कविता
अधूरे सपनों का स्वेटर
ओमप्रकाश तिवारी
क
बिछाते रहे हर रोज
ख्वाहिशों की चादर
चिंता करते हुए
बेटे की सलामती की
हर रोज सो जाते रात को
सुबह मुंडेर के आसपास
जब बोलती शुक्लाइन चिड़िया
चहक उठते पिता जी
आज तो आएगा ही
उनके राजा बेटा का सन्देशा
शायद मनीआर्डर भी
निगाह लगी रहती
डाकघर से आने वाली
पतली सी पगडंडी पर
अक्सर उनका अंदाजा
सही ही निकलता
खुश हो जाते वह
जैसे मिल गयी हो
जमाने भर की खुशियां
अपनी जिंदगी खर्च करके
अब चारपाई पर बैठ गए हैं
कुछ सपनों के पूरा होने का
अब भी इंतजार है उन्हें
कुछ को पूरा होते देख रहे हैं
ख्वाहिशों की चादर अब
सिरहाने रख लिए हैं…