आज दुनिया भर में वैलेंटाइन डे यानी स्वाभाविक प्यार का दिवस मनाया जा रहा है। पति, पत्नी, दोस्त, मां, बहन, महबूबा सभी अपने अपने वैलेंटाइन यानी महबूब, महबूबा और मित्रों से प्यार का इजहार कर रहे हैं। कल हमने सोचा की प्यार की इस जरूरी स्वाभाविक प्रवृत्ति पर कुछ लिखना चाहिए। कल सारे दिन और मध्य रात्रि तक इस कविता को लिखता रहा, इसमें जोड़ता और घटाता रहा। सोचते सोचते यह सुंदर रचना बन गई, जो आपके सामने है।
स्वाभाविक प्यार की इस सुंदर अभिव्यक्ति से हम आपको अवगत करा रहे हैं। वैलेंटाइन डे का मतलब सिर्फ अपने महबूब या महबूबा से ही प्यार करना नहीं होता है बल्कि दुनिया में जो भी सुंदर है, अच्छा है, भला है और सर्व कल्याण की बात करता है, उससे प्यार करना हम सबकी जरूरत है और प्यार की ऐसी भावना को आज के मानवता विरोधी माहौल में आगे आगे बढ़ाने की जरूरत है। हमें उस सभी से प्यार करना सिखना होगा जो मानवीय मूल्यों को आगे बढ़ता है।आप की खिदमत में पेश है यह सुंदर सी रचना,,,
आओ हम सब प्यार करें
मुनेश त्यागी
प्यार आदमी की स्वाभाविक प्रवृत्ति है
आदमी प्यार बिना नहीं रह सकता है
प्यार करना उसकी बुनियादी जरूरत है
आओ हम सब प्यार करें।
चार्वाक, अशोक और गौतम से
रविदास, नानक और कबीर से
जफर, लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे से
आओ हम सब प्यार करें।
विवेकानंद, बिस्मिल और अशफाक से
भगत, आजाद, राजगुरु और सुखदेव से
सुभाष, गांधी, नेहरू और अंबेडकर से
आओ हम सब प्यार करें।
संविधान और कानून के शासन से
संप्रभुता, धर्मनिरपेक्षता और आजादी से
जनवाद, गणतंत्र और समाजवाद से
आओ हम भी प्यार करें।
समता, समानता और आजादी से
भारत की एकता और अखंडता से
साझी संस्कृति, न्याय और भाईचारे से
आओ हम सब प्यार करें।
नदियों, पहाड़ों और जमीनों से
जल, जंगल और वायु से
बादल, प्रकृति और जलवायु से
आओ हम सब प्यार करें।
मां , बहन बहु और बेटी से
पिता, पुत्र, भतीजों और भाई से
कामरेडों, दोस्तों और महबूबा से
आओ हम सब प्यार करें।
किसानों और मजदूरों से
सारे मेहनतकश इंसानों से
इंकलाबियत की सोच से
आओ हम सब प्यार करें।