क्यों उठ रहे हैं ए​ग्जिट पोल पर इतने सवाल?

यह लेख एक्जिट  पोल की घोषणा के तुरंत बाद मिला था लेकिन प्रकाशित करने में देर हुई। ओम प्रकाश तिवारी  जी ने जो सवाल उठाए हैं उन पर विचार किया जाना चाहिए।सं-

ओम प्रकाश तिवारी

एक जून की रात से भारत में एग्जिट पोल चर्चा में है। इसकी विश्वसनीयता पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। वहीं इसकी प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

क्या होता है ​ए​ग्जिट पोल और क्यों किया जाता है? क्या कोई राजनीतिक दल इसका फायदा उठा सकता है? यह कितना सटीक होता है?

सटीक होने के लिए इसे किस तरह से किया जाना चाहिए। किस तरह के ए​ग्जिट पोल पर विश्वास किया जा सकता है? ये तमाम सवाल हैं जो आजकल उठाए जा रहे हैं जोकि एकदम स्वाभाविक हैं।

ए​ग्जिट पोल मतदान केंद्रों से बाहर निकलने के तुरंत बाद मतदाताओं से बातचीत के आधार पर किया जाने वाला सर्वेक्षण होता है।

इसका उद्देश्य एक तरह से चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करना होता है। हालांकि यह एक संकेत पर भर ही देता है। इससे किस दल की सरकार बन सकती है इसका संकेत मिल जाता है।

लेकिन यह संकेत भी कितने सही होंगे यह ए​ग्जिट पोल करने के तरीके पर निर्भर करता है। इसकी सटीकता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है।

इसे विश्वसनीय बनाने के लिए बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है। यदि ऐसा किया जाता है तभी इसकी कोई विश्वसनीयता होती है अन्यथा यह तीर मारने और तुक्का लगाने जैसी कहावतों को चरितार्थ करता है।

एग्ज़िट पोल मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं, लेकिन तभी जब वह सही तरीके से किए जाएं। मानकों का सही तरह से पालन किया जाए। उसका उद्देश्य पवित्र हो।
जिन साधनों पर यानी टीवी चैनलों पर उनका प्रसारण किया जाता है उनकी विश्वसनीयता पर कोई संकट या संदेह नहीं होना चाहिए। यदि प्रसारण के साधन ही अविश्वसनीय होंगे और उन्हें संदेह की नजरों से देखा जाएगा तो ए​ग्जिट पोल की भी कोई विश्वसनीयता नहीं होगी।

यही वजह है कि ए​ग्जिट पोल जब से टीवी चैनलों पर प्रसारित किए गए हैं तभी से ब​ल्कि उससे पहले से ही उस पर सवाल उठने लगे थे। विपक्षी दलों को पहले से ही संदेह था कि ए​ग्जिट पोल सत्ताधारी दल भाजपा के मनमुताबिक यानी उसके नारे के मुताबिक ही बनाया जाएगा।

हुआ भी यही। इसलिए इस पर सवाल उठ रहे हैं। दूसरे टीवी चैनलों और उनके एंकरों और पत्रकारों की भी कोई विश्वसनीयता नहीं बची है। इसलिए यह सवाल और बड़ा हो गया है।