गांधीजी 1930 के नमक सत्याग्रह के दौरान अपने पोते कनुभाई गांधी के साथ।
मुनेश त्यागी
गांधी की हत्यारों ने सोचा था कि वे गांधी की हत्या करके उनके विचारों की भी हत्या कर देंगे मगर वे अपने साजिशी मिशन में बिल्कुल पूरी तरह से असफल साबित हुए। महात्मा गांधी की निर्मम हत्या के बाद भी गांधी हमारे देश के बहुत बड़े नेता और बहुत बड़ी हस्ती बने हुए हैं। गजब की बात है कि गांधीजी की शारीरिक हत्या की गई थी, मगर वैचारिक रूप से गांधी आज भी इस देश की सबसे बड़ी शख्सियत बने हुए हैं। गांधीजी का अपने जीवन में मानना था कि लक्ष्य प्राप्ति का साधन भी पवित्र होना चाहिये, साध्य और साधन की पवित्रता बनी रहनी चाहिए, उद्देश्य और साधन की एकरूपता खत्म ना हो। उन्होंने अन्याय और शोषणकारी सत्ता के खिलाफ जनता को निडर बनाया।
गांधी की इसी विचारधारा की बदौलत यूएनओ ने बापू के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया था। मगर अफसोस की बात है कि गांधी को इतना बड़ा दर्जा दिए जाने के बाद भी गांधी की हत्यारी विचारधारा आज भी जिंदा है। यह रोज हिंदू मुस्लिम भाईचारे की हत्या कर रही है, भारत की मिली जुली सभ्यता और साझी संस्कृति को रोज मार रही है। यह आज भी लगातार ज्ञान विज्ञान की संस्कृति की हत्या कर रही है। इसने ग्राहम स्टेंस के निर्दोष बच्चों को, दाभोलकर, पंसारे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश और अखलाक की हत्या की है और उसकी हत्यारी मुहिम आज भी जारी है।
मोहनदास करमचंद गांधी भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और नेताओं में एक प्रमुख स्थान रखते हैं। गांधी जी ने दुनिया भर में अपनी मौजूदगी दर्ज करायी है। उनके अधिकांश विचार कमाल के थे और उनकी उपयोगिता आज भी कायम है। गांधी जी ने भारत के लोगों को अपनी आजादी के लिए, लिखना पढ़ना बोलना और संघर्ष करना सिखाया, आजादी के लिए लड़ाई के मैदान में उतरना सिखाया और अपना सब कुछ कुर्बान करके देश की आजादी की अलख जगाई थी।
गांधीजी की दृढ मान्यता थी कि “मेरे साथ रहने वालों को फर्श पर सोना होगा, साधारण कपडे पहनने होंगे, सुबह उठना होगा, साधारण खाने पर जिंदा रहना होगा और अपना टॉयलेट खुद साफ करना होगा।” उनका मानना था कि “हमारा प्रत्येक क्षण मानव सेवा में खर्च होना चाहिए।” हमने अपने जीवन में गांधी जी से बहुत कुछ सीखा है, उनके विचारों को माना हैं और अपने जीवन में ढाला है। मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मेरा परिवार भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल था और मेरे दादाजी महाशय सागर सिंह और मेरे दो ताऊजी ओमप्रकाश त्यागी उर्फ “कानूनी” और प्रणाम सिंह त्यागी अपने पिताजी के साथ 1942 के “करो या मरो” और “अंग्रेजों भारत छोड़ो” आंदोलन में मेरठ जेल में बंद थे। बस उनका एक ही जुर्म था कि वे भारत भूमि को अंग्रेजों की गुलामी और जुल्म की बेड़ियों से मुक्त करना चाहते थे।
गांधी के मंत्र कमाल के थे। वे आज भी उतने ही प्रासंगिक और कारगर बने हुए हैं जैसे अहिंसा, सविनय अवज्ञा, सत्याग्रह, भूख-हड़ताल और असहयोग। उनके द्वारा विकसित हथियार कमाल के हैं जैसे हडताल, बहिष्कार, भूख हड़ताल, सविनय बगावत, असहयोग, करो या मरो, का प्रयोग। भारत की जनता ने, अपनी जायज मांगों को मनवाने के लिए, अपने विभिन्न आंदोलनों में इन अमूल्य हथियारों का प्रयोग किया है और वे आज भी उनका फायदा उठा रहे हैं, उनका इस्तेमाल कर रहे हैं।
गांधी जी को “महात्मा” की उपाधि ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर ने दी थी और उनको भिखारी के वेष में महान आत्मा बताया था। भारत की जनता को “गांधी की देन” भी काफी हैं। खुले खेतों में शौच की जगह टॉयलेट के हामी थे, स्वास्थ्य, सफाई, शिक्षा, हिंदु मुस्लिम एकता पर अमल के हामी थे गांधी जी। चर्चिल ने गांधी जी को आधा नंगा फकीर कहा था और आहवान किया था कि गांधी और उसके वाद को कुचल दो।
बापू अपने जीवन में 2,338 दिन जेलों में रहे. 249 दिन दक्षिणी अफ्रीका में और 2,089 दिन भारत की जेलों में बिताये। उनका कहना था कि अपने प्यार का मरहम घावों पर लगाओ। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बापू ने 6 हफ्तों तक मौन व्रत धारण किया था।
माउंटबैटन ने गांधी जी के बारे में कहा था कि “हमने उसे जेल भेजा, हमने उसका अपमान किया, हमने उससे नफरत की, हमने उसे हिकारत की नजरों से देखा और हमने उसे अनदेखा किया।” मगर गांधी तो गांधी थे, वे अपने आदर्शों से कभी भी विचलित नही हुए। उन्होंने अपने तमाम जीवन अंग्रेजों की गुलामी की मुखालफत की और भारत की आजादी की लड़ाई को जारी रखा और अंत में भारत के लाखों स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों के साथ, भारत को 1947 में आजाद कराकर ही दम लिया।
गांधी जी का मानना था कि आवश्यक चीजों और जरूरतों का न्यायपूर्ण वितरण होना चाहिए, सामाजिक और आर्थिक असमानता, नफ़रत और हिंसा पैदा करती है। उनका अपने राजनैतिक शिष्यों को कहना था कि सत्ता से सावधान रहो, सत्ता भ्रष्ट कर देती है। याद रखना कि तुम गांव के गरीबों की सेवा करने के लिए सत्ता में हो। यह बात अलग है कि नेहरू के बाद गांधी के चेलों ने उनकी सीख पर ध्यान नहीं दिया और वे इस देश के चंद पूंजीपतियों के साम्राज्य को बढ़ाने में ही लगे रहे।
गांधी ने अपने जीवन में 16 बार भूख हडतालें की थीं। गांधी हिंदु मुस्लिम एकता के सच्चे समर्थक थे। गांधी जी के देखकर भाईचारे और मुहब्बत की लहरें चलती थीं। उनका मानना था कि “आपसी हिंसा और नफरत किसी समस्या का समाधान नही कर सकते हैं। हम सभी हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई भारत माता के असली बेटे बेटियां हैं।”
बापू महिला समानता के सबसे बड़े पैरोकार थे।उनका कहना था कि जब तक मानवता का पचास प्रतिशत हिस्सा यानि औरतें आजाद नही होतीं, तब तक भारत आजाद नही हो सकता। उनका मानना था कि बिना श्रम की रोटी चोरी की रोटी है। गांधी जी शोषण को सबसे बड़ी हिंसा मानते थे। सत्य, अहिंसा, सदाचार, प्रेम और भाईचारा उनके सिध्दांत थे। वे कहते थे कि “हम अलग अलग रह सकते हैं मगर हम एक ही वृक्ष की टहनी और पत्तियां हैं।”
गांधी जी हमारे देश के बहुत बडे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। 30 जनवरी 1948 को सायं 5 बजकर 17 मिनट पर एक हिंदुत्ववादी साम्प्रदायिक हत्यारे नाथूराम गोडसे ने, अपने गुरु सावरकर द्वारा रची गई साजिश के तहत, प्रार्थना के लिए जाते हुए निहत्थे शांतिदूत और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी यानि बापू यानि राष्ट्रपिता की बेदर्दी से हत्या कर डाली। गांधी की इस हत्या की साजिश हिंदुत्व की हत्यारी विचारधारा के संस्थापक सावरकर ने रची थी। इस बात का पूरा खुलासा 1971 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस जीवनलाल कपूर कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि “गांधी की हत्या की साजिश सावरकर ने रची थी।”
गांधी जी एक ऐसे भारत के ख्वाब देखते थे कि जहां न कोई गरीब हो, न कोई अमीर हो, सब तरह की हिंसा का खात्मा हो, सब जगह आजादी की बयार बहे, सबको रोटी कपडा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जावे, प्राकृतिक संसाधनों पर सबका अधिकार हो और इनका प्रयोग सारे भारतीयों के विकास और समृद्धि के लिए किया जाये।
भारतीयता और हिंदुस्तानियत बापू के अंदर कूट कूट कर भरी हुई थी। वे कहते थे कि “आजाद भारत में हिंदुओं का नही, हिंदुस्तानियों का राज्य होगा, हिंदू मुस्लिम एकता से ही सच्चा स्वराज्य आयेगा, हम सब हिंदू मुस्लिम नही, भारतीय यानि हिंदुस्तानी हैं, मैं अपने खून की कीमत पर भी हिंदू मुस्लिम एकता की रक्षा करूंगा, मैं हिंदू नही हिंदुस्तानी हूं। ”
सच में यह गांधी के सपनों का हिंदुस्तान नही है। यहां जातिवाद, साम्प्रदायिकता, छल कपट और झूठ, भाई भतीजावाद, बेईमानी, भ्रष्टाचार, खुदगर्जी शोषण, अन्याय, भेदभाव और गैरबराबरी, आर्थिक असमानता, हिंदू मुस्लिम नफ़रत व धर्मांधताओं और अंधविश्वासों की विकृतियां उग आयी हैं और वर्तमान सरकार द्वारा यहां के अधिकांश लोगों को इन सबका गुलाम बनाया जा रहा है और आज फिर जिसकी लाठी उसकी भैंस, वाली मानसिकता सिर उठा रही है। आदमी के बीच दूरियां बढी हैं। यह देश बनाते बनाते और बिगड़ता जा रहा है।
गांधी राजनीति में धर्म का इस्तेमाल करने के विरोधी थे। वे धर्मनिरपेक्षता के सबसे बड़े हामी थे। वे एक धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे, मगर वे कहीं से भी साम्प्रदायिक नही थे। वे साम्प्रदायिकता के सबसे बड़े विरोधी थे। वे अपनी सारी जिंदगी भारत की आजादी की लड़ाई लड़ते रहे, हिंदू मुस्लिम एकता की लड़ाई भी लड़ते रहे। वे किसी भी कीमत पर हिंदू मुस्लिम एकता को बनाए रखने के सबसे बड़े हामी थे। उन्होंने कभी भी हिंदुत्ववादी या मुस्लिम फिरकापरस्तों की देश को टुकड़े-टुकड़े करने वाली विचारधारा में विश्वास नहीं किया और इसका अपनी पूरी जिंदगी विरोध किया था।
हालांकि गांधी के दर्शन से पूरी पूरी सहमत नही हुआ जा सकता। वे सनातन धर्म और वर्णों के बने रहने में विश्वास करते थे। वे दुनिया के आधुनिकतम विचारों के प्रतिनिधि नही थे। वे सारे भारतीयों का कल्याण तो चाहते थे, मगर यह कल्याण कैसे होगा यह रास्ता उनके पास नहीं था। गांधी जी समाजवादी व्यवस्था और विचारधारा में विश्वास नही रखते थे। वे समाजवाद को “लाल तबाही” कहा करते थे। वे पूंजिपतियों को भारत के तमाम धन दौलत का “ट्रस्टी” मानते थे। और आज देखिए कि इन ट्रस्टियों ने भारत की जनता की क्या दुर्गति कर दी है। आज इन ट्रस्टियों का भारत की जनता, किसानों, मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं और छात्रों के कल्याण और उत्थान में कोई भी विश्वास नहीं है। वे सिर्फ और सिर्फ अपना लुटेरा साम्राज्य बढ़ा रहे हैं और उनकी पूरी की पूरी शोषक सत्ता और वर्तमान सरकार भी इसी काम में लगी हुई है।
फिर भी गांधी एक महान आत्मा थे। उनकी कथनी और करनी में लगभग कोई फ़र्क नही था, जो कहते, वही करते थे। उन्होंने अपने व्यक्तित्व से देश और दुनिया के करोडों लोगों को प्रभावित किया था। वे आज भी एक अमर व्यक्तित्व के मालिक बने हुए हैं। आज भी पूरी दुनिया उन्हें अहिंसा का पुजारी समझती है। दुनिया के बहुत सारे नेता जैसे नेल्सन मंडेला उनसे बहुत प्रभावित थे।
वर्तमान समय में हमारी सरकार और उसके संगठन, गांधी की विचारधारा पर हमले कर रहे हैं, उनकी प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। गांधी को गालियां दी जा रही हैं, गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमा मंडन किया जा रहा है। गांधी के समावेशी चिंतन पर हमला जारी है। ये सब हमलावर हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक विचारधारा के लोग हैं और वे भारत के संविधान, जनतंत्र, गणतंत्र, आजादी, साझी संस्कृति और अल्पसंख्यकों पर हमले कर रहे हैं। इनके हमलावर तेवरों से हमारे देश की एकता और अखंडता को गंभीर खतरे पैदा हो गए हैं, समाज की हिंदू मुस्लिम एकता को बहुत बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
ऐसे विपरीत हालात में, हमें गांधी की विचारधारा को बचाना है, जनता के सामने उनकी प्रासंगिकता को स्पष्ट करना है, साबित करना है और हमें जनता को बताना होगा कि इस देश की रक्षा, इस देश के किसानों, मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं, आजादी, गणतंत्र, जनतंत्र, संविधान, धर्मनिरपेक्षता की रक्षा, गांधी की विचारधारा और उनके मूल्यों से ही की जा सकती है, गोडसे और मनुवादी हिंदुत्ववादी सांप्रदायिकता के विचारों से नही।
ऐसे में तमाम प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और जनवादी लेखकों, गायकों, कवियों, कहानीकारों, निबंधकारों, साहित्यकारों, मीडियाकर्मियों और सांस्कृतिकर्मियों का दायित्व और बढ़ जाता है। उन्हें गांधी के विचारों की प्रासंगिकता को बचाव के अभियान में अग्रणी भूमिका निभानी पड़ेगी और देश के शत्रुओं का करारा जवाब देना पड़ेगा। देश के विमर्श को जनवादी, धर्मनिरपेक्ष, गणतांत्रिक, समाजवादी, बहुलतावादी, सर्व समावेशी और सर्वकल्याणकारी बनाना पड़ेगा। यही महात्मा गांधी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हम तो यहां पर यही कहेंगे…
गांधी के हत्यारे ना
हमारे ना तुम्हारे,
गांधी हम शर्मिंदा हैं
तेरे कातिल जिंदा हैं।