पटरीआकी मटरीमाकी: 3
बलभद्दर इन वंडरलैंड
अजय शुक्ल
सुरंग अंततः एक विशाल बगीचे में जाकर खुली। वहां सुबह हो रही थी। बड़े बड़े दरख़्त हवा के मद्धम झोंकों में झूम रहे थे। हवा में इत्र सा घुला हुआ था।
कुछ बूढ़ी और अधेड़ औरतें शरीर को तंदुरुस्त बनाए रखने के उपक्रम में जुटी थीं। कोई जॉग कर रही थी तो कोई ब्रिस्क वॉक तो कोई योगा। लेकिन मर्द एक भी नहीं । बलभद्दर को आश्चर्य हुआ।
वह अब थका हुआ महसूस कर रहा था। नींद भी आ रही थी। एक बोतल दारू और रात भर का जागरण अब भारी हो रहा था। वह बहुत धीमे धीमे चल प रहा था। लेकिन पब से उसके साथ आई युवती आगे निकल गई थी। उसने आवाज़ लगाई, “ज़रा सुनो, देवी जी..मैं चल नहीं पा रहा…ज़रा रुको तो”
आवाज़ सुनकर युवती ने पीछे मुड़कर देखा। मुस्कराई। फिर खिलखिलाई। मगर रुकी नहीं। उलटे रफ़्तार बढ़ा दी।
बलभद्दर को उसे दौड़ कर रोकना पड़ा। हांफ़ते हांफ़ते बोला, “देवी जी, यहां तक लाई हो…. साथ तो न छोड़ो।”
“न बाबू न। हमारा साथ यहीं तक था। मुझसे तो रामकली ने कहा था सो मैं यहां तक ले आई।”
“रामकली ने?” वह कांप उठा।
“हंजी, तुम्हारी अपनी रामकली ने।” वह रहस्यमय ढंग से मुस्कुराई।
“क्या कहा था?”
“कहा था कि मेरे बल्लू को जन्नत में छोड़ देना। बस छोड़ने को कहा था। न कि सैर कराने को।” इतना कहकर वह आगे चल दी।
बलभद्दर ने हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया। “यह जन्नत है?….क्या मैं मर चुका हूं!” उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
“नहीं, तुम अभी मरे नहीं हो।” वह मुस्कुराई, “मर्द अभी मरे नहीं हैं। मर ज़रूर रहे हैं। तिल तिल कर। जब तुम्हारी बच्ची गर्भ में मार दी जाती है, तुम थोड़ा सा मर जाते हो। जब तुम अपनी बहू को जलाते हो तब भी थोड़ा सा मर जाते हो। जब तुम किसी का बलात्कार करते हो, तब भी मर जाते हो।”
“मगर मैंने तो ऐसा कभी नहीं किया…” वह बिसूरते हुए बोला।
“क्षुद्र बुद्धि बलभद्दर! तूने न किया होगा, मगर है तो मर्द ही। सब तेरी जानकारी में तो होता है। अब भुगतना तो पड़ेगा ही।”
“ठीक है, भुगत लूंगा…” शीतल, सुगंधित पवन झकोरों ने उसे कुछ चैतन्य कर दिया था। उसे अच्छा महसूस हो रहा था। कामनाएं जागने लगी थीं। उसने चारों ओर नज़र दौड़ाईं और बोला, “इस जन्नत में लैवेंडर, हिना, संदल, बेला आदि तो खूब ग़मक रहा है लेकिन इन खुशबुओं को लगाने वाली कहां हैं?”
“क्यों, हैं तो ये जॉगिंग, वॉकिंग करती महिलाएं। इन्हीं का पसीना ही तो महक रहा है।”
“तुम औरतें मर्द का मन नहीं समझतीं। बताओ तुम कहती हो यह जन्नत है। जन्नत ऐसी होती है?”
“फिर कैसी होती है?”
“जन्नत बूढ़ी औरतों से नहीं बनती।”
“फिर किससे बनती है? तुम लोग तो बूढ़ी मां के कदमों में जन्नत पा लेते हो!”
“देखो देवी जी, बात को घुमाओ नहीं। जन्नत यानी स्वर्ग में हूरें होती हैं। कुंवारी। अप्सराएं होती हैं। वो क्या नाम हैं रंभा, उर्वशी, मेनका…भले ही मैं बुद्धू लगता होऊं लेकिन दीनधर्म के प्रवचन खूब सुने हैं।”
बलभद्दर की बात सुन युवती ठहाका मार कर हंस पड़ी। देर तक हंसती रही। फिर बोली, “इस जन्नत में कुंवारी हूरें नहीं, छोरे मिलते हैं। वह भी घंटों के रेट से। सरकार देती है किराए पर।” वह फिर हंसने लगी।
“हद है! कितना पापमय है यह स्वर्ग!! आदमी को कोठे पर बिठा दिया!!!”
“कोठे पर नहीं, स्टड फार्म में।”
“यह क्या होता है?” बलभद्दर ने यह शब्द ही नहीं सुना था
“हॉर्स ब्रीडिंग सुना है?”
“गुड। इस स्टड फार्म में उन्नत नस्ल की स्त्रियां और पुरुष ब्रीड किए जाते हैं। थॉरो ब्रेड।”
“यह कैसी जन्नत है?…जहां आदमी को पेशा करना पड़ता हो।”
“यह वो जन्नत नहीं, जो मरने के बाद मिलती है। यह 500 साल बाद वाली भविष्य की दुनिया है जहां मैं तुमको ले आई हूं। उस दुनिया में आज की तारीख है 19 अप्रैल 2025 और आज यहां की तारीख है 19 अप्रैल 2525…इसी भविष्य की दुनिया को हम औरतें जन्नत कहती हैं।”
इतना कह कर युवती फिर भाग पड़ी। बलभद्दर पीछे दौड़ पड़ा।
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अगली किस्त में हम वर्ष 2525 की दुनिया को एक्सप्लोर करेंगे। तब तक आप स्टड फार्म के जीवन की कल्पना करें। न कर पाएं तो गूगल करे।
लेखक -अजय शुक्ल