आलोक वर्मा
12 जुलाई का दिन इतिहास में दर्ज हो गया है। भारत सरकार ने घोषणा कर दी है कि वह हर साल 25 जून को ‘आपातकाल विभीषिका दिवस’ के रूप में मनाएगी क्योंकि 25 जून 1975 को ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था। 25 जून 2025 को आपातकाल लगाने के 50 साल पूरे हो रहे हैं। अब तक खुशी के मौकों को ही सरकारें यादगार के रूप में मनाती रही हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार ने दूसरी बार लोगों को पीड़ा पहुंचाने वाले मौके को किसी खास दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया है। इससे पहले वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री ने 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने की घोषणा की थी। ऐसा क्यों है कि यह सरकार इस तरह के नकारात्मक प्रसंगों को जोर-शोर से मनाने का फैसला करती है।
यह जरूर है कि पिछली बार जब प्रधानमंत्री ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’मनाने की घोषणा की थी तो देश के लोगों ने उसको महत्व नहीं दिया और उनकी मंशा धरी की धरी रह गई और उन्होंने उससे किनारा कर लिया। अब दूसरी बार है कि आपातकाल विभीषिका दिवस मनाने की घोषणा सरकार द्वारा की गई है। बाकायदा 11 जुलाई को इस संबंध में गजट भी सरकार ने जारी किया और गृह मंत्री अमित शाह ने ट्रवीट कर सरकार के फैसले की देश को जानकारी दी। केंद्र सरकार की मंशा कितनी कारगर रहेगी इसे जानने के लिए अभी काफी समय पड़ा हुआ है। करीब 11 महीने बाद आपातकाल विभीषिका मनाने का दिन आएगा।
विचारणीय विषय यह है कि केंद्र सरकार को बार-बार आपातकाल की शरण में जाने की क्यों जरूरत पड़ रही है? हाल में संपन्न लोकसभा चुनावों में मनमाफिक सीटें जीतने में नाकाम रहने के कारण मोदी-शाह की जोड़ी कहीं बहुत परेशान तो नहीं है। चार सौ पार का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व द्वारा हर तरह के जतन के बावजूद जब सांसदों की संख्या 240 पर ही जाकर रुक गई और और एनडीए के सांसदों की संख्या भी 292 पर सिमट गई तो परेशान होना तो स्वाभाविक है।
भाजपा के नेताओं द्वारा 400 सीटें जिताने की मांग के पीछे जब संविधान बदलने की बात कही गई तो विपक्ष खासतौर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उसे पकड़ लिया और संविधान की प्रति के साथ जनता खासतौर पर पिछड़े और दलितों को यह समझाने में कामयाब रहे कि अगर भाजपा को 400 सीटें मिलीं तो उसके नेता बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के बनाए संविधान को बदल डालेंगे और उनके अधिकारों पर डाका पड़ जाएगा। दलित वर्ग केंद्र सरकार के पिछले कई निर्णय से वैसे ही खुश नहीं रहा है। केंद्र सरकार के संविधान बदलने और आरक्षण को लागू करने के केंद्र के विरोधी रवैये से डरे हुए दलित और अति पिछड़े वर्ग ने विपक्ष के लिए मतदान किया, जिसके परिणामस्वरूप भाजपा को पिछली बार से 65 सीटें कम मिलीं। यही नहीं राहुल गांधी लगातार संविधान का मामला उठाते रहे हैं। संसद में भी वह और विपक्ष के तमाम सांसद संविधान की प्रति लेकर गए और मौके दर मौके उसे दिखाते रहे।
संसद के सत्र में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सत्ता पक्ष के तमाम नेताओं ने संविधान की काट के लिए आपातकाल का मुद्दा उठाया। लेकिन संभवतः उन्हें महसूस हुआ कि आपातकाल की बात बार-बार उठाने और कांग्रेस को घेरने के बावजूद जनता में उनकी बात कारगर तरीके से नहीं पहुंची है इसीलिए अब उन्होंने 25 जून को ‘आपातकाल विभीषिका दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला कर डाला।
आपातकाल का मुद्दा संभवतः इसलिए अब तक उतना प्रभाव नहीं डाल पाया है कि वर्तमान में बड़ी संख्या में 35 साल तक के युवा हैं जो बेरोजगारी की चक्की में पिस रहे हैं। रोजगार का स्तर पिछले 45 साल में सबसे निचले स्तर पर है। दूसरे यह युवा वर्ग आपातकाल के समय में तो पैदा भी नहीं हुआ था। उसने आपातकाल देखा नहीं है । इसीलिए भाजपा के जबर्दस्त प्रचार के बावजूद आपातकाल का भूत उस पर असर नहीं डाल पा रहा है।
‘आपातकाल विभीषिका दिवस’ मनाने के पीछे भाजपा की दूसरी रणनीति भी हो सकती है। इस समय विपक्ष जिस तरह कांग्रेस के पीछे लामबंद है उससे भाजपा और नरेंद्र मोदी की परेशानी बढ़ी है। संसद के सत्र में उसका असर भी दिखा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह आपातकाल के नाम पर विपक्ष की एकता को तोड़ना चाहते हों। उन्हें लगता होगा कि आपातकाल के नाम पर विपक्ष में दरार पड़ जाएगी क्योंकि कांग्रेस के साथ के अधिकांश विपक्षी दल आपातकाल के विरोध में रहे हैं और उसके खिलाफ संघर्ष किया है।
25 जून को ‘आपातकाल विभीषिका दिवस’ के रूप में मनाने के पीछे केंद्र सरकार की जो भी रणनीति हो लेकिन उसे आने में अभी 11 माह बाकी हैं और उसके पहले हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा के चुनाव किसके पक्ष में जाते हैं, भारत की राजनीति की दिशा वे तय करेंगे। आइये तब तक इंतजार करें और किसी अन्य घोषणा के लिए तैयार रहें।