मुनेश त्यागी का गीत- बोला हिंदुस्तान रे

 

 

गीत

बोला हिंदुस्तान रे

 मुनेश त्यागी

 

जननी रोये, पत्नी रोये, रोये सारा गांव रे, 

अमीर देश को लूट के खायें,मौन रहे सरकार रे।

सिर कटे, गोली लगे है, कोई ना रोकथाम रे 

एक के बदले दस ना आये, रोये हिंदुस्तान रे।

ममता रोये, समता रोये, रोये मजूर किसान रे, 

खेती खा रही अन्नदाता को, रोये हिंदुस्तान रे। 

हिंदू लडते-मुसलमां लडते,लडता सारा गांव रे, 

गंगा-जमनी तहजीब है रोये, रोये हिंदुस्तान रे।

नोटबंदी से रिश्ते टूटे, चला गया सम्मान रे, 

नोट की खातिर जान गई रे, रोये हिंदुस्तान रे।

किसान-मजूर के बेटे मरते, दीखे ना उपचार रे, 

शीश कटे सरहद पर मिलते, रोये हिंदुस्तान रे।

कहां गए वो कस्में-वादे, बोल रे जुमलेबाज रे, 

बता रे छप्पन इंची सीने, पूछे हिंदुस्तान रे।

नारे खोजे, वादे खोजे, ढूंढे सारे बाजार रे, 

कोई बताये इनका ठिकाना, पूछे हिंदुस्तान रे।

मारे भी है रोने ना दे, आफत में है जान रे, 

नफरत फैली गांव शहर में, रोये हिंदुस्तान रे। 

बेटी, बेटा, बहुएं भी रोयें, मिला नही रूजगार रे

काम ढूंढते थक गए यारों, थक गया हिंदुस्तान रे।

शिक्षा स्वास्थ्य बिकते देखे, बेहाल हुआ इंसान रे 

महंगाई ने कमर तोड़ दी, गूंगी हुई सरकार रे।

मुकदमों के अंबार लगे हैं मिला ना जन को न्याय रे

जनतंत्र हुआ अमीरों का, उनकी ही हुई सरकार रे।

जातपांत के झगड़े छोड़ो, मिलाओ अपनी आवाज रे 

मेहनतकशों एक हो जाओ, बनाओ अपनी सरकार रे।

माता पत्नी बहना कह रही, कहे मजूर किसान रे 

रहजनों का राज बदल दो, अब बोला हिंदुस्तान रे।