नूर मोहम्मद नूर की ग़ज़ल – जीते जी मर जाना देख

जीते जी मर जाना देख

नूर   मोहम्मद नूर

रह रह कर डर जाना देख
जीते जी मर जाना देख

बयाबान, सहरा जंगल
ले मेरा घर जाना देख

ग़म क्या यूँ उड़ जायेंगें
चिड़ियों का उड़ जाना देख

खारों को भी फूलों का
बागों मे महकाना देख

पहले उसने ज़ख्म दिए
अब उसका मुस्काना देख

ग़ज़लों की तलवारों से
मेरा सर कटवाना देख

वक़्त नया, अब आएगा
ले उसका धमकाना देख
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ख़ूब उलझूंगा जिंदगानी से
आग पैदा करूंगा पानी से

इनसे कब रस्मोराह थे मेरे
हुस्न से इश्क़ से जवानी से
बेज़मीरी की दास्ताँ जिसमें
ख़ूब वाकिफ हूँ उस कहानी से

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