ज्योति वर्मा की कविता

नर नारी 

ज्योति वर्मा

 

नर नहीं नर केवल,

नारी नहीं नारी केवल।

फिर क्यों बने,

एक दूजे पर भारी,

क्यों लाएं जीवन में लाचारी?

नर पिता है, नारी माँ है,

नर भाई है, नारी बहना है।

नर पति है, नारी संगिनी,

दोनों से ही सजे जीवन की रागिनी।

घर-संसार की गाड़ी,

दो पहियों से चलती है।

जहां सम्मान हो दोनों का,

वहीं समृद्धि पलती है।

नर-नारी के बिना अधूरी सृष्टि,

मिलकर गढ़ते हैं जीवन की वृष्टि।

भेदभाव का अंत करें,

समानता से जीवन के रंग भरें।

नर-नारी, सृष्टि के आधार,

समानता में है जीवन का सार।

साथ चलें, हाथ बढ़ाएं,

मानवता का दीप जलाएं।

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