रंग क्रांति पर्व “मंजुल भारद्वाज” !
– अश्विनी नांदेडकर
मंजुल भारद्वाज एक दूरदर्शी व्यक्ति हैं जो इस सिद्धांत को रचते हैं कि कला केवल अभिव्यक्ति या ज्ञान प्राप्ति का साधन नहीं है, बल्कि यह मनुष्य को उन्मुक्त करती है। मंजुल भारद्वाज एक ऐसा नाम है जो साबित करता है कि रंग चेतना समाज में बदलाव को प्रेरित करती है। उन्हें आधुनिक युग के एक क्रांतिकारी विचारक के रूप में जाना जाता है जिन्होंने कला से सामाजिक क्रांति की नींव रखी l थियेटर ऑफ़ रेलेवंस सिद्धांत से उन्होंने न केवल रंगमंच, बल्कि रंगमंच चेतना का भी एक नया युग निर्मित किया है। रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज ने 12 अगस्त 1992 को थियेटर ऑफ़ रेलेवंस की स्थापना की l
दुनिया में आज चार तरह का थिएटर होता है. एक सत्ता पोषित जो दृष्टि शून्य नाचने गाने वाले जिस्मों की नुमाइश भर होता है. दूसरा प्रोपोगंडा होता है जिसमें नाचने गाने वाले जिस्मों का उपयोग वामपंथी- दक्षिणपंथी प्रोपोगंडा के लिए होता है. तीसरा बुद्धिजीवी वर्ग का ‘माध्यम’ होने का शगूफा है जो रंगकर्म को सिर्फ़ माध्यम भर समझते हैं . चौथा रंगकर्म है ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत का रंगकर्म जो थिएटर को माध्यमभर नहीं बल्कि मानव मुक्ति का उन्मुक्त दर्शन मानता है. थिएटर मानवता के कल्याण का वो दर्शन है जो किसी सत्ता के अधीन नहीं है. जो हर सत्ता को आईना दिखाता है. चाहे कोई भी सत्ता हो राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक सत्ता सभी को आईना दिखाता है ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत का रंगकर्म !
आत्मविद्रोह का अहिंसात्मक, कलात्मक सौन्दर्य है रंगकर्म. सौंदर्य बोध ही इंसानियत है. सौंदर्य बोध सत्य को खोजने,सहेजने,जीने और संवर्धन करने का सूत्र है. सौंदर्य बोध विवेक की लौ में प्रकशित शांति की मशाल है l थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत अनुसार ART A Romance with Truth! ‘कला – सत्य के साथ रोमांस एक अद्भुत यात्रा है!’ कला सत्य की खोज है! क्योंकि सत्य अंतरंग है! कला सत्य का रोमांस है!
1992 से थियेटर ऑफ़ रेलेवंस ने बिना किसी कॉर्पोरेट, राजनीतिक या सरकारी फंडिंग के जमीनी स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक प्रस्तुतियां की है। थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत रंगकर्मी दर्शकों के समर्थन,सहयोग और सहभागिता से जीवित रहते हैं। रंगकर्मी का मूल कर्म रंगकर्म करना है और रंगकर्म से आजीविका चलानी है तो दर्शकों से संवाद करना अनिवार्य है। दर्शक के साथ रंगदृष्टि संवाद ही रंगकर्मी की संजीवनी है। कठिन होता है। कई वर्षों तक फ़ाके खाने पड़ते हैं। समाज की दुत्कार भी सहनी पड़ती है, क्योंकि रंगनुमाइश दर्शकों को रंगकर्म का उद्देश्य मनोरंजन तक सीमित कर भरमाती है। दर्शक भी शुरू में आपसे वही मांग करते हैं, लेकिन आपको उनके इस भ्रम को तोडना होगा। यह भ्रम जब आप तोड़ देते हैं तब दर्शक आपके साथ जुड़कर आपको सच्चे रंगकर्म के लिए प्रोत्साहित करते हैं और वे दर्शक हमेशा आपकी रंगदृष्टि के साथ होते हैं। क्योंकि रंगकर्म ‘मनुष्य को मनुष्य बनाने का कलात्मक कर्म है’ और आपके रंगकर्म से जब दर्शक अपने अंदर बेहतर मनुष्य होने का अहसास करता है तब वो कभी आपको निराश और मोहताज़ नहीं करता। इसलिए थियेटर ऑफ़ रेलेवंस सिद्धांत में दर्शक रंगकर्म का मूलाधार है, सरकार नहीं। इसलिए थिएटर ऑफ़ रेलेवंस का मानना है कि दर्शक ही रंगमंच के प्रथम और सशक्त रंगकर्मी हैं।
थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने वैचारिक नाटकों का परचम रंगभूमि पर फ़हरा दिया। वैचारिक नाटकों के हाउस फुल का राज़ है ‘दर्शक’ संवाद। जी हाँ भूमंडलीकरण के खरीदने– बेचने वाले झूठे विज्ञापनों के दौर में थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने ‘दर्शक’ संवाद कर दर्शकों को रंग नुमाइश और रंगकर्म के भेद को दर्शकों के समक्ष उजागर किया। इस तरह समाज की ‘फ्रोजन स्टेट’ को तोड़ने के लिए दर्शकों के सरोकारों को अपने नाटकों का आधार बनाया। दर्शकों ने भी अपना रचनात्मक प्रतिसाद दिया और चुनौतीपूर्ण समय में ‘वस्तु या ग्राहक’ के रूप को त्याग देश का नागरिक होने की भूमिका को निभाया।
रंगकर्म विद्रोह का सामूहिक कलाकर्म है। दुनिया में विविध रंग हैं, मसलन लाल, पीला, नीला आदि। हर रंग विचारों को सम्प्रेषित करते हैं। रंग यानी विचार। दरअसल रंगकर्म विचारों का कर्म है। विचार राजनैतिक प्रक्रिया है जो व्यवस्था का प्रशासनिक सूत्र है और कला उसका सृजनकर्म है जो मनुष्य को मनुष्य बनाने की प्रकिया है।राजा हरिश्चंद्र नाटक देखकर मोहनदास ने सत्य का मार्ग चुना। रंगकर्म गांधी को सत्य की डगर पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज जी ने आम लोगों के दुखों, समस्याओं, मुद्दों और सवालों को रंगमंच से जनता के सामने लाया। समाज में नाटकों से चेतना ,विचार और विवेक जागृत करते हुए थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन ने शोषितों,पीड़ितों में प्रत्यक्ष बदलाव का इतिहास रचा है । रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज जी ने अब तक 50 हजार से अधिक बाल मजदूरों को मजदूरी के बंधन से मुक्त करा चुके हैं। साथ ही उन्होंने पांच हजार से अधिक पीड़ित महिलाओं को हिंसा और यौन शोषण से मुक्ति दिलाकर उन्हें समाज में ईमानदारी से जीने के लिए प्रेरित किया और अपनी कलम से क्रांति को शब्दाबद्ध किया।
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य कार्यशाला में सभी सहभागी अपने अनुभव,विचार और जीवन दर्शन को साझा करते हुए अपने कलात्मक स्वरूप को आत्मसात करते हैं!थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्यदर्शन “कला– कला के लिए” वाली औपनिवेशिक और पूंजीवादी सोच के चक्रव्यहू को अपने तत्व और सार्थक प्रयोगों से तोड़ है और हजारों ‘रंग संकल्पनाओं’ को ‘रोपित कर अभिव्यक्ती का मंच देता है । “थियेटर ऑफ़ रेलेवंस” नाट्यदर्शन ने कार्यशालाओं में समाज और व्यक्तियों के मानस में ‘सांस्कृतिक चेतना’ जागृत कर नयी दृष्टि प्रदान करके मानस को सांस्कृतिक क्रांति के लिए प्रतिबद्ध किया है। “थियेटर ऑफ़ रेलेवंस” अपनी रंगदृष्टि से, आत्महीनता से उपजे विकारों का उन्मूलन कर, आत्मबल से वैचारिक रूप का निर्माण करता है। कार्यशाला में सबसे पहले सहभागी निर्णय लेते हैं , कार्यशाला के विषय सहभागी तय करते है l व्यक्ति के चारों आयाम शारीरक, मानसिक, भावनिक और अध्यात्मिक ( यहाँ अध्यात्मिक का मतलब खुदसे जुड़ना है ) के समग्र दृष्टि से गढ़ा जाता है l “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने नाट्य कार्यशालाओं में सहभागियों को मंच, नाटक और जीवन का संबंध, नाट्य लेखन,अभिनय, निर्देशन, समीक्षा, नेपथ्य, रंगशिल्प, रंगभूषा आदि विभिन्न रंग आयामों पर प्रशिक्षित किया है और कलात्मक क्षमता को दैवीय से वरदान हटाकर कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण की तरफ मोड़ा है।
रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज विगत 33 वर्षों से विद्रोह की आग़ में जलते हुए इंसानियत का चराग़’ जलाने की कलात्मक प्रतिबद्धता से प्रतिबद्ध हैं । अपने वैचारिक कलात्मक नाट्य प्रस्तुतियों से रंगमंच को सार्थक और कलात्मक दिशा दी है. रंगभूमि और रंगपरिदृश्य को बदला है l थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के नाटकों में पात्र नही विचार पात्र बनकर जीता है और विचार तो मनुष्य के मस्तिष्क में अंकुरित होता है, पलता है और फलीभूत होता है.
रंग चेतना का वैश्विक प्रभाव :
मंजुल भारद्वाज के नाटक न केवल भारत में बल्कि यूरोप में भी लोकप्रिय हुए। नाटक “बी 7”, “विश्व द वर्ल्ड” और “ड्रॉप बाय ड्रॉप वॉटर” ने पर्यावरण को बचाने का वैश्विक संदेश दिया। थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के नाटक ‘द… अदर वर्ल्ड’ के संदेश इकोलॉजी – ह्यूमनोलॉजी से 72 दिनों तक यूरोप गुंजायमान रहा ! भारतीय रंगमंच के लिए यह पल अनोखे और कलात्मक रहे ,अमूमन भारतीय रंगमंच पर पाश्चात्य धुंध छाई रहती हैं पर थियेटर ऑफ़ रेलेवंस रंग दर्शन ने सर्द यूरोप की बर्फ़ को भारतीय दर्शन, तत्व और कलात्मक ताप से पिघला दिया । 72 दिन (14 सितम्बर से 24 नवम्बर) भारतीय रंगमंच का परचम गर्व से लहराता रहा !
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत के अनुसार हर रंग एक विचार संप्रेषित करता है और विचारों के कर्म को रंगकर्म कहते हैं। 1992 से लगातार थिएटर ऑफ रेलेवेंस रंग दर्शन ने अपनी कलात्मक एवं वैचारिक प्रस्तुतियों से जन चेतना को प्रज्वलित कर विश्व में सांस्कृतिक क्रांति का बिगुल बजा मानवता के लिए स्वयं एवं समाज को समर्पित किया है। इस नाट्य दर्शन के अंतर्गत हुईं कलात्मक प्रसिद्ध नाट्य प्रस्तुतियां :
१. “छेड़छाड़ क्यों ?” – छेड़छाड़ विकृति का विरोध, शरीर से परे इंसान बनकर जीने की प्रक्रिया l
२. “मैं औरत हूं” – अपने होने को खोजने और स्वत्व की बुलंद आवाज l
३. “गर्भ” – मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने का संघर्ष l
४. “अनहद नाद unheard sounds of universe” – कला और कलाकारों को उत्पाद और उत्पादीकरण से उन्मुक्त करती आवाज़ l
५. “न्याय के भंवर में भंवरी” – पितृसत्ता और उससे संचालित व्यवस्था पर कड़ा प्रहार l
६. “राजगति” – राजनीतिक दृष्टि और चेतना को जगा, राजनीति शुद्ध, सात्विक और पवित्र नीति को प्रस्थापित करती है l
७. “लोक – शास्त्र सावित्री” – सावित्रीबाई फुले के विचारों को स्वयं के भीतर जगाने की प्रक्रिया, मनुवादी और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को तोड़ कर समतामूलक समाज का यलगार.l
८. “गोधडी… आपली संस्कृती” – सांस्कृतिक वर्चस्वाद का विरोध कर एक वर्णवाद मुक्त, विविध, नैसर्गिक और मानवीय संस्कृति की हुंकार
९. “The… Other World” – पर्यावरण, मानवता, पृथ्वी को बचाने का संकल्प। निसर्ग के पंचतत्वों को मनुष्य के पंचतत्वों से जोड़ती एक कलात्मक प्रस्तुति।
१०. “ड्रॉप बाय ड्रॉप वॉटर” – नैसर्गिक संसाधनों के निजीकरण का विरोध। पानी मानवीय और नैसर्गिक अधिकार है !
११. “किसानों का संघर्ष” – किसानों की संघर्ष व्यथा, और विकास, पूंजीवाद एवं राजनैतिक सत्यता को दर्शाता l
१२. “Yes My name is Smileyee, I am a girl” – लड़कियों के मौलिक अधिकार और स्वास्थ्य पर भाष्य करता नाटक।
१३. “संवाद एक पहल” – एक सुदृढ़ समाज रचना के लिए पारिवारिक, सामाजिक वाद विवादों को तोड़कर संवाद की पहल और बदलाव।
१४. “सम्राट अशोक” – राजा की बदलाव यात्रा, नरसंहारक से मानवता का पैरोकार होता एक सम्राट।
१५. ” नेहरू : द स्टेट्समैन” – एक राजनीतिज्ञ, राजनैतिक मर्म को समझता व्यक्तित्व और उसकी यात्रा l
१६. “मैं भी रोहित वेमुला” – जातिव्यवस्था के बाहुपाश से उन्मुक्त होती सत्य एवं संविधान की आवाज l
१७. “स्पंदन” – तरंग यानि तत्वों के रंग को व्यक्ति के भीतर सृजित करती कलात्मक प्रस्तुति l
१८. “विश्व दाय वर्ल्ड” – विश्व द वर्ल्ड युवाओं के स्वप्न और चुनौतियों को उजागर करता है l
१९. “B – 7” – B7 भूमंडलीकरण के नाम पर पृथ्वी और दुनिया का शोषण को मंच पर प्रस्तुत करते हैं खूबसूरत सात पंछी l
२०. दूर से किसी ने आवाज़ दी : सांप्रदायिक आक्रोश को विवेक की आवाज देता है
२१. मेरा बचपन : बाल मजदूरी का विरोध
२२. नपुंसक : नपुंसक अपने ऊपर व्यंग्य करने वाले समाज की नपुंसकता को झकझोरता है l
२३. द्वंद्व : घरेलू हिंसा का प्रतिरोध.
२४. रेड लाइट : यह नाटक संवेदनाओं और सामाजिक सच्चाइयों का एक दर्पण है l
इस नाटक से समाज की कठोर मानसिकता उजागर होती l
२५. लाडली : लिंग चयन का विरोध करता नाटक l
२६. धुंद : बाल लैंगिक शोषण का विरोध l
लेखिका अंतरराष्ट्रीय रंगकर्मी है