मंगोलिया: बेटे की तस्वीर ने प्रधानमंत्री की कुर्सी छीन ली!

मंगोलिया: बेटे की तस्वीर ने प्रधानमंत्री की कुर्सी छीन ली!

लोकतंत्र के प्रति मंगोलिया वासियों की सजगता

अमेरिका और वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उल्टी सीधी हरकतों में रमा रहने वाला भारतीय मीडिया कई बार बहुत जरूरी खबरों को उतनी तवज्जो नहीं देता जितनी दी जानी चाहिए। या यों कहें कि देशवासियों को बताया जाना चाहिए कि ऐसी खबरों/ सूचनाओं को क्यों महत्व मिलना चाहिए। जब मीडिया दिन-रात लोकतंत्र-लोकतंत्र चिल्लाता रहता है तो ऐसे में ऐसी खबरों का महत्व और भी बढ़ जाता है। जिस मुद्दे की हम चर्चा कर रहे हैं वह मंगोलिया की है जो लोकतंत्र में तब्दील हो रहा है।

अब हम मुद्दे पर आते हैं। हम बात कर रहे हैं मंगोलिया की। पिछले हफ्ते मंगोलिया के प्रधानमंत्री लुवसन्नामस्रेन ओयुन एर्डीन को पद से हाथ धोना पड़ा। वैसे तो उन्होंने इस्तीफा दिया, संसद में पेश अविश्वास प्रस्ताव पर उनके पक्ष के काफी सांसदों ने भी उनका साथ नहीं दिया। यह कदम उनके बेटे और होने वाली बहू की तस्वीरों के कारण उठाना पड़ा, जिसने देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया।

तस्वीरों ने बढ़ाई राजनीतिक संकट

ओयुन एर्डीन के बेटे और उनकी मंगेतर की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जिनमें वे लक्जरी शॉपिंग बैग लिए नजर आ रहे थे। यह तस्वीरें प्रधानमंत्री की बहू ने साझा की थीं, जिससे उनकी विलासिता का खुलासा हुआ। इसके बाद देश की जांच एजेंसियों ने प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच शुरू कर दी।

विरोध प्रदर्शन और इस्तीफे की मांग

तस्वीरों के सामने आने के बाद, मंगोलिया के नागरिकों में गुस्सा भड़क उठा। बड़ी संख्या में लोग प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए। अंततः, ओयुन एर्डीन को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

संसद में विश्वास मत की हार

इसके बाद संसद में विश्वास मत को लेकर मतदान कराया गया। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक मतदान से पहले ओयुन-एर्डीन ने चेतावनी दी कि इससे अस्थिरता पैदा हो सकती है और मंगोलिया का नया लोकतंत्र हिल सकता है। उन्होंने कहा कि अगर शासन अस्थिर हो जाता है, आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। राजनीतिक दल आम सहमति पर नहीं पहुंच पाते हैं। इससे जनता का संसदीय शासन में विश्वास खत्म हो सकता है और हमारी लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली के ढहने का खतरा हो सकता है।

उन्होंने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा कि मैंने बड़ी परियोजनाओं को बहुत अधिक समय दिया, जबकि सामाजिक और आंतरिक राजनीतिक मामलों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। ओयुन-एर्डीन चार वर्षों तक इस पद पर रहे थे तथा इससे पहले भी उन्हें पद छोड़ने के लिए कहा गया था। ओयुन एर्डीन ने संसद में विश्वास मत खो दिया । उन्हें 126 सदस्यीय संसद में कम से कम 64 वोटों की आवश्यकता थी, लेकिन उनके पक्ष में केवल 44 वोट पड़े, जबकि 38 ने उनके खिलाफ मतदान किया।

मंगोलिया में पिछले साल बनी थी गठबंधन सरकार

मंगोलिया में पिछले साल चुनावी सुधारों के बाद संसद की सीटें 76 से बढ़ाकर 126 कर दी गईं। इसके बाद गठबंधन सरकार बनी। रूस और चीन के बीच घिरा मंगोलिया लोकतांत्रिक बनने के लिए संघर्ष कर रहा है। शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के पतन के बाद से यह लोकतंत्र में तब्दील हो रहा है।

सभी को छोटे से देश मंगोलिया के नागरिकों की चेतना को सलाम करना चाहिए, जिन्होंने प्रधानमंत्री के परिवार को विलासिता में देखा तो आंदोलित हो गए और प्रधानमंत्री को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया।

अब हम भारत की बात करें तो क्या हमारे यहां ऐसा संभव है। राजनेताओं से लेकर मीडिया तक रोज गला फाड़ते रहते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन क्या यहां ऐसा संभव है। हमारे यहां तो दिखावे को ही परम कर्तव्य मान लिया गया है। सरकारी से लेकर गैरसरकारी व्यक्तियों और आयोजनों में दिखावे पर अरबों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं, फिर उन्हें सही ठहराने के लिए कुतर्क गढ़े जाते हैं। जिनकी जिम्मेदारी ऐसी बातों को उठाने की है, वे चरण वंदना में लगे रहते हैं, उन्हें सही साबित करने में अव्वल आने की होड़ लग जाती है। आखिर भारतीय जनता को इन ‘बड़े लोगों’ के दिखावे के आडंबरपूर्ण व्यवहार पर गुस्सा क्यों नहीं आता?

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