करिवा सांड़ ने जिप्पी काका को मारा
ओमप्रकाश तिवारी
गर्मी के दिन थे। दोपहर का समय था।
जिप्पी काका घर से खेत में जा रहे थे।
बाग के रास्ते में नुकीली सींग वाला करिवा सांड़ खड़ा था। जिप्पी काका को आते देख उसने पहले पूंछ तरेरी। इसके बाद तिरछी नजर से देखा। आगे के दोनों पैरों से जमीन को खुरचा। मिट्टी दूर जाकर गिरी। देखकर ही लग रहा था कि उसका इरादा ठीक नहीं है, लेकिन जिप्पी काका बेपरवाह थे। स्वाभाव में वह भी करिवा सांड़ से कम नहीं हैं। अविवाहित होने की वजह से कई बार लोग उन्हें सांड़ कह भी देते हैं।
उन्होंने करिवा सांड को जोर से डांटा। लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। इस पर जिप्पी काका ठिठक गए। पास ही एक लकड़ी का डंडा मिल गया। उन्होंने उसे दिखाकर करिवा सांड को डांटा। इस बार करिवा सांड रास्ते से बगल हो गया।
जिप्पी काका उसके पीछे से आगे बढ़ने की कोशिश करने लगे। इसी बीच वह तेजी से पलटा और जिप्पी काका को सींग पर उठा लिया। पलक झपकते ही जोर से फेंक दिया। जिप्पी काका पास ही खड़े महुए की पेड़ की जड़ पर जा गिरे।
विजयी हुंकार भरता करिवा सांड सामने की बंसवारी में चला गया। आजकल यही उसका ठिकाना था।
करिवा सांड को जिप्पी काका को उठाकर फेंकते घर वालों ने देख लिया था।
घर पर आदमी कोई नहीं था। जिप्पी काका के बड़े भैया हैं, जो 75 की उम्र पार कर रहे हैं। हार्ट के मरीज हैं। चलने-फिरने में ज्यादा समर्थ नहीं हैं। उनकी पत्नी यानी जिप्पी काका की भाभी हैं। कख के बड़े भैया की पत्नी और एक भतीजी हैं।
कख की भाभी और भतीजी ने जाकर जिप्पी काका को उठाया।
सांस चलती देख दोनों की जान में जान आई। उन्होंने तो यही समझा था कि काका आज गए। करिवा ने उन्हें मार ही डाला।
उठाकर घर लाए गए। तखत पर लेटे तो कुछ ही देर में चड्ढी को पार कर खून तख्त पर फैलने लगा। यह देख सभी घबरा गए। फोन करके तुरंत ई-रिक्शा वाले को बुलाया गया। उस पर बैठाकर जिप्पी काका को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया।
करिवा सांड़ की नुकीली सींग जिप्पी काका के पोतड़े में घुस गई थी। उसमें घाव हो गया था। वहीं से खून बह रहा था। अस्पताल में मरहम पट्टी की गई। दवा लेकर घर आए।
खबर कख को पता चली तो वह भी घर पहुंच गए।
कख थाने गए तो दरोगा ने कहा कि कुछ नहीं हो सकता। इसमें भला पुलिस क्या कर सकती है? कख को लगा कि सही बात है। पशु तस्करी का मामला होता तो पुलिस कुछ करती। ऐसे पशु किसी जान ले ले लेकिन वह कुछ नहीं कर सकती।
नगर पंचायत के दफ्तर गए तो वहां से भी यही कहा गया कि कुछ नहीं हो सकता। जबकि यह उसी का क़ाम है कि आवारा जानवरों को पकड़ कर गोशाला में रखे। अभी कोई पकड़कर ले जाने लगे तो सभी लम्बरदार बन जाएंगे। बन ही जाते हैं तभी तो आवारा पशु घूम रहे हैं।
आवेदन देकर कख भी चले आए। उन्हें पता था कि पूरा सिस्टम ही ऐसा है।
बातें तो बड़ी- बड़ी की जाती हैं, लेकिन काम कहीं नहीं होता।
वैसे भी हांकने वालों से काम की उम्मीद करना ही मूर्खता है।
एक माह के इलाज के बाद जिप्पी काका ठीक हुए।
उस समय कई लोगों ने कहा कि करिवा सांड को मार कर भगा दो, लेकिन यह काम आसान नहीं था। वह बंसवारी में डटा रहता। भूख लगती तो खेतों में चला जाता। जो मिलता खाता और बंसवारी में आकर बैठ जाता। पानी पीने के लिए वह कख की नल पर आता। अक्सर बाल्टी भरी मिल जाती तो वह पानी पीकर तृप्त हो जाता।
कख के परिवार वालों ने कई बार तय किया था कि नल पर पानी भर कर नहीं रखेंगे। लेकिन रख ही देते। वह कहते कि बेचारे पानी पीने कहां जाएंगे? सांड़ों से परेशान थे, लेकिन पानी की व्यवस्था कर देते। गांव वाले भी उन पर यह इल्जाम लगाते कि पानी पिलाकर पाल रखा है। करिवा सांड ने जिप्पी काका को मारा तो कई ने कहा भी और पानी पिलाओ?
बंसवारी में मच्छर लगते। दूसरे तरह के कीड़े मकोड़े भी परेशान करते, फिर भी करिवा सांड और उसके जैसे सांड़ों के लिए यह सुरिक्षत ठिकाना था। कम से कम आदमी उन्हें पकड़ नहीं पाते थे। वे जानते थे कि यदि बंसवारी को छोड़ दिए तो किसी भी दिन पकड़ लिए जाएंगे। इसके बाद उनका क्या होगा, वे अच्छी तरह जानते हैं।
– सांड़ों की संख्या कुछ ज्यादा नहीं हो गई है? कख ने जिप्पी काका से पूछा।
– हां, अब किसी दिन पकड़े जाएंगे।
– कौन पकड़ेगा?
– कसाई और कौन?
– वह क्या करेगा?
– काटने के लिए बेच देगा।
– इस पर तो रोक है।
– होगी रोक। हो तो सब रहा है।
– कोई पुलिस को नहीं बताता?
– कौन बताएगा? सभी तो छुटकारा पाना चाहते हैं। कौन नहीं जानता कि पकड़कर कौन ले गया?
– पुलिस भी कुछ नहीं करती?
– पुलिस को भी राहत ही मिलती है। पैसे भी मिल जाते हैं।
कख को इन मूक जानवरों पर बड़ी दया आई। उन्होंने सोचा आज इनका यह हाल है। कभी इनकी कितनी उपयोगिता थी। खेती का कोई काम बिना इनके होता ही नहीं था। यहां तक न जाने कितने सालों तक इंसान बैलगाड़ी से चलता रहा। अब गाड़ी आ गई तो बैल कहीं पीछे छूट गए। आवारा हो गए। बेसहारा हो गए। बेकार हो गए। कभी अनमोल होते थे। खेत में चलते थे तो किसान की शान होते थे…
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