मुनेश त्यागी
आज महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का जन्मदिन है। वे 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड में पैदा हुए थे। उन्होंने अपनी प्रकृति की महान और विस्तृत जांच पड़ताल और ठोस तथ्यों के आधार पर बताया था कि मनुष्य की उत्पत्ति प्रकृति से हुई है। किसी देवी देवता, गोड या भगवान का, मनुष्य की उत्पत्ति में कोई रोल नहीं है। उन्होंने अपनी जांच में बताया था कि जानवर, पेड़ पौधे और तमाम तरह के जीव जंतु लगातार बदलते रहते हैं। जो बदलते रहते हैं, वे निरंतर बने रहते हैं और वातावरण के अनुसार अपने को ढालते रहते हैं और जो ऐसा नहीं कर पाते हैं वे खत्म हो जाते हैं।
चार्ल्स डार्विन ने ही विकासवाद की थ्योरी को जन्म दिया था और “ओरिजन आफ स्पाइस” नामक विश्व प्रसिद्ध किताब लिखकर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था। चार्ल्स डार्विन शांत, गंभीर और बहुत पैनी दृष्टि वाले थे। उनके पिता डॉक्टर थे जो उन्हें डॉक्टर ही बनना चाहते थे, मगर चार्ज डार्विन के ज्ञान विज्ञान और तर्क की पैनी दृष्टि और समझ उन्हें दूसरी तरफ ले गई। गहन अध्ययन करने के कारण उनके बच्चे साथी उन्हें डार्विन कहने लगे थे। एक अस्पताल में बीमार बच्चे की पीड़ा देखकर उन्होंने डॉक्टर बनना स्वीकार नहीं किया।
उनके पिता उन्हें धर्म उपदेशक बनाना चाहते थे, मगर डार्विन को यह सब पसंद नहीं था। डार्विन को बिना वेतन के पानी के जहाज बीगल पर काम मिला जहां उन्हें अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का भ्रमण और अध्ययन करना था। अपनी इस लंबी यात्रा में उन्होंने समुद्री जीवन, पेड़ पौधों और वनस्पतियों का अध्ययन किया और उस सारे अध्ययन और अनुसंधान को अपनी डायरी में नोट करते चले गए। पांच वर्ष की इस लंबी यात्रा में वातावरण के बदलावों के कारण वे बहुत बीमार भी रहने लगे थे।
अपनी इस लंबी यात्रा के दौरान उन्होंने अमेरिका की गुलामी देखी, जिसे उन्होंने कतई पसंद नहीं किया और इस गुलामी की कड़े शब्दों में निंदा की और इसका विरोध किया। बीगल जहाज में यात्रा करने के बाद उन्होंने एक “बीगल की यात्रा” नामक पुस्तक लिखी फिर 1858 में “प्रजातियों की उत्पत्ति” यानी “ओरिजन आफ स्पाइसिज” नाम की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। इस पुस्तक के बाद ईसाई धर्म में इतनी हलचल मची कि उनके बिशपों ने इसे सिरे से ही खारिज कर दिया। धर्म अभी तक बताता आ रहा था कि मनुष्य की उत्पत्ति ईश्वरीय चमत्कार से हुई है।
डार्विन के विकासवाद ने पूरी दुनिया को तर्कपूर्ण तरीके से बताया कि मनुष्य की उत्पत्ति किसी भगवान के द्वारा नही बल्कि बंदर से हुई है। इस विचार का धर्माचार्यों ने खूब मजाक बनाया। 1860 में अंग्रेज जीव विज्ञानी विल्वर फोर्स ने बिशपों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि चार्ल्स डार्विन के विचार सही हैं और उन्होंने विश्व के बिशपों के विरोध को सिरे से ही खारिज कर दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि डार्विन के विचार तर्क और विवेक पर आधारित थे। इसीलिए डार्विन के नवीन विचारों का पूरी दुनिया में समर्थन किया गया। हकीकत यह है कि विज्ञान तर्क पर आधारित बातों का समर्थन करता है। विज्ञान उसे सब को चुनौती देता है जो तर्क और विवेक पर आधारित नहीं है। इसीलिए डार्विन पूरी दुनिया में छा गए।
उस समय विश्व के पैमाने पर दो महान प्राणी एक साथ काम कर रहे थे। एक डार्विन थे जो भगवान को नकार कर विकासवाद का सिद्धांत पेश कर रहे थे और दूसरी तरफ कार्ल मार्क्स थे जो मनुष्य के शोषण और जुल्म का पता लगाकर, क्रांति और मनुष्य की कल्याणकारी समाजवादी और साम्यवादी व्यवस्था और विचारधारा की बात कर रहे थे। ये दोनों महान क्रांतिकारी वैज्ञानिक पुरुष एक दूसरे से इतने प्रभावित थे कि दोनों ने एक दूसरे को अपनी अपनी पुस्तकें भेंट कीं। डार्विन ने मार्क्स को “ओरिजन आफ स्पाइस” अपनी पुस्तक भेंट की और और कार्ल मार्क्स ने डार्विन को अपनी विश्व प्रसिद्ध किताब “पूंजी” का प्रथम भाग पेश किया जो अंत तक उन दोनों के पास मौजूद रहीं।
चार्ल्स डार्विन के इन्हीं सिद्धांतों को आगे बढ़ाते हुए रूस और चीन और बाद में सभी समाजवादी मुल्कों ने और वहां के जागरूक बुध्दिजीवियों ने डार्विन की विचारधारा को पढ़ाई का मुख्य विषय बनाया और धर्माचार्यों द्वारा बताई जा रही ईश्वर द्वारा मनुष्य की उत्पत्ति को सिरे से नकार दिया। डार्विन ने अपनी थ्योरी में कहा था कि दुनिया में जीवन की उत्पत्ति एक कोशिका जीव से हुई है। बाद में इसी विकास के फलस्वरूप दुनिया भर में प्रकृति में पेड़ पौधे, जीव जंतु पैदा हुए और परिस्थितियां इन समस्त जीवों को प्रभावित करती रही।
डार्विन ने मुख्य रूप से कहा था कि मानव का विकास बंदर से हुआ है। डार्विन के इन्हीं नवीनतम वैज्ञानिक और विकासवादी एवं तर्कपूर्ण विचारों से पूरी दुनिया में वैचारिक तहलका मच गया। जब हम आज देखते हैं तो मनुष्य का शरीर बहुत हद तक बंदरों से मिलता है। पूरी दुनिया में समाजवादी प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक प्रकृति के लोगों द्वारा डार्विन के सिद्धांतों का को मान्यता दी जाती है और उन्हें फॉलो किया जाता है। जबकि दुनिया भर की तमाम धर्मांध, अंधविश्वासी और अवैज्ञानिक सोच के लोग मनुष्य को ईश्वरीय चमत्कार की उत्पत्ति मानते हैं और वे डार्विन के सिद्धांतों को सिरे से खारिज करते रहते हैं।
आज हालात इतने खराब हो गए हैं कि अधिकांश पूंजीवादी और सामंती व्यवस्था के मुल्कों और समाजों में जैसे अमेरिका, इंग्लैंड, भारत और दूसरे मुल्कों में सबने डार्विन के विकासवाद की थ्योरी को पुस्तकों से निकाल दिया है। भारत में भी यही किया गया। डार्विन के सिद्धांतों का विरोध करना उस समय भी एक बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा था और आज भी डार्विन के सिद्धांतों का विरोध दुनिया भर की तमाम सामंती, पूंजीवादी, धर्मांध, अंधविश्वासी और विज्ञान विरोधी ताकतें कर रही हैं जो तर्क, विवेक और ज्ञान विज्ञान में विश्वास नहीं करती हैं क्योंकि अगर उन्होंने डार्विन के सिद्धांतों में विश्वास कर लिया तो उनकी तो सारी धर्मांध, अंधविश्वासी और अवैज्ञानिक सोच की दुनिया ही ढह जाएगी और उनके धार्मिक धंधे जड़ मूल से खत्म हो जाएंगे।
एक साजिश के तहत, डार्विन के सिद्धांतों को हमारे बच्चे और देश दुनिया के लोग न जान सकें, इसलिए जान पूछ कर डार्विन के सिद्धांतों को पाठ्यक्रमों से और शिक्षा से दूर किया जा रहा है। मगर डार्विन के विज्ञानवादी और विकासवादी सिद्धांतों का कमाल है कि वे आज भी दुनिया के महान वैज्ञानिक बने हुए हैं। दुनिया आज भी उनके विकासवादी वैज्ञानिक विचारों का पीछा नहीं छोड़ रही है। हमारी तो सबसे बड़ी मान्यता है कि हमें अपने बच्चों को, अपने यारों रिश्तेदारों को डार्विन के सिद्धांतों से जरूर परिचित कराना चाहिए और उन्हें पढ़ने पर जोर देना चाहिए। तभी एक तार्किक, विवेकपूर्ण, वैज्ञानिक दुनिया का निर्माण किया जा सकता है और और तमाम तरह के अंधविश्वासों, पाखंडों और कर्मकांडों से मुक्ति पाए जा सकती है।