नफरत
ओमप्रकाश तिवारी
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उनकी नापसंदगी
मालूम नहीं कब
नफरत में बदल गई
घात लगाकर बैठ गया
प्रतिशोध की आग में
झुलसते हुए
मौका पाकर किया
जोरदार प्रहार
असहाय चीख
गूंज गई शहर के शोर में
उसके रक्त रंजित हाथ
उठ गए प्रार्थना में
माफ करना भगवान
पसंद नहीं था
इसलिए मार डाला
उसे बड़ा सुकून मिला
यकीन कर लिया कि
ईश्वर ने उसे माफ कर दिया
सुकून के साथ गया
नदी के किनारे
रक्त से सने हाथ
जैसे ही किया सरिता के हवाले
समूचा पानी लाल हो गया
हतप्रभ वह करता रहा इंतजार
कई सदियों बाद भी
उस नदी का पानी रक्तरंजित है
और वह उसके किनारे
कर रहा है इंतजार
पानी के निर्मल होने का।