसानों की जीवनदायनी एमएसपी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के कल्याण में कोई रुचि या रूपरेखा बजट में नहीं है। उनके बजट में 13000 करोड़ से ज्यादा रुपए की कटौती कर ली गई है। बच्चों के कल्याण की कोई योजना बजट में नहीं है भीख मांगते बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो को कोई राहत नहीं दी गई है। बेरोजगारी और गरीबी को खत्म करने और काम करने की कोई योजना बजट में नहीं है। आमिर से और अमीर होते जा रहे अमीरों पर कोई टैक्स नहीं लगाया गया है।

12 लाख तक की आमदनी पर कोई टैक्स नहीं पर, मध्यवर्ग की वाहवाही लूटी जा रही है। पर क्या उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलू खानपीन के मामले में लगातार बढ़ रही महंगाई से कोई राहत मिलेगी? यह बजट भारतीय जनता, गरीबों, बेरोजगारों, बीमारों, बुजुर्गों, किसानों और मजदूरों के साथ खुला विश्वास घात और धोखा है। इस बजट में आम जनता की सुरक्षा के लिए क्या किया गया है? इसमें आम जनता को क्या मिला, इस पर कोई चर्चा नहीं है। बीमा क्षेत्र में विदेशी धनपतियों को 100% एफडीआई की छूट देना सरकारी और निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों पर बहुत बड़ा हमला है और यह विदेशी धनपतियों को और धन देने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।

जनता से जुड़े मुद्दों के बजट में लगातार कटौती की जा रही है। इन कटौतियों का विवरण इस प्रकार है,,,, महंगाई टैक्स छूट के परिणाम को जीरो कर रही है। उत्पादन बढ़ोतरी पर कोई कार्य योजना नहीं है। जीडीपी व्यय घटकर 2024-25 के 14.6% से घटकर 2025-26 में 14.2 रह गया है। पिछले बजट में किये गये वायदे के अनुसार 1 लाख करोड रुपए कम खर्च किए गए। बजटीय आंकड़ों में 22000 करोड़ की कटौती की गई। खाद्यान्न की बजट में 2.03लाख करोड़ की कटौती की गई। खेती में 10992 करोड़ रुपए कम खर्च किए गए। एलपीजी सब्सिडी में 2700 करोड़ की कटौती कर ली गई।बच्चों के कल्याण में कटौती की गई। जेंडर बजट को कम कर दिया गया है। किसानों और मजदूरों के कल्याण के लिए बजट में कोई इजाफा नहीं किया गया है।

ऋण का बढ़ता फंदा जनता की कमर तोड़ने वाला ही साबित होने जा रहा है। सरकार 15 लाख करोड़ लोन रुपए लेने जा रही है। महंगाई पर रोक लगाने की कोई रूपरेखा और कार्यक्रम बजट में नहीं है। इसे कहते हैं एक हाथ से देना और दूसरे हाथ से ले लेना। बजट में भारत के करोड़ करोड़ बुजुर्गों को दवा, भोजन, बुढापा पैंशन और सामाजिक सुरक्षा की कोई योजना नहीं है। यह बजट अमीरों का, अमीरों द्वारा और अमीरों को लिए बजट है। इस बजट का जन समस्याओं को दूर करने और जनकल्याणकारी मुद्दों से कुछ लेना देना नहीं है। सच में यह बजट भारत की जनता, किसानों, मजदूरों, गरीबों और बेरोजगारों के साथ जघन्यतम विश्वासघात और धोखा है। इसे उन्हें कोई राहत नहीं मिलने जा रही है।