मुनेश त्यागी
पिछले कुछ दिनों से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का भारत की आजादी को लेकर दिया गया बयान चर्चा में है जिसमें कहा गया है कि भारत को असली आजादी 15 अगस्त1947 में नहीं, बल्कि 22 जनवरी 2024 में रामलला की मूर्ति स्थापित करने के बाद मिली है। उनका यह बयान एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है और आजादी के लिए हमारे शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए अनगिनत बलिदानों और संघर्षों का घनघोर अपमान है। भारत की आजादी में करोड़ों लोगों ने भाग लिया था, अनगिनत बलिदान किए थे जिसमें हजारों लोग शहीद हुए थे और लाखों लोग जेलों में बंद किए गए थे। इस लंबे और बलिदानी संग्राम के बाद ही हमें आजादी मिली थी।
अंग्रेजों के आने से पहले हमारा देश दुनिया का एक समृद्धशाली और विकसित देश था। अंग्रेज व्यापारी बनकर यहां आये थे और बाद में एक साजिश के तहत उन्होंने हमारे देश पर कब्जा कर लिया था। शाहजहां के शासन काल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसी सोने की चिड़िया से प्रभावित होकर पिछड़े हुए अंग्रेज़ यहां पर आये थे। पंडित सुंदरलाल शर्मा के अनुसार 1830 में भारत दुनिया का सबसे विकसित और समृद्धशाली देश था इसके बाद अंग्रेजों ने इसको इस कदर लूटा कि उन्होंने 100 साल में इसे कंगाली और गरीबी के कगार पर ला खड़ा किया और और उन्होंने भारत को गुलाम बना लिया। यह भी ऐतिहासिक हकीकत है कि अंग्रेजो के आने के बाद से ही यहां पर उनके खिलाफ संघर्ष और विद्रोह शुरू हो गए थे। सन्यासी विद्रोह उसी की मुख्य शुरुआत थी और भारत की आजादी का पूरा संग्राम भी उसी विद्रोही सोच का हिस्सा था।
भारत की आजादी का इतिहास बहुत गौरवशाली है। भारत की आजादी के लिए और अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिए भारत के लोगों ने 123 से भी ज्यादा विद्रोह किए थे, उनमें लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जानें कुर्बान की थीं। 1857 का “भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” तो दुनिया के सबसे बड़े स्वतंत्रता संग्रामों में से एक है। इन विद्रोहों में सन्यासी विद्रोह, बुनकरों का संग्राम, नमक संग्राम, भील विद्रोह, वहाबी विद्रोह, गोंड विद्रोह, नील विद्रोह, कोकी विद्रोह और बिरसा विद्रोह जैसे सैकड़ों से भी ज्यादा विद्रोह और संघर्ष शामिल हैं।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल भगत सिंह और उनके साथियों ने 137 से भी ज्यादा दस्तावेज़ लिखे हैं जिनमें आजादी के सपनों को देखा जा सकता है। इसी क्रांतिकारी संग्राम ने भारत के भविष्य की दिशा तय की थी और सबसे पहले शोषण और अन्याय के शिकार किसानों, खेतिहर मजदूरों, कारखाना और दुकान मजदूरों, छात्रों, नौजवानों की आजादी और मुक्ति का आमूल चूल परिवर्तनकारी कार्यक्रम पेश किया था। इसी कार्यक्रम का जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, हिंदुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन, आजाद हिंद फौज और कांग्रेस ने समर्थन किया था। महात्मा गांधी आजादी के लिए 2338 दिन जेल में रहे और जवाहरलाल नेहरू भारत के स्वतंत्रता संग्राम में 13 साल से अधिक समय तक अंग्रेजों द्वारा जेल में बंद रखे गए थे और जापान से रूस जाते समय अंग्रेजों ने आजादी के सबसे बड़े समर्थक सुभाष चंद्र बोस की हवाई जहाज में हत्या कर दी थी। चंद्रशेखर आजाद ने कहा था कि “आजाद हूं आजाद ही रहूंगा” और वे अंत में अंग्रेजों से लड़ते हुए मारे गए। भगत सिंह और उनके साथियों ने फांसी पर चढ़ने से पहले, अपने आखिरी पत्र में अंग्रेज़ जेलर को पत्र लिखकर मांग की थी कि “हम राजनीतिक बंदी हैं, हमें फांसी नहीं, गोली से उड़ाया जाए।” इन महान स्वतंत्रता सेनानियों को क्या कभी भुलाया जा सकता है? इन तथ्यों का कोई जवाब मोहन भागवत के पास नही है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हमारे शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों ने कभी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी। भगत सिंह के क्रांतिकारी साथियों को अंग्रेजों ने जान पूछ कर एक साजिश के तहत अंडमान और निकोबार यानी “काला पानी” की सजा दी थी ताकि भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ने से रोका जा सके। हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के महानतम शहीदों और महान नेताओं में से कुछ के नाम इस प्रकार हैं जैसे शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, आज़ादों के आजाद चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, किसी भी कीमत पर आजादी प्राप्त करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, कामरेड मुजफ्फर अहमद, मेरठ के क्रांतिकारी विष्णु शरण दुबलिश, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके साठ साथी सिपाही हमारे कम्युनिस्ट नेता ईएमएस नम्बूद्रीपाद, ऐ के गोपालन, पीसी जोशी, बीटी रणदिवे, हरिकिशन सिंह सुरजीत, प्रमोद दास गुप्ता, पी सुंदरइयां, ज्योति बसु आदि आदि। इन्हीं लाखों स्वतंत्रता सेनानियों में हमारे गांव रासना मेरठ के 17 स्वतंत्रता सेनानी शामिल थे जिनमें तीन हमारे पूर्वज,,, हमारे दादाजी माहश्य सागर सिंह, ताऊजी ओम प्रकाश त्यागी और प्रणाम सिंह त्यागी और रतिया महाश्य, बाबू सूरत सिंह, काले सिंह आदि। हमारे स्वतंत्रता सेनानी ताऊजी और हमारे गांव के दूसरे स्वतंत्रता सेनानी हमें 15 अगस्त, 26 जनवरी और 2 अक्टूबर और दूसरे मौकों पर ये हौसला अफजाई रचनाएं सुनाया करते थे,,,,
मैं फानी नहीं हूं, फनाह क्या करेंगे
मेरा मारकर वो, भला क्या करेंगे?
हथेली पे जो सर लिए फिर रहा हो
वो सर उसका धड से जुड़ा क्या करेंगे?
और
दिल फौलाद का, पत्थर का जिगर रखते हैं
जान जोखों में और हथेली पे सिर रखते हैं,
क्यों ना तड़पाए हमें, वतन की उल्फत
सोजे-दिल रखते हैं, दर्दे-जिगर रखते हैं।
और
ना मुंह छुपा के जिए, ना सर झुका के जिए
सितमगरों की नजर से नजर मिलाकर जिए,
एक रात अगर कम जिए तो काम ही सही
ये बहुत है कि मशालें जला जला के जिए।
और
क्या भगत सिंह वीर को यूं ही भुलाया जाएगा
तीन के बदले में यह जालिम मिटाया जायेगा।
तोड़ दो असेंबली घर फूंक दो सैय्याद का
तीन के बदले में यह जालिम मिटाया जाएगा।
और
एक बहन अपने भाई से एक चुनरिया मांग रही है तो वह चुनरिया कैसी हो, इस बारे में बहन अपने भाई से कहती है,,,,,
चुनरिया मोको ऐसी मंगा दे मोरे बीर,,,,
आजाद हिंद के वीर सिपाही सुभाष भी हो खड़े हुए हाथ तिरंगा झंडा लेकर आजादी को अड़े हुए
राजगुरु सुखदेव भगत सिंह फांसी पर हो चढ़े हुए लाखों ही नर नार जेल दुश्मन की में हों पड़े हुए
मार खा रहे हो डंडों की भोजन मिलते हों सड़े हुए चुनरिया मोको ऐसी मंगा दे मोरे वीर,,,,,
अजीत सिंह और रासबिहारी गैर वतन को जाते हो
वो सूफी अंबा प्रसाद फारिस में मारे जाते हों चंद्रशेखर आजाद हमारे खुद ही गोली खाते हो
लहरी बिस्मिल रोशन औ अशफाक नजर भी आते हों यतींद्रनाथ दास कर अनशन अपने प्राण गंवाते हों
इन सब का बदला लेने क्षत्रि उधम सिंह जाते हों पाजी डायर को हन डारा धन्य सुभट रणधीर।
चुनरिया मोको ऐसी मंगा दे मोरे वीर,,,,
और
उन्हीं के सामने उनकी शिकायत का इरादा है
नतीजा कुछ भी निकले आज बगावत का इरादा है।
क्रांतिकारियों के कार्यक्रम में मोलाना हसरत मोहानी ने सबसे पहले “संपूर्ण आज़ादी” और “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाया गया। बाद में इसी नारे के साथ “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” का नारा भगत सिंह और उनके साथियों ने बुलंद किया और अंग्रेजों की नींद हराम की और भारत के आजादी के आंदोलन को महत्वपूर्ण दिशा दी। इसी के साथ साथ भारत के गरीबों, वंचितों, शोषितों, अभावग्रस्तों के लिए समता, समानता और न्याय की मांग की गई थी। बाद में आजादी मिलने पर इन कार्यक्रमों को संविधान में शामिल करके सारी जनता को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक न्याय, समता, समानता और सामाजिक न्याय दिलाने के सिद्धांत पेश किए गए थे। इस संविधान सभा का नेतृत्व डॉक्टर भीमराव अंबेडकर कर रहे थे। इसी क्रांतिकारी बदलाव के कार्यक्रम में दी गई बुनियादी बातों को ध्यान में रखते हुए आजादी के बाद संविधान में दिए गए सिद्धांतों में मुफ्त शिक्षा और मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल और स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय खोले गए, दूसरे औद्योगिक शैक्षिक प्रतिष्ठान कायम किए गए। इसी के तहत नहरों, सड़कों और रेलों का जाल बिछाया गया, बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जनता के वंचित तबकों को आरक्षण की सुविधा दी गई, मंडल कमीशन की मांगों को स्वीकार किया गया। ये सब आजाद भारत के महान कारनामें और उपलब्धियां हैं।
संघ प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान कि भारत की आजादी 1947 में नहीं, बल्कि राम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मिली, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों और लाखों स्वतंत्रता सेनानियों का सबसे बड़ा अपमान है, संविधान की सबसे बड़ी अमान्यता और अवमानना है। इसे किसी भी दिशा में स्वीकार नहीं किया जा सकता। राहुल गांधी ने तो इस बयान को राष्ट्रद्रोह बताया है।
दरअसल आएसएस की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी ही नहीं थी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उसका कोई आदमी जेल नहीं गया, कोई सजा नहीं काटी, कोई बलिदान नहीं किया, किसी ने फांसी और जेल का सामना नहीं किया। उसने तो आजादी के आंदोलन में “बांटों और राज करो” की अंग्रेजों की साजिश के तहत, अंग्रेजों का साथ दिया था। उसने हिन्दू मुस्लिम नफरत का अभियान चलाकर जनता की एकता को खंड खंड किया था।उसने भारतीय संविधान और तिरंगे झंडे का अपमान और विरोध किया था और उनके स्थान पर मनुस्मृति और भगवा झंडे का समर्थन किया था। आरएसएस ने भारत में समता, समानता, भाईचारे और न्याय की स्थापना की कोई लड़ाई नहीं लड़ी एवं सामंतवाद, पूंजीवाद, जनविरोधी नीतियों के कारण हजारों साल से चले आ रहे शोषण, अन्याय, दमन और अत्याचार का कभी कोई विरोध नहीं किया। भारत की जनता की आजादी के लिए उसका कभी कोई कार्यक्रम ही नहीं था। हिटलर और मुसोलिनी के विभाजनकारी और नफरत भरे अभियान को आगे बढ़ाते हुए, उसका तो निर्माण ही भारत की जनता की एकता तोड़ने और उसका बंटवारा करने के लिए किया गया था और जनता में हिंदू मुसलमान की नफरत के अभियान को बनाए रखने के लिए और “बांटो और राज करो” की विषैली नीति के तहत किया गया था। उसका वही अभियान आज भी जारी है।
आरएसएस आजादी के आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के साथ था। उनकी “बांटों और राज करो” की नीति को आगे बढ़ा रहा था। वह भारत की आजादी और संविधान विरोधी था। उस समय वह अंग्रेज साम्राज्यवादियों का हितैषी था और आज वह दुनिया और देश के सबसे बड़े तमाम लुटेरे साम्राज्यवादियों के साथ है और आज भी जनता की एकता तोड़ने और हिंदू मुसलमान नफरत फैलाने के अभियान को आगे बढ़ाने में लगा हुआ है। आजादी के मूल्यों को आगे बढ़ाने और बरकरार रखने में उसका कोई विश्वास नहीं है। वह आज भी संविधान में दिए गए जनकल्याणकारी बुनियादी सिद्धांतों को हिकारत की नजर से देखा है।
आरएसएस प्रमुख का यह बयान आजादी के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा प्राण न्यौछावर करने वालों, सम्पत्ति गंवाने वालों, शहीद होने वालों और लाखों स्वतंत्रता सेनानियों का घोर अपमान है जिन्होंने कई कई साल जेलों की सजा भुगती, अपनी जमीन संपत्तियां गंवाईं और अपनी जानें कुर्बान कीं। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की नजरों में भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और शहीदों की कुर्बानियों, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई और संविधान के कोई मायने नहीं है। उनका यह बयान जले पर नमक छिड़कने जैसा है और भारत की आजादी के लिए लड़ने और कुर्बान होने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों का घनघोर अपमान है। इसे किसी भी दशा में स्वीकार नहीं किया जा सकता। जनता को एकजुट होकर इस बयान का जोरदार विरोध करना चाहिए और भारत की आजादी के समस्त विद्रोहों, समस्त शहीदों, सारे स्वतंत्रता सेनानियों, भारत की आजादी, संविधान और उसकी उपलब्धियों का हर हाल में बचाव करना चाहिए। यही वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है। क्रांतिकारी रुप से शिक्षित, संगठित और संघर्षरत जनता ही आरएसएस जैसी सांप्रदायिक ताकतों के नफरत भरे अभियान का मुकाबला कर सकती है।