एसपी भाटिया की ग़ज़ल – हमसे मत कहना

ग़ज़ल

हमसे मत कहना

एसपी भाटिया

 

हमसे मत कहना चुप रहो, ये दौर हमारा है,

जिसने सच बोला, उसपे ही इल्ज़ाम तुम्हारा है।

नफ़रतों के मेले हैं, हर गली है जलती सी,

जो भी चुप बैठे, उसका भी अंजाम तुम्हारा है।

रात के सौदागर हैं, नींद बेच कर जीते हैं,

भूख से जो मरे यहाँ, वो भी तो तुम्हारा है।

कुर्सियों के सौदों में बिक गए सभी रिश्ते,

आज जो हाकिम है, कल कहेगा—सारा हमारा है।

खून से सींची जो जमीं, उसे बांटते हो क्यूँ,

बेबाक कहता है—ये वतन सबका सहारा है।

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