व्यंग्य
टेंशन नहीं लेने का, राजनीति का ‘ओल्ड एज होम’ है न
विजय शंकर पांडेय
भारतीय राजनीति में अगर किसी संगठन ने “सेकंड इनिंग्स” को सबसे शानदार बनाया है, तो वह है दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी ने। यह पार्टी अब सिर्फ एक राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि एक ‘वेलनेस रिट्रीट’ अर्थात एक तनाव-मुक्त पार्टी बन चुकी है। खासकर उन राजनेताओं के लिए जिनकी नैतिकता और युवावस्था दोनों रिटायरमेंट के करीब हों।
कभी किसी क्षेत्रीय पार्टी से टिकट लेकर एमएलए या एमपी बने, फिर मंत्री बने, फिर जनता को “सेवा” के नाम पर खूब लूट खसोट किया। विकास के नाम पर जमकर प्रॉपर्टी खरीदा, जनकल्याण के नाम पर विदेशी कारों का काफिला तैयार किया, और जनता की सेवा करते-करते स्विट्जरलैंड तक बैंक खाता खुल गया। लेकिन जैसे ही उम्र 60 के पार हुई और अगला चुनाव मुश्किल लगने लगा — बस सबसे बड़ी पार्टी की शरण में जाना ही ब्रह्मज्ञान बन गया।
सबसे बड़ी पार्टी में शामिल होने का अर्थ अब सिर्फ विचारधारा से जुड़ना नहीं, बल्कि अपने राजनीतिक पापों का प्रायश्चित करना भी है। जिस तरह हरिद्वार में बुजुर्ग लोग अंतिम समय में गंगा में डुबकी लगाते हैं, वैसे ही भ्रष्टाचार के बोझ से दबे नेता सबसे बड़ी पार्टी की ‘वॉशिंग मशीन’ में डुबकी लगाकर ‘पवित्र’ हो जाते हैं।
एक बार सबसे बड़ी पार्टी में घुसे, फिर न ईडी पूछेगी, न सीबीआई। पहले जिन घोटालों के लिए मीडिया में हेडलाइन बनती थी, अब वही मीडिया ‘वरिष्ठ नेता का अनुभव’ बताने लगती है। ‘दाग अच्छे हैं’ का नया संस्करण है — ‘दाग अगर सबसे बड़ी पार्टी में जाएं तो धो दिए जाएंगे।’
आम नौकरी में रिटायरमेंट के बाद गोल्डन हैंडशेक मिलता है, लेकिन राजनीति में सबसे बड़ी पार्टी ज्वाइन करने पर मंत्रालय भी मिल सकता है। जिन नेताओं को अपनी ही पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था, उन्हें सबसे बड़ी पार्टी में “गौरवशाली भविष्य” मिल जाता है। जैसे पाप धोकर संत बन जाते हैं, वैसे ही भ्रष्टाचार से घिरे नेता ‘विकास पुरुष’ कहलाने लगते हैं।
सबसे बड़ी पार्टी की यह वॉशिंग मशीन मल्टीफंक्शनल है — कपड़े नहीं, करियर धोती है। यह मशीन सिर्फ सफेदी नहीं देती, बल्कि सांसद का टिकट, मंत्री पद और यहां तक कि राज्यपाल की कुर्सी भी थमा देती है। बस शर्त यही है कि आप बुढ़ापे में आए हों और कुछ “कच्चे-पक्के” राज लेकर आए हों।
तो अगर आप एक अनुभवी या सीधे कहें तो घिसे-पिटे नेता हैं, जिनके घोटाले पुराने हो चुके हैं, और अब भविष्य डगमगा रहा है — तो चिंता न करें। सबसे बड़ी पार्टी है ना! यह सिर्फ पार्टी नहीं, राजनीति का ‘ओल्ड एज होम’ है — जहां राजनीतिक मोक्ष मिलता है। जहां ‘जय श्री राम’ कहकर आप अपने पापों का हिसाब क्लोज कर सकते हैं।
और सबसे अच्छी बात? यहां ‘इन्वेंट्री फुल’ कभी नहीं होता। चाहे कितने भी पुराने नेता हों, पार्टी कहती है — “लाओ, सबका साथ सबका विकास!”
डिस्क्लेमर – उपरोक्त लेख एक व्यंग्य है। किसी भी पार्टी या व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है। अगर कुछ मिलता है तो महज संयोग है। राजनीति में हास्य भी जरूरी है — वरना जनता तो कब की रो चुकी है।