गीत
वहां आवाज उठाना लाजिम है
मुनेश त्यागी
जहां बेटियां पेट में मरती हों
जहां दुल्हन दहेज में जलती हों
जहां मौत जान से सस्ती हो
जहां नफरत दिलों में बसती हो
वहां आवाज उठाना वाजिब है
वहां आवाज उठाना लाजिम है।
जहां इंसाफ रुपयों में बिकता हो
जहां दुल्हा टकों में बिकता हो
जहां मजदूर मिलों में पिलता हो
जहां किसान सडक पे पिटता हो
वहां आवाज उठाना वाजिब है
वहां आवाज उठाना लाजिम है।
जहां जुल्मों सितम का शासन हो
जहां घोर बदमनी का आलम हो
जहां कालाबाजारी का राशन हो
जहां कानून विरोधी शासन हो
वहां आवाज उठाना वाजिब है
वहां आवाज उठाना लाज़िम है।
जहां नेता दलाली खाते हों
जहां अपराधी मौज उड़ाते हों
जहां अधिकारी ऐश में रहते हों
जहां लोग जुलम को सहते हों
वहां आवाज उठाना वाजिब है
वहां आवाज उठाना लाजिम है।
जब बदलाव की इच्छा छा जाए
जब बहार चमन में छा जाये
जब जनता जोश में आ जाए
जब इंकलाब की चाहत भा जाए
तब आवाज उठाना वाजिब है
तब आवाज उठाना लाजिम है।
