मुनेश त्यागी
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पांय
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताय
वैसे तो हमारे देश में तमाम बुद्धिजीवियों, लेखकों, कवियों, वकीलों, न्यायाधीशों, डॉक्टरों, इंजीनियरों का विशेष महत्व है, मगर हमारे देश में आज भी शिक्षकों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। जैसे जैसे किसी भी देश और दुनिया को आगे बढ़ाने में और उसे अंधकार और अज्ञानता से बाहर निकलने में शिक्षक समुदाय का बहुत बड़ा रोल रहा है, वैसे ही हमारे देश को भी आगे बढ़ाने में हमारे शिक्षक समुदाय का बहुत बड़ा रोल रहा है। आज पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। आज के दिन डोक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था। वे एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। शिक्षा के इन्हीं गुणों के कारण उन्हें भारत का प्रथम उप प्रधानमंत्री बनाया गया था। उन्हीं की याद में पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
शिक्षक का अर्थ होता है,,,शिखर तक ले जाने वाला, क्षमा की भावना रखने वाला, कमजोरी दूर करने वाला, मंजिल तक पहुंचने वाला, सुनहरे भविष्य का ताना-बाना बुनने वाला और एक अच्छा और सुयोग्य शिक्षक ही अपने छात्रों में ज्ञान, विज्ञान, विवेक, बुद्धि, तार्किकता, धर्मनिरपेक्षता, जनवाद और क्रांति की ज्योति जगाता है। असली शिक्षक वह है जो अपने शिष्यों और शिष्याओं में स्वतंत्रता की आदत डालें, उन्हें समता समानता और आपसी भाईचारे की भावना से ओत-प्रोत करे और उन्हें अहंकार और आडंबरों से मुक्ति दिलाये।
दुनिया का इतिहास बता रहा है कि आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा, पूरी मानवता के सुनहरे और उज्जवल भविष्य के लिए सबसे जरूरी साधन है। इसके बिना कोई आदमी, समाज, देश या दुनिया जरूरी विकास और प्रगति नहीं कर सकते। अच्छा शिक्षक वह है जो अपने शिष्यों में जीवन पर्यंत सीखते रहने की आदत डालता है। हम अच्छा शिक्षक उसे ही कहेंगे, जो अपने शिष्यों में ज्ञान और विज्ञान की ज्योति जगाए, उन्हें नई-नई जानकारियां दें, देश दुनिया की हालातों से अवगत करायें, जो उन्हें पढ़ने लिखने का हौसला दें और देशहित में नया और अच्छा करने पर, अपने छात्र-छात्राओं की हौंसला अफजाई करें।
यूं तो दुनिया में लाखों शिक्षक हुए हैं, मगर हमारी नजर में दुनिया के महान शिक्षकों की सूची इस प्रकार है,,,, बुद्ध, ईसा मसीह, मोहम्मद साहेब, कबीरदास, रविदास, गुरु नानक, कॉपरनिकस, न्यूटन, डार्विन, समस्त वैज्ञानिक, कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स, लेनिन, मैक्सिम गोर्की, मायाकोवस्की, स्टालिन, हो ची मिन्ह, माओ त्से तुंग, फिदेल कास्त्रो, चे ग्वेरा, शेक्सपियर, अल्बर्ट आइंस्टीन, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भीमराव अंबेडकर, ज्योतिबाफुले, सावित्रीबाई फुले, पेरियार, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बिस्मिल, अश्फ़ाकउल्ला खान, प्रेमचंद, शंकर शैलेंद्र, निराला, दिनकर, हरिशंकर परसाई, काजी नज़रुल इस्लाम, जयप्रकाश नारायण, कर्पूरी ठाकुर, ईएमएस नम्बूदरीपाद, मुजफ्फर अहमद, ज्योति बसु, काजी नज़रुल इस्लाम, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, माससाब सब्यसाची, बाबा नागार्जुन, डॉक्टर अब्दुल कलाम आजाद, अदम गोंडवी, सफदर हाशमी, पाब्लो नेरुदा, दुष्यंत कुमार।
शिक्षक दिवस के मौके पर हम अपने उन तमाम शिक्षकों को अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं जिन्होंने हमें इस देश दुनिया को आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से समझने की दृष्टि दी और हमें ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति की दृष्टि से संपन्न किया। उन सभी सम्मानित शिक्षकों के नाम इस प्रकार हैं,,,, श्रद्धेय मास्टर किशन लाल शर्मा, मास्टर रतनलाल, मास्टर बसंत त्यागी, मास्टर मामचंद वर्मा, मास्टर मामचंद शर्मा, मास्टर महावीर प्रसाद त्यागी, डॉ वीरेंद्र सिंह सिरोही, डॉक्टर अलका गौतम, डॉक्टर हरवीर सिंह। वैसे ही हम देश और दुनिया के उन तमाम शिक्षकों को स्मरण करते हैं और अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं जिन्होंने देश और दुनिया में ज्ञान विज्ञान की मुहिम चलाई।
हमारा मानना है कि अगर कोई छात्र दुनिया के इन महान शिक्षकों से शिक्षा ग्रहण करेगा तो वह देश और दुनिया का एक बेहतरीन शिक्षक और नागरिक बनेगा। मगर आजादी के 77 साल बाद भी हम देख रहे हैं कि संविधान निर्माताओं ने एक बेहतरीन शिक्षक का जो सपना देखा था, वह आज टूट चुका है। सरकार की शिक्षा के निजीकरण की नीतियों ने संविधान द्वारा संजोए गए उन सपनों को धराशाई कर दिया है।
आज निजी शिक्षण संस्थानों में प्राइवेट शिक्षकों का सबसे ज्यादा शोषण होता है, उनके कार्य अवधि निश्चित नहीं है, उनकी नियुक्ति निश्चित नहीं है, उनका वेतन और कार्य दशाएं निश्चित नहीं हैं, अधिकांश प्राइवेट शिक्षकों को न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता है। कई सरकारी शिक्षण संस्थानों में भी यही शिक्षक विरोधी हालात मौजूद हैं और हालात यहां तक खराब हो गए हैं कि पेट और परिवार की ज़रूरतें उन्हें स्कूल और कॉलेज प्रशासन द्वारा लादे गए अज्ञान, अंधविश्वासों, पाखंडों, कर्मकांडों और धर्मांधताओं का मजबूर वाहक बना रही हैं। इनमें से लगभग सभी शिक्षक अपनी जरूरतों और पारिवारिक आर्थिक दबाव के कारण लड़ने और संघर्ष करने की स्थिति में और अपने जायज अधिकारों को मांगने की स्थिति में नहीं रह गए हैं।
सच में कहें तो शिक्षक दिवस तो आज शोषण दिवस बनकर रह गया है। आज नौकरीदाता शिक्षण संस्थान शिक्षकों के बॉस बनकर खड़े हो गए हैं। धन्नासेठों और संप्रदायिक ताकतों के गठजोड़ के स्कूल कोलिजों के मालिकों ने शिक्षकों शिक्षिकाओं से उनकी आजादी छीन ली है। इन मालिकान ने अधिकांश शिक्षकों को अपनी जन विरोधी, सांप्रदायिक, सोच, मानसिकता और विचारधारा का वाहक, दास और गुलाम बना दिया है और उनमें से अधिकांश को गूंगा, बहरा, अंधा और मजबूर कर्मचारी बना कर रख दिया है।
वर्तमान समय में पूंजीपति और सांप्रदायिक ताकतों के गठजोड़ ने और सरकारी शिक्षण संस्थानों ने शिक्षा और शिक्षकों पर गंभीर हमले किए हैं। अधिकांश जनवादी, प्रगतिशील, वामपंथी, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष सोच के शिक्षक शिक्षिकाओं को स्कूल और कॉलेज से बाहर किये जाने की मुहिम जारी है और उन पर तरह तरह के मनमाने हमले जारी हैं और इन्होंने ऐसे शिक्षकों का काम करना बहुत कठिन कर दिया है, उन पर तरह-तरह के पहरे बैठा दिए गए हैं और उनके मुंह पर ताले लगा दिए गए हैं। अपनी जीविका बचाने के गंभीर संकट ने उन्हें मौन रहने के लिए विनाशकारी तरीके से मजबूर कर दिया है।
इन हमलों की वजह से आने वाली शिक्षा प्रणाली, शिक्षकों और छात्रों का भविष्य अंधकार में होता जा रहा है, क्योंकि स्थाई शिक्षकों की भर्तियां लगभग खत्म कर दी गई हैं, ज्यादातर अस्थाई शिक्षकों को ही भर्ती किया जा रहा है और आज धर्मांध और मनुवादी सोच के शिक्षकों को ही भर्ती में तरजीह दी जा रही है और आधुनिक ज्ञान विज्ञान की शिक्षा और संस्कृति पर साम्प्रदायिक और जातिवादी खतरों के गंभीर बादल मंडरा रहे हैं।
जैसे पूरी शिक्षा और शिक्षकों को ज्ञान विज्ञान धर्मनिरपेक्ष सोच, मानसिकता और व्यवहार से दूर किया जा रहा है। अफसोस की बात यह है कि वर्तमान की अधिकांश मनुवादी सरकारें और दूसरी पार्टियां और संगठन इस सब को देखकर लगभग चुप हैं, आंखें मीचे हुए हैं। यह सब उनके राजनीतिक एजेंडा से सिरे से गायब है। वे इसके खिलाफ कोई सुविचारित आंदोलन या अभियान नहीं चला रहे हैं, जिस कारण शिक्षकों का शोषण करने वाली और उन्हें परेशान करने वाली संस्थाओं के हौसले बढ़े हुए हैं और आज शिक्षक दिवस जैसे शोषण दिवस और गुलाम शिक्षक दिवस के रूप में तब्दील होकर रह गया है। वर्तमान समय की समस्त धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक और समाजवादी ताकतों की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन गई है कि वे शिक्षा और शिक्षकों पर हो रहे सांप्रदायिक और जातिवादी हमले से शिक्षा और शिक्षकों को बचाएं ताकि शिक्षक दिवस की महानता और महत्ता बनी रहे।