शहीद-ए-आजम भगतसिंह पर लगाये गये आरोप निराधार और अपमानजनक

मुनेश त्यागी

पिछले दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी मिली कि कानपुर लिटरेचर फेस्टिवल में मुख्य वक्ता डॉक्टर अर्पणा वैदिक ने शहीद ए आजम भगत सिंह को आराम तलब, होटल मैनेजर से सेटिंग करके खाना खाने, अच्छे कपड़े पहने और अनशन के दौरान वजन बढ़ने की बात कही गई है और उन्हें बहुरूपिया, आराम तलब और अवसरवादी तक कहा गया। भगत सिंह पर इन निराधार बातों को सुनकर श्रोताओं ने इनका जमकर विरोध किया।

आजकल जैसे भारत के महान नेताओं को बुरा भला कहने, उनका अपमान करने और उनके बारे में जनता को गुमराह करने की होड सी लगी हुई है। इसी क्रम में पहले महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और फिर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और अब भगत सिंह का नंबर आ गया है। गांधी और नेहरू पर लगाए गए आरोपों का पहले ही माकूल जवाब दिया जा चुका है और अब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के बारे में अपमानजनक शब्द कहने पर भारत के अधिकांश विपक्षी दल डॉ अंबेडकर के खिलाफ अपमानजनक शब्द कहे जाने पर सड़कों पर उतरे हुए हैं और गृहमंत्री अमित शाह से माफी मांगने और इस्तीफा देने की मांग कर रहे हैं।

भगत सिंह पर लगाए गए निराधार और अपमानजनक आरोपों को स्वीकार करने का कोई मतलब ही नहीं है। जब शहीद-ए-आजम भगत सिंह पर लगाए गए इन मनमाने, निराधार, अपमानजनक, गुमराह करने वाले और उनके महान क्रांतिकारी कद को छोटा करने वाले तथ्यों के बारे में छानबीन की गई तो पता चला कि ये शब्द बिल्कुल निराधार, अपमानजनक, गुमराह करने वाले और भगत सिंह के क्रांतिकारी कद को छोटा करने वाले हैं। भगत सिंह एक क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी परिवार से संबंधित थे। उनके दादा, चाचा और पिता सब भारत की आजादी के आंदोलन में जेलों में बंद हो चुके थे और अपने बुजुर्गोन के नक्शे कदम पर चलते हुए भगत सिंह ने भी बचपन से ही आजादी के मार्ग पर चलना शुरू कर दिया था। उन्होंने देश भर के सारे क्रांतिकारियों को एकजुट किया। भगत सिंह क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों में सबसे बड़े पुस्तक प्रेमी थे। उन्होंने जेल के अंदर 300 से ज्यादा किताबें पढ़ी थीं। जैसे उन्होंने जेल में किताब घर बना लिया हो। भारत के क्रांतिकारी इतिहास में भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा 137 लेख लिखे गए हैं जिनमें से अकेले भगत सिंह ने 97 में लेख लिखे थे और विभिन्न मुद्दों पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किए थे तथा जनता को एक क्रांतिकारी दिशा देने में सफलता पाई थी।

यहीं पर सबसे अहम सवाल उठता है कि आखिर भगत सिंह क्या चाहते थे? भगत सिंह उस देश के नजारे देखे थे,,,,,जहां न भूख हो, न नग्नता हो, न गरीबी हो, न भुखमरी हो, जहां न जुल्म हो, न अन्याय हो। जहां बस प्रेम हो, एकता हो, इंसाफ हो, आजादी हो, स्मृद्धि हो, आपस में भाईचारा हो, सब जगह सुंदरता हो। धर्म के बारे में भगत सिंह ने “दंगे और उनका इलाज” अपने लेख में कहा था कि “धर्म राजनीति से अलग है, धर्म व्यक्ति का निजी मामला है, इसे राजनीति में नहीं घुसना चाहिए।

वे आगे कहते हैं कि “जो धर्म इंसान को इंसान से जुदा करे, उनमें नफरत फैलाए, अंधविश्वासों को बढ़ावा देकर बौद्धिक विकास में बाधक हो, दिमाग को कुंद करे, वह धर्म मेरा धर्म नहीं हो सकता और वह हर कदम जो इंसान को सुखी बनाए, समता, समृद्धि, बराबरी और भाईचारे के मार्ग पर उसे आगे ले जाए, वही मेरा धर्म है। भारत मेरा स्वर्ग है। उस पर विचरण करने वाला हर व्यक्ति, हर इंसान मेरा देवता है, भगवान है।”

भगत सिंह के बारे में जो कहा गया है कि वह अच्छे कपड़े पहनने के शौकीन थे तो इसकी हकीकत का पता भगतसिंह के साथी शिव वर्मा द्वारा लिखी गई संस्मृतियां किताब के पेट 24 से पता चल जाएगा। शिव वर्मा कहते हैं कि “1923-24 के बाद से भगत सिंह ने बड़ी मुसीबत के दिन देखे थे। दिल्ली कानपुर से जब वह लाहौर वापस गया तो उसकी पगड़ी का स्थान छोटे अंगोछे ने ले लिया था। उसकी कमीज उसके शरीर का साथ छोड़ गई थी और अब उसका बंद गले का खादर का कोट, कमीज का काम कर रहा था। कोट की आस्तीनें फट जाने पर उसने पाजामे की टांगे आस्तीन की जगह जोड़ ली थीं और पाजामे का स्थान उसकी चादर ने ले लिया था जिसे वह लुंगी की तरह इस्तेमाल करने लगा था। लेकिन इस हालत में भी उसके कोट की जेब में कोई ना कोई पुस्तक अवश्य रहती थी।” अच्छे कपड़े पहनने का आरोप एकदम झूठा है।

भगत सिंह के वजन बढ़ाने की हकीकत के बारे में देखिए…शिव वर्मा लिखते हैं कि “जब भगत सिंह को अदालत में स्ट्रेचर पर डालकर लाया गया था। उसे देखकर हम सबकी आंखों में आंसू आ गए थे। वह हमारा पहले जैसा भगत सिंह नहीं था, जिसका खूबसूरत, स्वस्थ एवं बलिष्ठ शरीर हमारे बीच चर्चा का विषय बना रहता था। अदालत में जिस भगत सिंह से हमारी मुलाकात हुई थी, वह पहले वाले भगत सिंह की परछाई मात्र रह गया था,,,, पीला और कमजोर। कई महीनों की निरंतर जेल यात्राओं और लंबी भूख हड़ताल ने उसके बलिष्ठ शरीर को कांटा बना दिया था। भगत सिंह इतना कमजोर हो गया था कि बातचीत के दौरान थोड़ी-थोड़ी देर के बाद उसे आराम कुर्सी पर लेट कर सुस्ताना पड़ता था।” वजन बढ़ाने की बात एकदम झूठी और गुमराह करने वाली है।

भगत सिंह के बारे में जो बहुरूपिया होने का आरोप लगाया गया है वह भी एकदम निराधार है। भगत सिंह एक क्रांतिकारी थे। वे अपने साथियों के साथ मिलकर भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का खात्मा चाहते थे और क्रांति करके भारत में किसानों मजदूरों का राज कायम करके समाजवादी व्यवस्था कायम करना चाहते थे। इस वजह से अंग्रेज़ सरकार उनके पीछे पड़ी हुई थी और उन्हें गिरफ्तार करके जेल में बंद करना चाहती थी। अंग्रेजों से बचने के लिए भगत सिंह को भेज बदलकर रहना पड़ता था ताकि अपने आंदोलन की गति प्रदान की जा सके। चंद्रशेखर आजाद को भी काफी समय तक भेस बदलकर रहना पड़ रहा था। दुनिया के तमाम क्रांतिकारियों को अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए और अपने दुश्मन से बचने के लिए, भेज बदलकर रहना पड़ता था। भगत सिंह के भेष बदलकर रहने की बात एकदम गुमराह करने वाली है।

यहीं पर यह जानना भी जरूरी है की क्रांति से भगत सिंह का क्या मतलब था? संक्षेप में क्रांति से भगत सिंह का मतलब था कि…”क्रांति मानव जाति का जन्मजात अधिकार है। ,,,क्रांति यानी इंकलाब की तलवार विचारों की शान पर तेज होती है। ,,,,क्रांति से ही देश की जनता को असली आजादी मिलेगी। …क्रांति पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा करके कुछ लोगों को विशेष अधिकार देने वाली पूंजीवादी प्रणाली का अंत कर देगी। ,,,,क्रांति देश को अपने पैरों पर खड़ा कर देगी। ,,,,क्रांति से नए राष्ट्र और राज्य का जन्म होगा। …क्रांति किसानों मजदूरों का राज्य कायम करेगी जो शोषण और अन्याय पर आधारित समाज व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन कर देगी,,, क्रांति से उनका मतलब था मार्क्सवादी आधार पर सामाजिक पुनर्निर्माण। …क्रांतिकारी पार्टी के बिना कोई क्रांति संभव नहीं है। ,,,,क्रांति का अर्थ है जन समर्थन के जरिए क्रांतिकारी पार्टी के हाथों में सत्ता का स्थानांतरण। ,,,,क्रांति से हमारा मतलब है जनता की आर्थिक मुक्ति ही हमारा लक्ष्य है।” उनके क्रांतिकारी नारे थे,,,”साम्राज्यवाद मुर्दाबाद”, “इंकलाब जिंदाबाद”, “सर्वहारा की एकता जिंदाबाद”

यहीं पर सवाल उठता है की अपने मिशन को पूरा करने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने क्या किया? भगत सिंह ने अपने दल का नाम हिंदुस्तानी समाजवादी गणतंत्र संघ रखा। उनका लक्ष्य समाजवादी समाज कायम करना था…क्रांति के लिए किसानों और मजदूरों को संगठित करने का आह्वान किया।… क्रांति की यथार्थवादी वैज्ञानिक अवधारणा स्थापित की तथा क्रांति की अवैज्ञानिक अवधारणा को नकारा और खंडित किया और कहा कि ,…मारी क्रांति शोषण, गैर बराबरी, भेदभाव और अन्याय के खात्मे तक जारी रहेगी….उन्होंने बताया कि पूंजीवाद साम्राज्यवाद समस्त युद्धों की जड़ हैं और शोषक वर्ग व्यवस्था के खात्मे तक शांति कायम नहीं हो सकती,,, उन्होंने तार्किक और विवेक संपन्न मानवीय दृष्टिकोण को अपनाया और आगे बढ़ाया …ईश्वर और धर्म का तार्किक खंडन किया,,,, उन्होंने बताया कि ईश्वर और धर्म शोषक-शासक लोगों द्वारा अपने शोषण को बरकरार रखने के औजार हैं,,, शोषण-शासक वर्ग इस संसार की समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं,…पूंजीवाद के रहते कोई समानता नहीं हो सकती,,, प्रजातंत्र प्रत्येक व्यक्ति के समान अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकता और पूंजीवादी राज्य सत्ता का प्रयोग पूंजीवादी समाज में अपने विरोधियों को दबाने के लिए किया जाता है।”

शहीदे-आजम-भगत सिंह भारत से गुलामी, शोषण, जुल्म, अन्याय, गैर बराबरी का खात्मा करना चाहते थे, धर्मांधता का विरोध करते थे और समाज के क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए काम कर रहे थे। वे समाज में समता, समानता, समृद्धि, आपसी भाईचारा, आर्थिक और राजनीतिक आजादी कायम करना चाहते थे और इसके लिए क्रांति करके किसानों मजदूरों का राज्य और समाजवादी व्यवस्था कायम करना चाहते थे। भगत सिंह के ये समस्त विचार आज के पूंजीपति, सामंती, धर्मांध और सांप्रदायिक ताकतों और लोगों को पसंद नहीं हैं। इसलिए उन पर जान पूछ कर और एक साजिश के साथ निराधार आरोप लगाए जा रहे हैं जिनका मजबूती के साथ जोरदार विरोध और सामना करना हम सब का काम है। ऐसा करके ही महान क्रांतिकारी शहीद-ए-आजम भगत सिंह की क्रांतिकारी, समाजवादी और राजनीतिक और आर्थिक आजादी की विरासत को बरकरार रखा जा सकता है।