एकांत साधना नहीं है साहित्य: संजीव कुमार
जनवादी लेखक संघ हरियाणा का आठवां राज्य सम्मेलन (हिसार) में 22/23 फरवरी,2025 को आयोजित किया गया। तीन सत्रों के दौरान साहित्यकार वक्ता वर्तमान हालात से दुखी और आक्रोशित थे। समाज के ताने-बाने पर जिस तरह बार-बार हमला किया जा रहा है, कभी धर्म के नाम पर तो कभी सांप्रदायिकता के अन्य मुद्दों को उभार को समाज को बांटने की कोशिश की जा रही है। पिछले सालों में जिस तरह साहित्य और संस्कृति से जुड़े कुछ लोगों ने सत्ता सुख का लाभ लेने के लिए समझौतावादी रुख अपनाया है या सांप्रदायिक शक्तियों की गोद में जाकर बैठ गए हैं और उनकी ढपली बजा रहे हैं, उससे हिसार में जुटा प्रगतिशील – जनवादी तबका दुखी था। लेकिन यह बौद्धिक तबके के लिए परीक्षा का वक्त भी है। यहां जुटे साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों ने ऐसी ताकतों का न सिर्फ पुरजोर विरोध करने का संकल्प लिया बल्कि जनता के हक में साहित्य सृजन पर भी जोर दिया।
सम्मेलन का उद्घाटन जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंचल चौहान ने किया। उन्होंने देश के हालात पर चिंता जताई। साहित्य और समाज में व्याप्त चुनौतियों पर चर्चा करते हुए जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव संजीव कुमार ने मंच से कहा ..साहित्य जीवन से आता है, एकांत से नहीं..लेखक को आम आदमी के साथ जुड़ना चाहिये..जन आंदोलनों में भागीदारी करनी चाहिये..खोज खबर लेनी चाहिए..इतना ही नहीं, जहां जरूरत हो , जो भूमिका बनती हो..उससे भागना नहीं..मुकाबला करना है ..तभी साहित्य में जीवन आएगा..संघर्ष आएगा..एकांत से एकांत और जीवन से जीवन आता है रचना में … एकांत साधना की अवधारणा साहित्य में एक तरह का रहस्यवाद ही है…रहस्यवाद अपने आप में बुरा नहीं..लेकिन रहस्य अपनी जगह..साहित्य अपनी जगह..साहित्य को इससे आगे जाना है…इस घटाटोप से बाहर आना है..यह समय पलायन का नही है..सामना करने का है…व्यष्टि का नहीं, समष्टि का है..दूर जाने का नहीं, पास आने का है…लेखक की जो छवि बनाई गई है, उससे बाहर आना है…लेखक समाज के बाहर से नहीं…समाज के अंदर से आता है..समाज के सुख-दुख से वास्ता रखता है..उसे अपने जीवन में भोगता है ,अपना एक रास्ता चुनता है । वही कुछ उसकी कविता-कहानी में आता है..पाठक को वह रचना अपनी लगती है..यही संवेदनशीलता है लेखक की..जो पाठक को भी संवेदनशील बनाती है..एक बेहतर मनुष्य और एक बेहतर समाज बनाती है…बात निकली है तो दूर तलक जाएगी..मतलब सामाजिक परिवर्तन..एक गुणात्मक परिवर्तन..एक क्रांतिकारी बदलाव..यही साहित्य की आग है..यही एक मशाल है..जो इस अंधकार के समय में प्रकाश की किरण है..निराशा के दौर में आशा का एक ध्रुव तारा..
कवि आलोचक मनमोहन ,संजीव कुमार और चंचल चौहान का कहना था..देश में इस समय अघोषित आपातकाल …पहले आपातकाल और इस समय के आपातकाल में मुख्य अंतर क्या है..?..एक तो यही कि एक घोषित है दूसरा अघोषित.. घोषित के खिलाफ़ सारा देश एकजुट था… बात साफ थी..शीशे की तरह, साफ पानी की तरह.. लेकिन इस अघोषित आपातकाल की घोषणा कौन करे.. जो करे सो मरे..अघोषित आपातकाल चलाने वालों का कहना है.. यह स्वर्ण-काल है..अमृत-काल..इसे आप मोक्ष-काल या भक्तिकाल भी कह सकते हैं। मोक्ष प्राप्ति के टिकट बंटे रहे हैं .. राज्य के समुद्र मंथन से निकला यह अमृत है या जहर..कौन जाने.महा कुंभ में डुबकी लगाओ..बेड़ा पार.. रोजगार,शिक्षा, स्वास्थ्य, सम्मान.. कुछ नहीं चाहिए… बस एक बार मोक्ष मिल जाए …सरकार भी क्या करे.. वह मोक्ष बांट रही है.. बदले में वोट मांग रही है…क्या बुरा है.. वोट मिल भी रहे हैं ,थोक के भाव से..सरकार का तो यही मोक्ष है..जनता को उपर जाने के बाद मिलेगा.. मीडिया राजा की बोली बोल रहा है.. उसके लिए ये भक्तिकाल है … ज्यादातर पत्रकार या तो दरबारी या व्यापारी.. वे विपक्ष से सवाल पूछ रहे हैं…सत्तापक्ष की आरती उतार रहे हैं… इसीलिए जो कुछ भी देश भर में हो रहा है… उसकी सही जानकारी किसी के पास नहीं है.. जिसके पास है वह मुंह नहीं खोल सकता । इसे कौन सा लोकतंत्र कहें..!
वक्ताओं ने कहा …अभी हाल ही में महाकुंभ की कवरेज सही ढंग से नहीं करने दी गयी… भगदड़ में कुचल दिए गए लोगो के तथ्य छिपा लिए गए…घंटे घडिय़ाल बजते रहे …किसी को कुछ पता नहीं चला द्रोणाचार्य का पुत्र मरा या हाथी…केवल श्रीकृष्ण को पता था..अद्भुत दृश्य था महाकुंभ का ..भक्त जन अड़े हुए थे मोक्ष के लिए..आ बैल मुझे मार..
मनमोहन ने कहा…महिला दलित और वंचित तबकों के सभी अधिकारों पर पाबंदी है… देश में जनतंत्र बनने की प्रक्रिया को रोक दिया गया है… उनका कोई मौलिक अधिकार नहीं बचा ..न्यायपालिका,कार्यपालिका और विधानपालिका आम आदमी की बजाय खास आदमी की सुरक्षा में लगी है.. समाज को लगातार बांटा जा रहा है– बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे उछालकर दरअसल बांटने का ही संदेश दिया गया..ऐसे नारे समाज में नफरत पैदा कर रहे हैं। मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति एकदम खुली नफरत…लोग भी इन नारों को हाथों हाथ ले रहे हैं..बंटने की प्रक्रिया भी जारी है और बाँटने की भी..तुक्का तीर बनते क्या देर लगती है..!
1990 के बाद पूँजीवाद का विस्तार तेज गति से हुआ है और संपत्ति के सारे अधिकार एक वर्ग विशेष के पास…आम आदमी फालतू की भीड़ समझ लिया गया..भीड़ है…भीड़ भेड़ें ही होती है..जिन पर शासन करना आसान होता है। लेखक है कि वह न भीड़ बनना चाहता है और न भेड..!!
सरकार चाहती है कि लेखक/ पत्रकार भीड़ बन जाये…कुछ पत्रकार नहीं बन सके तो एन डी टी वी को खरीद लिया लेकिन रवीश कुमार को नहीं खरीद सके.. हर कोई भीड़ नहीं होता.. कुछ लोग हैं अभी भी..जो अंतरआत्मा की आवाज़ पर काम कर रहे हैं.. लेकिन उनके पीछे ट्रोल आर्मी सीबीआई ईडी सीआईडी जैसी एजेंसियां उन्हें भेड़ बनाने पर तुली हैं। कितने ही पत्रकार मार दिए गए या उन पर हमले हुए..तो कुछ को जेल में डाल दिया गया ।
अब नई बात आयी है मन में जो बहुत पहले से थी..सब कुछ बदल रहा है तो क्यों ना संविधान भी बदल दिया जाये..लेकिन सरकार ये हैं काम अभी नहीं कर पा रही है.. क्योंकि अभी भी कुछ लोग बचे हुए हैं जो लोकतंत्र और संविधान को बचाना चाहते हैं..ये लोग ही सबसे बड़ा रोड़ा है..संविधान निर्माण के समय भी इन्होंने ही टांग पढ़ाई थी..नेहरू अम्बेडकर गाँधी जैसे लोग.. नहीं तो उस समय दूसरा संविधान लागू हो जाता..पर चलो कभी तो इच्छा पूरी होगी..देखते हैं कब होती है या नहीं होती है.. ड्राफ्ट तो गुप्त रूप से तैयार कर लिए गए हैं..
अगले दिन 23 फरवरी को संदीप मील ने बात उठाई उर्दू की..सरकार का फरमान कि उर्दू एक धर्म विशेष की भाषा..मतलब मुसलामानों की..मुस्लिम धर्म की..क्या हिंदू उर्दू नहीं बोलते..या मुस्लिम हिंदी नहीं बोलते…भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने क्या कहा था..इन मुसलमान हरिजनन पर,कोटिन हिंदू वारिये..
दरअसल सभी धर्मों के लोग सभी भाषाएँ बोलते हैं…यह तो एक सार्वजनिक तथ्य है..लेकिन एक समुदाय के खिलाफ़ नफरत फैलानी है तो फिर भ्रम फैलाना भी जरूरी है यह समय अज्ञानता, पाखंड, झूठ मिथ्याभिमान असत्य, गौरव, वैज्ञानिक, अतार्किक, मनगढंत, काल्पनिक, तथ्यविहीन स्थापनाओं का दौर है..इस दौर को अज्ञानता का महोत्सव भी कह सकते हैं..जैसा कि हिंदी के कवि अशोक वाजपेयी ने एक साक्षात्कार में कहा है..असहमति प्रकट करना या आलोचना करना या सवाल पूछना आफत मोल लेना है..आप देशभक्त हैं..देश का भला सोचते हैं, देश से प्यार करते हैं, कल्याणकारी राज्य चाहते हैं, सब धर्मों का आदर करना चाहते हैं,लोगों के बीच में बराबरी चाहते हैं..आप लेखक हैं.. कवि हैं.. पत्रकार हैं..सामाजिक कार्यकर्ता हैं शिक्षक हैं..जो कुछ भी हैं.. हर बात के लिए शासन से परमाण पत्र लेना अनिवार्य है..नहीं तो आप कुछ भी नहीं हैं या फिर जो शासन कहता है वो हैं..
डेढ़-दौ सौ लोग सुन रहे थे..कुछ सवाल थे..कुछ उत्तर..कुछ सुझाव.. कुछ समाधान.. कुछ चिंतन.. कुछ विमर्श..इंसानियत को बचाने का प्रण लेकर संपन्न हुआ ये समारोह.. जनवादी लेखक संघ हरियाणा का दो दिवसीय राज्य सम्मेलन..।जिसकी अध्यक्षता जयपाल, डॉ. रणबीर सिंह दहिया,प्रोफेसर प्रमोद गौरी व मंगतराम शास्त्री ने संयुक्त रूप से की और संचालन सरदानन्द राजली ने किया।
हरियाणा सम्मेलन के समापन सत्र में लेखक, कवि,पत्रकार, साहित्यकार और विद्वानों के बीच दो दिन विचार-विमर्श के बाद जलेस हरियाणा की 51 सदसीय राज्य परिषद चुनी गई। 27 सदस्यीय नई राज्य कार्यकारिणी का चुनाव किया गया और 9 का सचिव मंडल का चुनाव हुआ । जिसमें सर्वसहमति से जयपाल को प्रदेशाध्यक्ष, सरदानन्द राजली को महासचिव और कोषाध्यक्ष सुशीला बहबलपुर, वरिष्ठ उपाध्यक्ष मा. रोहतास व उपाध्यक्ष ओमप्रकाश करुणेश और मनजीत राठी को चुना गया। सहसचिव मास्टर मंगतराम शास्त्री, मनीषा और विनोद सिल्ला को चुना गया। सदस्य सिद्दीक अहमद मेव, प्रोफेसर प्रमोद गोरी, दीपक वोहरा, नरेश प्रेरणा, अनुपम शर्मा, भगवंत सेठी, विनोद भूषण अबरोल, डॉ. आर.एस.दहिया, डॉ. मानसिंह,कर्मचंद केसर,राम मेहर खरब,गुरबख्श मोंगा, ऋषिकेश राजली,सुरेखा,राजेश दलाल चुने गये। तीन स्थान रिक्त रखें गए।
सम्मेलन में चार प्रस्ताव पास किए गए— भारतीय समाज में वैज्ञानिक सोच पर हो रहे हमलों ,आधी आबादी के शोषण ,दलित उत्पीड़न ,सांप्रदायिकता के खिलाफ और बहुलतावाद के पक्ष में चार प्रस्ताव पारित करते समाज में इन मुद्दों को उठाने का संकल्प लिया गया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत देर रात तक चले कवि सम्मेलन में हरियाणा भर से आए कवियों ने अपनी कविताएं सुनाकर उपस्थित श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।इस कविता पाठ में जयपाल, मंगतराम शास्त्री, प्रमोद गोरी, मंजीत राठी, मनीषा, अनुपम शर्मा, सुशीला बहबलपुर, डॉक्टर कपिल भारद्वाज, मास्टर विक्रम, चमन, अंग्रेज, मास्टर जोरा सिंह, डॉ. रोशन लाल, बलवान सिंह नैन, खजान सिंह, सोहनलाल, डॉ. अर्जुन सिंह राणा, सुनील शर्मा, मास्टर देशराज, परवेश, संजय बधावड़, कृष्ण इंदौरा मंगत राम शास्त्री,राम मेहर कमेरा,प्रमोद गोरी,दीपक व्होरा,मनजीत मानवी, मंजु,मनीषा, लीलावती,मंजू, डॉक्टर रणवीर दहिया,अनुपम शर्मा, सुनील शर्मा, वजीर सिंह, चमन लाल, प्रीती,कुलदीप जटिल आदि कवियों ने भाग लिया।
इस मौके पर मनजीत मानवी का हिंदी कविताओं का चौथा संकलन “आवाज परवाज़” एवं डॉ. कपिल भारद्वाज का दूसरा कविता संग्रह “बोने प्रहसन” का विमोचन भी किया गया।
रिपोर्टः जयपाल