न गांधी याद रहे न उनकी सीख और सपने 

  मुनेश त्यागी 

 

महात्मा गांधी एक भारतीय यानी हिंदुस्तानी थे। वे एक कमाल के आदमी थे। वे हिंदू मुस्लिम एकता के सबसे बड़े हिमायती थे। वे भारतीयता और हिंदुस्तानियत के मर्म को जानते थे। वे अपने को एक हिंदू की तरह नहीं देखते थे। वे कहा करते थे कि “आजाद भारत में हिंदुओं का नहीं, हिंदुस्तानियों का राज होगा। हिंदू मुस्लिम एकता से ही सच्चा स्वराज आएगा। हम हिंदू मुस्लिम नहीं, भारतीय यानी हिंदुस्तानी हैं। मैं अपने खून की कीमत पर भी हिंदू- मुस्लिम एकता की रक्षा करूंगा। मैं हिंदू नहीं हिंदुस्तानी हूं।”

गांधी जी के उद्देश्य और लक्ष्य कमाल के थे। वे शोषण और अन्याय को सबसे बड़ी हिंसा मानते थे। वे गरीबी का किसी भी कीमत पर खात्मा चाहते थे और एक ऐसी समाज व्यवस्था कायम करना चाहते थे जिसमें सभी लोग बराबरी से और बिना डर के रहेंगे। गांधीजी बिना श्रम की रोटी को चोरी की रोटी समझते थे। गांधी जी के सिद्धांत थे,,, अहिंसा, सत्य, प्रेम और भाईचारा। उनका कहना था कि “हम अलग-अलग रह सकते हैं, मगर हम एक ही वृक्ष की टहनियां और पत्तियां हैं।”

उनका मानना था कि हिंसा और नफरत का हथियार किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकता। हम सभी हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई भारत माता के बेटे- बेटियां हैं। उनका मानना था कि हमें व्यक्तिगत स्तर से भी अपने जनहितकारी प्रयास जारी रखने चाहिएं। वे औरतों के विकास को बहुत जरूरी समझते थे। गांधी जी का मानना था कि जब तक मानवता का 50% हिस्सा यानी औरतें, आजाद नहीं होतीं, तब तक भारत आजाद नहीं हो सकता और वह विकास के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता।

गांधी जी हमेशा ही अपने राजनीतिक चेलों को सावधान करते रहे। उनका मानना था कि सत्ता से सावधान रहो, सत्ता भ्रष्ट कर देती है, यानी याद रखो कि तुम गांव के गरीबों की सेवा करने के लिए सत्ता में हो, अपना घर भरने के लिए नही। गांधी जी ने भारत की आजादी के लिए अपने जीवन में 16 बार भूख हड़तालें की। गांधी जी को देखकर भाईचारे और मोहब्बत की लहरें चलती थीं। गांधीजी सभी आवश्यक चीजों और जरूरतों का न्याय पूर्ण वितरण चाहते थे। उनका मानना था कि सामाजिक और आर्थिक असमानता, समाज में हिंसा और नफरत पैदा करती है।

गांधी आजादी के दीवाने थे। वे 2338 दिन जेल में रहे, 249 दिन दक्षिण अफ्रीका की जेलों में रहे और 2089 दिन भारत की जेलों में रहे। गांधी जी का मानना था कि मानव जीवन का प्रत्येक क्षण मानव सेवा में खर्च होना चाहिए। अहिंसा, सविनय अवज्ञा, सत्याग्रह, असहयोग, हड़ताल, बहिष्कार, भूख हड़ताल और सार्वजनिक प्रदर्शन गांधी जी के मूलमंत्र थे। गांधीजी को “महात्मा” की उपाधि रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा दी गई थी। उन्होंने उन्हें भिखारी के भेष में महान आत्मा बताया था।

गांधी जी ने अपने साथ काम करने वालों से स्पष्ट रूप से कहा था कि “मेरे साथ रहने और काम करने वालों को फर्श पर सोना होगा, साधारण कपड़े पहने होंगे, सुबह उठना होगा, साधारण खाने पर जिंदा रहना होगा और अपना टॉयलेट खुद साफ करना होगा।” गांधी जी की सबसे बड़ी देन है कि उन्होंने अंग्रेजों द्वारा कायम किए गए डर और हिंसा के साम्राज्य की बुनियाद हिला दी थी। उन्होंने 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महा संग्राम के बाद अंग्रेजों द्वारा कायम किए गए हिंसा और डर के साम्राज्य को तोड़ा, जनता के दिमाग में घर कर गये डर को दूर किया, उसे बोलने लिखने पढ़ने और आजादी के संघर्षों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। लोगों को हड़ताल, भूख हड़ताल, और प्रदर्शन करना सिखाया और आजादी के लिए सड़कों पर उतारा।

हालांकि गांधी गांधी जी के समस्त विचारों से सहमत नहीं हुआ जा सकता। गांधी जी साम्यवादी और समाजवादी विचारों को पसंद नहीं करते थे। वे वर्णवादी व्यवस्था और सोच के हामी थे। वे समाजवाद को “लाल तबाही” कहते थे। वे किसानों मजदूरों के सशस्त्र आंदोलन के खिलाफ थे। गांधी जी पूंजीपतियों और धन्नासेठों को धन दौलत का “ट्रस्टी” समझते थे। गांधी जी अपने विरोध को पसंद नहीं करते थे, इसी वजह से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

वैसे तो गांधी जी अहिंसा के प्रबल दावेदार थे मगर हालात आदमी को बदलने के लिए किस तरह से मजबूर कर देते हैं, गांधी भी इससे नहीं बच पाए थे। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करने के लिए गांधी जी को पहले असहयोग आंदोलन, फिर अवज्ञा आंदोलन और उसके बाद “अंग्रेजों भारत छोड़ो” और “करो या मरो” जैसी संग्रामी रणनीतियां भी अपनानी पड़ी थीं और करो या मरो के आंदोलन में अंग्रेजों की हिंसा का जवाब, आजादी प्रेमी भारतीय जनता द्वारा, हिंसा से दिया गया था। भारत को गुलाम बनाए रखने वाले अंग्रेज, भारतीय जनता के इन तेवरों से खौफजदा हो गए थे। 1946 में नेवी विद्रोह के बाद जब भारतीय नौसेना ने अपने जहाजों से अंग्रेजी झंडे को उतार कर, उसके स्थान पर कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे लगा लिए थे और बंदूक का मुकाबला बंदूक से करने के लिए तैयार हो गए थे तो इसके बाद अंग्रेज पूरी तरह से भयभीत हो गए थे। इस महत्वपूर्ण घटना के बाद अंग्रेज भारत को आजाद करने के लिए मजबूर हो गए थे।

यह अफसोस का विषय है कि गांधी के चेलों ने गांधी के अधिकांश मंत्रों को त्याग दिया और वे पद, प्रतिष्ठा, प्रभुत्व कायम करने और धन कमाने के रास्ते पर चल पड़े और पूंजीपतियों के पिछलग्गू बन गए। आज हम देख रहे हैं कि अधिकांश सरकारी कार्यालयों में गांधी की फोटो मौजूद है, मगर वहां गांधी के सपनों को सबसे ज्यादा धराशाई किया जा रहा है। वहां जनता की समस्याओं का निपटारा कम बल्कि उसके साथ शोषण और अन्याय ज्यादा होता है। आज संविधान और कानून तो है मगर आज सबसे ज्यादा संवैधानिक बुनियादी प्रावधानों और कानून के शासन को सबसे ज्यादा रौंदा जा रहा है।

भारत की अधिकांश जातिवादी और सांप्रदायिक ताकतों की सरकारें, गांधी का नाम तो लेती हैं मगर वे सबसे ज्यादा गांधी के सपनों और गांधी के भारत को धराशाई कर रही हैं। वे जनता में सांप्रदायिक नफरत का जहर घोल रही हैं, उसके आपसी भाईचारे को तोड़ रही हैं और ये अधिकांश सरकारें जैसे जनता के दुख दर्द को भूल गई हैं और केवल पूंजीपतियों और अमीर लोगों के हितों को आगे बढ़ा रही हैं।

आज भारत की जनता को गांधी के भारत और गांधी के सपनों को तोड़ने वाली ताकतों और सरकारों से बचकर रहने की जरूरत है और अपने संयुक्त संघर्ष के माध्यम से गांधी के भारत और गांधी के सपनों को जमीन पर उतारने की सबसे ज्यादा जरूरत है, तभी भारत जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, विकास, रोजगार, शिक्षा, सामाजिक और आर्थिक न्याय और आपसी भाईचारे के मार्ग पर आगे बढ़ सकेगा। यही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि और बधाइयां होंगी।