मसूरी सबसे शानदार महाराजा कपूरथला की राजसी कोठी, जो अब वीरान है

आज हम आपको पहाड़ों की रानी मसूरी की यात्रा  पर लिए चलते हैं। अरे नहीं, मैं नहीं गया था मसूरी, संजय श्रीवास्तव गए थे। संजय जी यात्रा करते रहते हैं। इनकी खूबसूरती यह है कि यह कहीं जाते हैं तो वहां का इतिहास, भूगोल, समाज शास्त्र, विज्ञान सभी तथ्य ढूंढ निकालते हैं। उनकी यह जिज्ञासु प्रवृत्ति हमें अपनी विरासत से जोड़ देती है। संजय श्रीवास्तव के बारे में बस इतना ही कहना है कि वह पेशे से पत्रकार हैं और दृष्टि बहुत पैनी है। उनकी भाषा कमाल की है।  पिछले कई सालों से शौकिया तौर पर कागज़ों पर चित्रकारी कर रहे हैं लेकिन देखकर लगता है कि उनका वही पेशा है। फिलहाल आप उनके साथ मसूरी का भ्रमण कीजिए वहां की इमारतों से परिचित होइए। संजय जी के बारे में कभी अलग से चर्चा करेंगे। संपादक 

मसूरी सबसे शानदार महाराजा कपूरथला की राजसी कोठी, जो अब वीरान है

संजय श्रीवास्तव

मसूरी में एक बहुत फेमस जगह है जार्ज एवरेस्ट व्यू, जहां उन जॉर्ज एवरेस्ट का खूबसूरत एस्टेट है, जिनके नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट है, जिन्होंने एक सर्वेयर के तौर पर पूरे देश को नापाजोखा. मसूरी में जब लाइब्रेरी चौक से उस ओर बढ़ते हैं तो मुश्किल से 500 मीटर ही आगे बढ़ते ही पेड़ों की झुरमुट के बीच से एक शानदार कोठी नजर आती है. जिसे एक जमाने में और शायद आज भी मसूरी की सबसे शानदार कोठी कहा जाता है. लेकिन उजाड़, बेरंग और खंडहर.

इसके लोहे के जंग खाते शानदार गेट पर जाले लगे हुए हैं. दीवारों के प्लस्तर उखड़ गए हैं. लोहे की चैन से लिपटा हुआ जंग लगा ताला. आसपास मिट्टी और पत्तों के ढेर, इस गेट से अंदर हवेली की ओर जाते रास्ते पर सन्नाटे में हैं. लगता नहीं कि इस गेट को लंबे समय से खोला गया होगा. इस गेट पर एक ओर संगमरमर की चौकोर बड़ी पट्टिका पर लिखा है एचएच द महाराजा ऑफ पटियाला. ये भी धूमिल सा पड़ रहा है. गेट पर पीले रंग का बोर्ड जिस पर डॉग की चेतावनी है.

थोड़ा और आगे बढ़ते ही दूसरा गेट है, जिस पर कपूरथला राजघराने का प्रतीक चिन्ह है. यहां भी डॉग की चेतावनी. यहां से ये पूरी लंबी चौड़ी भव्य कोठी पूरी नजर आती है. इसे चेट्यू कपूरथला हाउस. अंदर दो कारें सफेद रंग की कारे खड़ी हैं, जिनपर उत्तराखंड की नंबर प्लेट है. थोड़ी दूर पर दो गार्ड आते जाते नजर आ जा रहे हैं.

दो मंजिला मैरून कलर की ये दो मंजिला आलीशान इमारत जब बनी. तो हर कोई इसे देख मुग्ध रह जाता था. इसके चारों कोनों पर गोलाकार स्तंभ और शीर्ष पर मीनारें हैं. ये पैलेस फ्रेंच वास्तुकला का गजब का नमूना् है. ये वही आलीशान पैलेस था, जिसके बारे में दीवान जरमनी दास ने बहुत लिखा है. यहां आलीशान पार्टियां होती थीं, शराब बहती थी. महिलाएं चहकतीं थीं. देशी राजा-महाराजा और रानियां और गोरी मैम पार्टियों की जान होते थे. अंग्रेज अफसर इन पार्टियों में जाना शान समझते थे. फुल मस्ती वाली पार्टियां होती थीं. अब इस महल का ये हाल. टूटती हुई चारदीवारी, जंग खाए गेट, उदास इमारत…आखिर क्यों हो गया इसका ये हाल.. तस्वीरों में इस शानदार भवन और उसका हाल देख ही सकते हैं.

मसूरी के लाइब्रेरी बिल्डिंग में 100 साल से ज्यादा पुराने डिपार्टमेंटल स्टोरी एफ नाथ जी एंड कंपनी की मालकिन 70 वर्षीय विनोद जैन बताती हैं, इस बिल्डिंग का बुरा हाल है. वारिस इसकी देखरेख नहीं करते. इस पैलेस की पुरानी शानोशौकत खो गई है. वह बताती हैं कि जब महाराजा जगतजीत सिंह मसूरी आकर चेट्यू हाउस में ठहरते थे. तो मसूरी में उसकी चर्चाएं होने लगती थीं. हमारी दुकान में उनका एक जगतजीत सिंह महाराज के नाम से खुला था, उसमें वहां जाने वाले सामान को दर्ज कर लिया जाता था. बाद में वहां से पैसा आ जाया करता था.

आइए अब जानते हैं कि मसूरी में ये सबसे बेहतरीन इमारत कैसे बनी. अब कौन इसका वारिस है. जब अंग्रेजों ने राजघरानों को शिमला में बसने से हतोत्साहित किया तो वो मसूरी की ओर उमड़ पड़े. यहां कई राजघरानों की कोठियां और पैलेस बनने लगे. ये जगह उन्हें बहुत उम्दा लगी. शुद्ध साफ हवा और सुंदरता का संगम. यह जगह शिमला की गहमागहमी की तुलना में ज़्यादा ‘शांत’ थी. हिमालय की इस पहली तलहटी में बसने वालों में पटियाला, राजपीपला, नाभा, पन्ना, बड़ौदा और जींद के शासक शामिल थे. उन्हें इस जगह से प्यार हो गया. बाद में यहां रामपुर, टिकारी, कूच बिहार, पालनपुर, कसमंडा, चे और इंदौर के भूतपूर्व शासक आए.

कपूरथला के राजघराने ने यहां एक अंग्रेज से सेंट हेलेन नाम का 22 एकड़ का एस्टेट 1895 में खरीदा. तब ये जगह पहाड़ी थी. उसे समतल किया गया. फ्रांससी वास्तुकार चेट्यु को खासतौर पर इसको बनाने का जिम्मा सौंपा गया. देश – विदेश से इसको बनाने के लिए सामान आए. चार बुर्जों के साथ हिमालय की हवा को चीरते हुए एक परी-कथा महल खड़ा हो गया.

महाराजा जगजीत सिंह ने लिखा, ‘मैं अपने नए महल में सबसे अधिक आरामदायक महसूस करता हूं, जो शानदार दिखता है.’ इसमें राजसी पंखों वाले शेरों की एक जोड़ी की प्रतिमाएं, कई फव्वारे, शास्त्रीय देवियों की मूर्तियां और विशाल टेनिस कोर्ट हैं. यहीं पर महाराजा ने हिल स्टेशन के उच्च समाज की मेजबानी करते थे. ये वो जगह थी जहां जहां हर सप्ताह गर्मियों के मौसम में फैंसी ड्रेस बॉल, रात्रिभोज और गार्डन पार्टियां आयोजित की जाती थीं, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी, अंग्रेज महिलाएं और अन्य राजपरिवार के लोग शामिल होते थे.

टेबल शराब में भीगी होती थीं और बहुत सारे खाने से चरमराती थीं. वो दौर इस महल का उल्लास और मौज-मस्ती का दौर था. यहां की मौजमस्ती के बारे में दीवान जरमनी दास ने अपनी किताब महाराजा में इतना कुछ लिखा कि पूछिए. हाल के दिनों में मसूरी में रहने वाले लेखक गणेश सेली ने इसके बारे में काफी कुछ लिखा.

आजादी से पहले महाराजा जब यहां आते थे तो अपने इस आरामगाह में दोस्तों और ब्रिटिश राज के लोगों के साथ पूरी महफिल जमाया करते थे. महाराजा के अनुशासन के बारे में कहा जाता था कि चाहे कुछ भी हो रहा हो, वे रात 11 बजे अपने मेहमानों से दूर हो जाते थे.

ये वही महाराजा थे जिन्होंने ब्रिटेन की डांसर स्टेला मुडगे के प्रेम में पड़कर उसे तीसरी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. हालांकि आजादी के बाद स्थितियां बदल गईं. महाराजा मई 1949 में यहां अकेले अपने पोते के साथ आए.

अब इस कोठी के वारिस ब्रिगेडियर सुखजीत सिंह बताए जाते हैं. उन्होंने भारतीय सेना में लंबे समय तक सेवा की और 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्धों में भाग लिया. हाल के बरसो में “कपूरथला पैलेस” या “विला चेट्यू” की स्थिति और भविष्य को लेकर कई चर्चाएँ हुईं. कुछ सालों पहले इसे एक हेरिटेज होटल में बदलने की योजना थी, लेकिन परियोजना अब तक पूरी नहीं हुई. 2010 के दशक में खबरें आई कि इसे लग्जरी होटल में तब्दील किया जाएगा, जैसा कि कपूरथला पैलेस (जगतजीत पैलेस) के साथ हुआ. लेकिन ऐसा भी नहीं हो पाया. विरासत संरक्षण नियमों, अनुमतियों और फंडिंग के मुद्दों के कारण यह योजना अटकी हुई है. हवेली अभी भी खंडहर होने की कगार पर है और इसके रखरखाव की कमी के कारण इसकी स्थिति दयनीय होती जा रही है. हवेली के चौकीदार से बातचीत पर पता लगा कि इस पैलेस के वारिस कभी कभी आते हैं. पिछले हिस्से में ठहरते हैं. आपको ये बता दें कि आजादी से पहले जो चंद रियासतें थी, जहां सच में भव्यता का बोलबाला था, वो बेहद समृद्ध कपूरथला थी, जिसके राजाओं के ठाट-बाट निराले ही थे. मसूरी के ज्यादातर लोगों को अब कोठी के बारे में कोई जानकारी नहीं. पर्यटक तो खैर क्या ही जानेंगे. (अभी ऐसी और भी कहानियां हैं, ऐसे ही एक पैलेस में मैने रात में डिनर किया) #

संजय श्रीवास्तव