ग़लत जीन को मारो नहीं, सुधारो 

ग़लत जीन को मारो नहीं, सुधारो

आज के “टेलिग्राफ” में न्यूयार्क टाइम्स की ज़िना कोलाता की एक रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने पहली बार एक जीन के दोष को सुधार कर उसे सामान्य बना दिया है। यह दोष इतना मामूली था कि इसके लिए डीएनए के केवल एक अक्षर को बदलना था—लेकिन उसका असर गहरा था। इस ग़लती के कारण कुछ मरीज़ों के फेफड़ों और यकृत में गंभीर नुकसान हो रहा था।

अमेरिका की Beam Therapeutics नामक कंपनी ने नौ मरीज़ों पर एक नया इलाज आज़माया, जिसमें एक बेहद बारीक दवा शरीर में पहुंचाई गई। यह दवा रक्त के रास्ते सीधे यकृत तक गई और वहां जाकर उसने ग़लत अक्षर को सही अक्षर में बदल दिया।

परिणाम यह हुआ कि वह जीन अब सामान्य रूप से काम करने लगा, और उस कारण होने वाली बीमारी—जिसमें फेफड़े और यकृत धीरे-धीरे खराब हो जाते हैं—रुक गई। डॉक्टरों का कहना है कि यह इलाज बहुत ही प्रभावशाली और आशाजनक है।

रॉकफेलर विश्वविद्यालय के डॉ. रिचर्ड लिफ़्टन ने इस प्रयोग को “एक मुश्त इलाज” कहा है, जो भविष्य में कई और आनुवंशिक बीमारियों का स्थायी समाधान बन सकता है।

इस तकनीक में CRISPR नाम की एक अणु-स्तरीय कैंची इस्तेमाल की गई, जो डीएनए में दोष को ढूंढ़कर उसे सुधार देती है। यह सब एक तरह से वैसा ही था, जैसे किसी किताब में टाइप की हुई ग़लत वर्तनी को ठीक कर देना।

टेलिग्राफ की इस रिपोर्ट में बताया गया कि यह तकनीक आने वाले समय में उन हज़ारों मरीज़ों के लिए नई उम्मीद बन सकती है, जिनकी बीमारियाँ केवल एक जीन की छोटी-सी ग़लती की वजह से होती हैं।

एक डॉक्टर ने कहा—“यह इलाज न केवल बीमारी को रोकता है, बल्कि उसे एक ही वार से हमेशा के लिए ठीक कर सकता है।”

दोषपूर्ण जीन को सुधारने के इलाज की इस कहानी का शीर्षक है — ग़लत जीन को मारो नहीं, सुधारो ।

अरुण माहेश्वरी के फेसबुक वाल से साभार