कविता
गर्मी
ओमप्रकाश तिवारी
आधी रात में काम से लौटते समय
एक जगह ख़ुद ब ख़ुद धीमी हो गई मोटरसाइकिल
शानदार चौड़ी सड़क के किनारे
पेड़ के चबूतरे पर सोया था कोई बेसुध
तापमान अब भी 35 डिग्री सेल्सियस के करीब था
इतनी गर्मी में इस तरह कैसे सो सकता है कोई ?
लेकिन वह अकेला नहीं था
सड़क के किनारे पेड़ के हर चबूतरे पर
सोए पड़े थे दो-चार लोग
आठ-दस हाथ रिक्शा भी खड़े थे
उन पर भी सोए थे लोग
कुछ ज़मीन पर सोये पड़े थे
कौन हैं ये लोग?
कहां से आए हैं?
देखा उसने सिर उठाकर सड़क के किनारे
सिर उठाये खड़ी खूबसूरत इमारत को
बीस मंजिला इमारतों में बसी है पूरी बस्ती
बाहर की सभी खिड़कियां बंद हैं
शायद अंदर चल रहा हो एसी
सड़क को देखा जो कुछ दूर जाकर
अंधेरे में विलीन सी हो गई थी
लगभग सुनसान थी इस समय
सड़क के एक तरफ़ से वाहन जाते हैं
दूसरी तरफ़ से आते हैं
दोनों सड़कों के बीच में ग्रीन बेल्ट
पेड़ हैं और पौधे भी
पूजा स्थल-इबादादगाह भी है
दिन का शोर इस समय
शांति में तब्दील हो गया है
वह घर आया
कपड़ा उतारते समय पंखे को देखा
तेजी से घूम रही थीं उसकी पंखुड़ियां
खाना खाकर बंद कर दी रोशनी
कुछ देर टहलता रहा कमरे में ही
बिस्तर पर लेटा और सो गया बेसुध
आज़ उसे गर्मी ने बिल्कुल भी परेशान नहीं किया…