कांग्रेस का ‘डोनेट फॉर देश’ अभियान

 

आलोक वर्मा

 

 

कांग्रेस ने 18 दिसंबर से ‘डोनेट फॉर देश’ नाम से एक ऑनलाइन क्राउड फंडिंग अभियान शुरू किया है। कहा गया है कि यह पहल 1920-21 में महात्मा गांधी के ऐतिहासिक ‘तिलक स्वराज फंड’ से प्रेरित है। यह ऑनलाइन क्राउड फंडिंग अभियान 28 दिसंबर तक चलेगा और इसके बाद कांग्रेस कार्यकर्ता हर बूथ में कम से कम 10 घर जाकर लोगों से दान मांगेंगे। इसमें कहा गया है कि कार्यकर्ता पार्टी के 138 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में कम से कम 138 रुपये का चंदा मांगेंगे इसके अलावा चंदे की राशि 10 गुणा के अनुपात में बढ़ सकती है। दावा किया गया है कि यह भारत में किसी भी पार्टी द्वारा किया गया सबसे बड़ा क्राउड फंडिंग अभियान होगा।

क्राउड फंडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोगों से धन एकत्र किया जाता है और इसे चुनाव अभियान के लिए उपयोग किया जाता है। इस तरह के अभियानों का उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को जोड़ना होता है ताकि वे चुनाव अभियान में भाग लें और अपनी राय दें।

इससे स्पष्ट है कि देश की सबसे पुरानी (138 साल) पार्टी आर्थिक तंगी दौर से गुजर रही है। सुनने में शायद अटपटा लगे कि आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने और देश पर करीब 60 साल तक राज करने के बावजूद एक पार्टी को ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं। अगर देखा जाए तो कांग्रेस एकमात्र पार्टी है जिसका जनाधार पूरे देश में है। हर राज्य में उसके समर्थक हैं चाहे कम हों या ज्यादा। फिर कांग्रेस को ऐसी तंगी का सामना क्यों करना पड़ रहा है कि उसे क्राउड फंडिंग के जरिये पैसा जुटाने की जरूरत पड़ गई।

दरअसल, 2014 के बाद देश की चुनावी फिजा एकदम से बदल गई। चुनाव लड़ना बहुत महंगा हो गया। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद चुनाव को युद्ध जैसा रूप दे दिया गया। मीडिया, सोशल मीडिया से लेकर प्रचार के ऐसे ऐसे तरीके अपनाए गए कि सामान्य व्यक्ति के लिए चुनावी समर में उतरना संभव नहीं रह गया। चुनाव प्रचार सामान्य प्रचार नहीं रह गया। जैसे युद्ध में दुश्मन सेना पर चारों तरफ से हमला कर उन्हें नेश्तनाबूद करने की कोशिश की जाती है, भारत में उसी तरह से चुनाव के दौरान हर तरफ से प्रचार रूपी बमबाजी के जरिये विपक्षी दल को नेश्तनाबूद करने की कोशिश की जाने लगी।

सरकारी दल ने विपक्षी दलों को चुनाव मैदान से बाहर करने के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाए हैं। कहा जाता है कि सरकारी एजेंसियों के जरिये उद्योगपतियों पर अंकुश लगा दिया कि वे विपक्षी दलों को चंदा न दे सकें। फिर पारदर्शिता के नाम पर चुनावी बांड का ऐसा खेल रचाया कि चंदे की सारी रकम सत्ताधारी दल के पास आने लगी और विपक्ष कंगाल हो गया। पांच साल में चुनावी बांड के जरिये भाजपा को 5272 करोड़ रुपये मिले और कांग्रेस को हजार करोड़ भी नहीं मिले। राज्यों में जिनकी सरकार हैं उनके लिए चंदे के लिए थोड़ी बेहतर स्थिति रही है। नहीं तो क्या कारण है कि चुनावी बांड का 85 फीसदी राशि भाजपा को जा रही है। सरकारी पक्ष को मीडिया भी पूरी जगह देता है लेकिन विपक्ष का अघोषित बायकाट करता है। इसी तरह सोशल मीडिया से लेकर प्रचार तक पर मोटी रकम खर्च करनी होती है।

जनता को चकाचौंध के जरिये आकर्षित करने के लिए चुनाव प्रचार के दौरान बेतहाशा रकम खर्च की जाती है। चुनाव आयोग के नियम के अनुसार लोकसभा चुनाव के प्रचार में बड़े राज्यों की लोकसभा सीट के प्रत्याशी अधिकतम 95 लाख खर्च कर सकते हैं. जबकि छोटे राज्यों के लिए सीमा 75 लाख रुपये तय की गई है। जबकि चुनाव विश्वेषकों का अनुमान है कि लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी 10 से 20 करोड़ रुपये खर्च करते हैं।

यही कारण रहा कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना के एनडीए गठबंधन से अलग हो जाने के बाद भाजपा ने सरकार बनाने के लिए सारे घोड़े खोल दिए। उसने राज्यपाल से लेकर सरकारी एजेंसियों तक का उपयोग किया। पहले शिवसेना को दोफाड़ कर सरकार बनाई और बाद में एनसीपी को दोफाड़ कर दिया।

कहा जाता है कि चूंकि चुनावी बांड का सबसे बड़ा केंद्र मुंबई और महाराष्ट्र है इसीलिए सत्ता में आने के लिए भाजपा बेतरह परेशान रही। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जो बदलाव आया वह यह कि पैसे के चलते भाजपा का प्रचार भव्य होता है। उसका मुकाबला कांग्रेस समेत दूसरे दल नहीं कर पाते, विपक्ष उसी राज्य में भाजपा के “शाही” चुनाव प्रचार का मुकाबला कर पाता है जहां उसकी सरकार होती है। कहा जाता है कि 2018 में राजस्थान और मध्य प्रदेश में  विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनावों  को देखते हुए ही सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान न सौंप कर ओल्ड गार्डों को जिम्मेदारी सौंपी थी। इसी तरह कर्नाटक में भाजपा के धनबल का  मुकाबला करने के लिए चुनाव से पहले ही डीके शिवकुमार को जिम्मेदारी सौंप दी गई थी। उन्होंने वह जिम्मेदारी बखूबी निभाई। पैसे की कमी के चलते ही गुजरात में कांग्रेस पूरे मनोयोग से विधानसभा चुनाव में नहीं उतरी जबकि आम आदमी पार्टी ने चुनाव से एक साल पहले से ही गुजरात में पैसा खर्च करना शुरू कर दिया था, जिसका लाभ उसको मिला और उसके कई विधायक जीत कर आए।

इस बीच  कांग्रेस के अभियान की घोषणा के बाद भाजपा ने donatefordesh.org नाम से डोमेन रजिस्टर्ड करवा लिया है। लेकिन कांग्रेस ने भी डोमेन बनाया है।  यह डोमेन http://donateinc.in. या http://inc.in. पर कांग्रेस को डोनेशन दिया जा सकता है। साथ ही कहा कि जो भी डोनेशन देगा उसे AICC की तरफ से एक साइन किया हुआ सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कांग्रेस इस अभियान के जरिये कितना धन जुटा पाती है ।