अजय शुक्ल की ‘बेतुकी बातें’ : बाबा खड़ा बाज़ार में ले गुलाब का पेय

बेतुकी बातें: 11

बाबा खड़ा बाज़ार में ले गुलाब का पेय

अजय शुक्ल

 

बाबा: आ गया, आ गया, आ गया

ख़रीददार: क्या आ गया बाबा?

बाबा: शीतल, सुशीतल, वैदिक शरबत

ख़रीददार: इसकी ख़ास बात क्या है?

बाबा: इसे पीने से मन, शरीर…सब कुछ ठंडा हो जाता है। आत्मा भी।

ख़रीददार: लौकी का जूस या गोधन अर्क तो नहीं पड़ा इसमें?

बाबा: अरे,नहीं भाई। यह गुलाब से बना है। ताज़ी, अक्षत गुलाब की कलियों से, जिन्हें देश को बरबाद करने वाला एक नेता शेरवानी में लगाता था। उसी की प्रिय कलियों को कूट पीस कर इसे तैयार किया गया है।

ख़रीददार: बाबा जी, इसमें रूह-ऊह तो नहीं पड़ी जिन्नातों की।

बाबा: क्या कहते हो बेटा। जी ख़राब कर दिया। यह शुद्ध, सात्विक, स्वदेशी पेय है। इसमें रूह नहीं, आत्मा पड़ी है। मेरी। मरी हुई।

ख़रीददार: आपने अपनी आत्मा को मार डाला?

बाबा: बड़े उद्देश्य के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।

ख़रीददार: क्या है आपका उद्देश्य?

बाबा: कल्याण।

ख़रीददार: किसका?

बाबा: यह भी कोई पूछने वाली बात है। बच्चा बच्चा जानता है। गूगल में सर्च कर लो। हजारों पेज मेरे कृतित्व से रंगे पड़े हैं।

ख़रीददार: लेकिन बाबा यह बताइए कि आपने स्वदेशी ड्रिंक में गुलाब क्यों डाला। गुलाब तो विदेशी फूल है…

बाबा: कौन भकुआ कहता है विदेशी?

ख़रीददार: यह बात तो कोई भी वनस्पति शास्त्री बता देगा। आपके पास भी तो एक बॉटनिस्ट है। पूछिएगा कि गुलाब का नेटिव प्लेस कौन सा है।

बाबा: तुम्हारी बातों में देशद्रोह की बदबू आ रही है। गुलाब शुद्ध भारतीय है। संस्कृत में इसे शतपत्री कहते हैं।

ख़रीददार: संस्कृत में तो शतदल भी होता है। यानी कमल। दल और पत्री में क्या फर्क?

बाबा: तुम बकवास कर रहे हो। संस्कृत में पाटल पुष्प शब्द भी है गुलाब के लिए।

ख़रीददार: छोड़ो बाबा। अब बोलूंगा तो ज्यादा हो जाएगा। आप समझ भी नहीं पाओगे।

बाबा: तू मेरा अपमान कर रहा है। ग्राहक न होता तो तुझे अष्टांग योग कराके समाधिस्थ कर देता।

ख़रीददार: मैं तो आपको भारतीय पेय बनाने के लिए प्रेरित कर रहा हूं। शरबत खुद विदेशी है। बाबर खरबूजों के साथ लाया था।

बाबा: तो मैं क्या बनाऊं?

ख़रीददार: सोमरस बनाइए न!

बाबा: बड़ा कठिन है..

ख़रीददार: तो लस्सी बनाइए…ठंडाई बनाइए। बस दिमाग़ का दही मत बनाइए।