नाम में क्या रखा है

अजय शुक्ला पेशे से तो पत्रकार रहे लेकिन जबरदस्त किस्सागो हैं। भाषा पर अद्भुत पकड़ है। महाकुम्भ के दौरान वह प्रयागराज में थे तो उसको उन्होंने अलग नजरिए से देखा। कानपुर के रहने वाले हैं और कानपुरियों की बतकही का अलग अंदाज ही होता है। वहां के निवासियों की बातचीत भी रस घोलती है। नाम में क्या रखा है पढ़कर आपको अजय जी के लेखन का अंदाज हो जाएगा कि किस तरह से जटिल मुद्दों को आसान और रोचक तरीके से पेश करते हैं। 

बेतुकी बातें: 3:  नाम में क्या रखा है

अजय शुक्ला

झम्मन और सिरम्मन में आज सुबह झगड़ा हो गया। और फैसला कराने के लिए वे मेरे ग़रीबख़ाने आ गए।

मैंने मेज़ पर चाय रखवा दी। सिरम्मन सुड़कने लगा। लेकिन झम्मन ने चाय इग्नोर कर दी और आंखों को लाल लाल करके चीखा, “इस दो कौड़ी के आदमी ने मुझे गाली दी है!”

“मा बहन की?” मैंने आश्चर्य जताते हुए पूछा।

“उससे भी बुरी…” झम्मन सुबकने लगा।

एमसी बीसी से बुरी गाली! मुझे उत्सुकता होने लगी, “आखिर क्या गाली दी?”

“इसने मुझे जुम्मन कहा!”

अपनी हंसी को बमुश्किल रोकते हुए मैंने कहा, “यह भला कैसी गाली है! झम्मन और जुम्मन एक ही जैसे नाम हैं। फिर, प्रेमचंद ने तो जुम्मन शेख को अमर बना दिया है।”

“ज़्यादा साहित्यिक ज्ञान मत पेलिए। मेरे गांव में जुम्मन का नाम गाली है। यह बात सिरम्मन भी जानता है।”

“मगर कोई नाम गाली कैसे हो सकता है? मैंने पूछा।

सिरम्मन ने झम्मन को जवाब देने का मौका नहीं दिया। मुस्कराते हुए बोला, “हमारे गांव में जुम्मन नाम का एक हज्जाम था। एक बार उसने ज़मींदार साहब की हजामत बनाते हुए उस्तरे से गला काट दिया था।”

“तो उससे क्या!” मैंने अचरज जताते हुए कहा,”इस मामले से झम्मन का क्या रिश्ता?

“भाई, कल शाम मैं घर के पीछे मुर्ग़ा काट रहा था।” इस बार झम्मन बोला, “गर्दन अलग ही की थी कि यह ख़बीस आ गया और बोला, ” वाह भई, सर धड़ से जुदा! जुम्मन मियां ज़िंदाबाद!”

मैं सीरियस हो गया। “झम्मन” मैंने पूछा, “क्या तुम मुसलमान हो?

मेरी बात पर झम्मन हत्थे से उखड़ गया, “आपसे मतलब! और, मान लो कि मुसलमान हूं। तो क्या आप मुझको औरंगज़ेब कह देंगे?”

“नहीं तो। वैसे औरंगज़ेब तो बहुत अच्छा कश्मीरी लड़का था” मैंने कहा, “बड़ा देशभक्त था…”

“अरे रेरेरे!” सिरम्मन ने मुझे बोलने न दिया, “होली की भांग अब तक चढ़ी है क्या, पत्रकार जी…मैं तो आपको पढ़ा लिखा मानता था। औरंगज़ेब यानी बुतशिकन बादशाह, हमारे शिवाजी और गुरु गोबिंद सिंह जी का दुश्मन।”

“हां, वह भी था। मैंने कहा, “उसका असली नाम अबुल मुज्जफर मुहिउद्दीन मोहम्मद था। आलमगीर और औरंगज़ेब जैसे नाम तो उसने खुद धारण कर रखे थे। वैसे ही जैसे आज कल कई लोग खुद को गुरु, स्वामी, 1008 श्री कहने लगते हैं।”

“अपना नाम उसने औरंगज़ेब क्यों रखा” झम्मन ने पूछा।

“पहले अर्थ समझ लो, “मैंने कहा, “औरंग का अर्थ होता है सिंहासन। और ज़ेब माने होता है शोभा। यानी वह शख्स जिसके बैठने से सिंहासन की शोभा बढ़े। समझे?”

“थोड़ा थोड़ा।”

“अरे भाई, जैसे तंज़ेब यानी वह कपड़ा जो तन की शोभा बढ़ाए। जैसे पाज़ेब जो पांव की शोभा बढ़ाए। एक लफ्ज़ बदज़ेब भी है यानी बदसूरत”

“अब समझे” सिरम्मन ने कहा।

“क्या ख़ाक समझे। यह भी समझो कि जहर का नाम अमृत कर देने से जहर अमृत नहीं हो जाता। अबुल मुज्जफर मुहिउद्दीन मोहम्मद औरंगज़ेब नाम रखने के बाद भी सबसे रद्दी मुगलों में गिना जाता है।”

मेरी बात पर दोनों सर हिलाने लगे। मेरा प्रवचन जारी रहा, “अब बताओ मुगलों में असली औरंगज़ेब कौन था जिसने सिंहासन की शोभा बढ़ाई?”

“अकबर” दोनों एक साथ बोले, “उसे तो इतिहासकारों ने भी अशोक की तरह महानता की पदवी दी।”

“बिलकुल सही” मैंने कहा, ” अकबर ही नहीं। देश में अनेक राजा हुए हैं जिन्हें औरंगज़ेब कहा जा सकता है, जिनके बैठने से सिंहासन धन्य हुआ। नाम बताओगे?”

दोनों ने शिवाजी, चंद्रगुप्त, रणजीत सिंह आदि कई नाम बताए। नेहरू के बाद मैंने उन्हें रोक दिया। वे बड़ा गुस्साए। किसी तरह देशभक्त औरंगज़ेब की कहानी सुनाकर किसी तरह शांत किया। आप भी सुनिए:

देशभक्त औरंगज़ेब एक कश्मीरी युवक था। वतन के लिए जान देने का जज्बा था। सो फौज में भर्ती हो गया था। आतंकवादियों ने जून 2018 में उसे उस वक्त अगवा कर लिया था जब वह छुट्टी लेकर ईद मनाने घर जा रहा था। आतंकियों ने उसे तड़पा तड़पा कर मार डाला था लेकिन उसने सेना का कोई राज़ नहीं बताया था। औरंगज़ेब की मौत के बाद उसके दो भाई तारिक और शब्बीर भी सेना में भर्ती हो गए थे।

तो भइया झम्मनो और सिरम्मनो, नाम में कुछ नहीं रखा। शेक्सपीयर कह भी गए हैं

What’s in a name? That which we call a rose/ By any other name would smell as sweet

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सलग्न फोटो राइफलमैन औरंगज़ेब की है।