भारतीय शिक्षा अवैज्ञानिकता और भगवाकरण के भंवर में
मुनेश त्यागी
अभी कुछ दिन पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कोलिज में “गोबर अनुष्ठान” का आयोजन किया गया। इसमें कॉलेज की प्रधानाचार्य डॉक्टर प्रत्यूषा वसाला ने कुछ कक्षाओं में दीवारों पर गोबर पुतवाया और इसमें खुद भी हाथ बंटाया और इसे प्राचीन तथा आज की प्रासांगिक टेक्नोलॉजी बताया। प्रधानाचार्य का मानना है कि दीवारों पर गोबर लगाने से कमरे ठंडे रहते हैं। जैसे को तैसा की कहावत से प्रभावित होकर, दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डुसु) के अध्यक्ष और कुछ विद्यार्थियों ने इस प्रधानाचार्य के कार्यालय के कमरे की दीवारों को गोबर से सजा दिया। छात्रों का कहना था कि इस ज्ञान गंगा के विशेष लाभ से प्रधानाचार्य क्यों महरूम रहे, इसका सबसे पहले लाभ उन्हीं को मिलना चाहिए।
नई शिक्षा नीति 2020 में जो बदलाव किए गए हैं वे संस्कृतिकरण और भारतीयकरण के नाम पर किए गए हैं। जब इन बदलावों पर गौर से विचार करते हैं तो हम पाते हैं कि यह सब आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक सोच और संस्कृति पर भयानक हमला है। शिक्षा पर इस सांप्रदायिक हमले की आड़ में पहले मुगल इतिहास, फ्रांसीसी क्रांति, डार्विन के विकासवादी सिध्दांतों और लोकतांत्रिक आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण और जरूरी विषयों को हटा दिया गया, और अब शिक्षा के क्षेत्र से लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को पाठ्यक्रमों और आपसी विमर्श से बाहर किया जा रहा है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इनके बारे में जान ही न सके। ध्यान रहे कि इस तरह के तमाम आधुनिक विषय छात्रों को प्रगतिशील, क्रांतिकारी, समाजवादी, तार्किक और धर्मनिरपेक्ष बनाने की ताकत प्रदान करते हैं।
आज पूरा देश आश्चर्य के साथ देख रहा है कि शिक्षा से तर्क और विवेक को गायब करके, इसे भी आस्था का विषय बनाए जाने का अभियान जारी है। अब छात्रों को आस्था की ओर धकेला जा रहा है अब उन्हें प्रयोगशालाओं से हटाकर यज्ञशालाओं, गुरुकुलों और आश्रमों में भेजने का अभियान चलाया जा रहा है। शिक्षा का बजट लगातार घटाया जा रहा है। सरकारी स्कूल बंद किये जा रहे हैं। स्कूलों और कॉलेजों में पर्याप्त संख्या में निपुण शिक्षक नहीं हैं। छात्रों की संख्या के अनुपात में शिक्षक नहीं हैं। स्कूलों को बंद किया जा रहा है। शिक्षा को मुनाफाखोरी का जरिया बना दिया गया है। शिक्षा को अंधविश्वासों का माध्यम बनाया जा रहा है। वहां से ज्ञान, विज्ञान, तर्क और विवेक पर हमला किया जा रहा है और जैसे देश की समस्त गरीबों को शिक्षा से दूर ही किया जा रहा है। सबको शिक्षा, सबको काम, की मांग करने वालों, शिक्षा को ज्ञान, विज्ञान, तर्क और विवेक का कारगर माध्यम बनाने की मांग करने वाले विद्यार्थियों और शिक्षकों को देशद्रोही, देश विरोधी, वामपंथी, टुकड़े-टुकड़े गैंग के तमगों से सजाया और नवाजा जा रहा है।
अब अधिकांश शिक्षण संस्थानों में हिंदुत्व आदि संघ की मानसिकता के लोगों को शिक्षकों, कर्मचारियों और अधिकारियों के रूप में नियुक्त किया जा रहा है। अधिकांश शिक्षण संस्थाएं प्रतिक्रियावाद और अंधविश्वासों को बढ़ावा देने के केंद्र बन गए हैं। यहीं पर ध्यान देने की सबसे ज्यादा ज़रूरत है कि ज्ञान, विज्ञान, तर्क और विवेक की चेतना विहीन शिक्षा व्यवस्था किसी भी समाज का विकास नहीं, बल्कि उसे अनपढ़, निरक्षर, अज्ञानी, अंधविश्वासी और अंधभक्त ही बना सकती है। मनुवादी ताकतें तो यही चाहती हैं कि हमारे समाज का बड़ा हिस्सा आधुनिक शिक्षा प्रणाली, ज्ञान, विज्ञान, तर्क और विवेक से दूर रहे और वह गरीब, अशिक्षित, वंचित और पिछड़ा ही बना रहें, और वे अपने अधिकारों की मांग और संघर्ष न करें, बस वे गोबर, मूत्र, वेद, पुराण का ही गुंजन करते रहें और आधुनिक विकास और शिक्षा से सदा सदा के लिए दूर और वंचित हो जाएं।
शिक्षा पर मनुवादी हमलों को देखकर यही उचित होगा कि शिक्षा से नफरत करने वाली तमाम मनुवादी ताकतें ज्ञान, विज्ञान और आधुनिक तकनीक द्वारा उपलब्ध कराए गए समस्त वैज्ञानिक उपलब्धियां और तकनीक जैसे पैन, किताब, रेल, कार, बस, फोन, आधुनिक मोबाइल, बिजली, पंखे, एसी, कुर्सी, मेज, सड़क, रेलवे लाइन, हस्पताल, दवाइयां आधुनिक गांवों और शहरों को छोड़कर जंगलों में चले जाएं, वही रहें और वे आधुनिक ज्ञान विज्ञान और तकनीक की सब उपलब्धियों का तत्काल त्याग कर दें और जंगलों में जाकर, जंगलों का मजा लें।
यहां पर यह ध्यान देना भी जरूरी है कि ये तमाम अंधविश्वासी, धर्मांध, कर्मकांडी और अंधविश्वासों को बढ़ावा देने वाली मनुवादी ताकतें आधुनिक ज्ञान विज्ञान, विवेक और तर्क का इस्तेमाल करके अपनी अंधविश्वासी पुरानी और जंगली सोच को जनता के ऊपर ठोपना चाहती हैं, गरीबों को शिक्षा से दूर कर देना चाहती हैं ताकि हमारे देश में आजादी से पहले का माहौल काम हो जाए। यहीं पर यह भी जरूरी है कि शिक्षा में इस तरह के अंधविश्वास फैलाने वाले प्रधानाचार्यों और शिक्षकों के खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए और उन्हें तुरंत उनके पद से बर्खास्त कर देना चाहिए और अंधविश्वास फैलाने के आरोप में उन पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसे लोग को शिक्षक नही, बल्कि अंधविश्वास फैलाने वाले साम्प्रदायिक अपराधी हैं। शिक्षा के नाम पर ऐसे धब्बों को तुरंत जेलों के अंदर बंद कर देना चाहिए।
शिक्षा पर हो रहे इन हमलों से बचने के लिए देश की तमाम प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, जनवादी और वामपंथी ताकतों को एकजुट होकर, सीधी साधी जनता और छात्रों को मनुवादी ताकतों द्वारा फैलाई जा रही शिक्षा की अवैज्ञानिक और भगवाकरण की मुहिम से बचना होगा और उन्हें इनके बहकावे में आने से बचना होगा। यही इस वक्त की सबसे बड़ी मांग है।
लेखक – मुनेश त्यागी