गुजरात की रानी पद्मिनी का वो घर जो मसूरी में अब हैरिटेज होटल है

संजय श्रीवास्तव की मसूरी यात्रा के पहले भाग में महाराजा कपूरथला की विरासती कोठी के बारे में पढ़ा था। अब दूसरा अंक प्रस्तुत है –

संजय श्रीवास्तव की मसूरी डायरी – 2

गुजरात की रानी पद्मिनी का वो घर जो मसूरी में अब हैरिटेज होटल है

मसूरी के कुंज भवन पर कार खड़ी करने के बाद मैने होटल पद्मिनी निवास को सामने पाया. करीब 100 मीटर का ऊंचा रैंप था. इसको चढ़ते हुए हम छोटे छोटे पत्थरों के पीछे हुए एक सुकून वाली जगह में थे. किनारे पेड़, फूलों के पौधे, झूला और सामने एक सादगी और खूबसूरती का मिश्रण वाली एक कोलोनियल हैरिटेज इमारत. इसका प्यारा और लंबा सा दालान. बेंत की सुंदर कुर्सियां. चेसबोर्ड जैसी फर्श पर सबकुछ बहुत करीने से लगा हुआ था. सामने के पहले कमरे में ही रिसेप्शन. मुस्कुराती युवा रिसेप्शनिस्ट शिखा ने स्वागत किया. ये करीब चार एकड़ की प्रापर्टी है. हमने कमरे देखे.

करीब करीब पसंद ही आ गए. इस बीच रिसेप्शनिस्ट ने कहा, सर ये हैरिटेज प्रापर्टी है. करीब 200 साल पुरानी. हमारे यहां रेस्टोरेंट भी बहुत अच्छा है. बिना प्याज की गुजराती और जैन थाली मिल जाती है. गुजरात की रानी पद्मिनी का होटल था ये कभी. इस बात ने अचानक मेरी दिलचस्पी इस होटल में बढ़ा दी. होटल बजट में था. लेकिन हम द मॉल पर कहीं रुकना चाहते थे. हमने वहां गढ़वाल विकास निगम का एक बढ़िया कमरा बुक भी कर लिया. लेकिन होटल पद्मिनी निवास में कुछ था, जो अट्रैक्ट तो कर रहा था.

पीछे के रैंप से हम उस होटल के अहाते में दाखिल हुए और करीब 200 मीटर रैंप से होते हुए इसके मुख्य द्वार से द माल जाने वाले रास्ते में दाखिल हो गए. लेकिन अभी इस होटल में हमें फिर वापस लौटना था. क्यों, ये आगे पहले इस होटल की कहानी भी जान लीजिए.

1830 में जब मसूरी बस ही रहा था. ज्यादातर एस्टेट अंग्रेजों के पास थे. तब एक अंग्रेज महिला मिसेज एन रॉस ने इस प्रापर्टी को बनवाया. ये शायद मसूरी के सबसे पुराने एस्टेट में है. हालांकि तब से अब तक इसके मालिक बदलते रहे हैं. ये मसूरी के बहुत से हैरिटेज होटल्स और बिल्डिंग की कहानी है. मिसेज रॉस ने इसे आस्ट्रेलिया से यहां आए शराब व्यावसायी रुशब्रुक को बेचा. फिर आखिर में चार्ल्स मेर ग्रेगरी इसके आखिरी ब्रितानी मालिक हुए. 1925 में उन्होंने भी इसको बेचने का फैसला किया. इसका एक ब्राउशर छपवाया, जिसमें इस संपत्ति, सारे फर्नीचर और सामानों की जानकारी थी. अब भी 100 साल से ज्यादा कुछ फर्नीचर इस होटल में बरकरार हैं.

तब गुजरात की रियासत राजपीपला के महाराजा श्री सर विजयसिंह छत्रसिंह की एंट्री होती है. ये रियासत गुजरात की प्रमुख रजवाड़ा थी, यहां गोहिल वंश के राजपूतों ने 500 से ज्यादा सालों तक राज किया. इसका मुख्यालय वर्तमान नर्मदा जिले में राजपीपला शहर था. महाराजा श्री सर विजयसिंह छत्रसिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे, जिन्होंने 1915 से 1948 तक शासन किया. वह प्रगतिशील शासक थे. प्रसिद्ध घुड़सवार, पोलो खिलाड़ी और रेस हार्सेज के मालिक थे. इंग्लैंड में जाकर हार्सरेस जीतकर आए थे. ये भारतीय इतिहास में एक अनूठी घटना थी. उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान अपने राज्य में आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया, जिसमें रेलवे, सड़कें, अस्पताल और शिक्षा व्यवस्था शामिल थी. 1948 में उन्होंने राजपीपला को भारतीय संघ में विलय कर दिया. अपने शाही अधिकार त्याग दिए.
तो जब महाराजा ने 1925 में इस प्रापर्टी को खरीदा तो इसे अपनी दूसरी पत्नी महारानी पद्मिनी कुवेर्बा के नाम कर दिया. जो पन्ना की राजकुमारी थीं. महाराजा ब्रिटिश शासकों के प्रिय थे. उन्हें 13 बंदूकों की सलामी मिलती थी. 1951 में जब महाराजा गुजर गए तो ये संपत्ति महारानी पद्मिनी के पास आ गई.

महारानी जब भी मसूरी आती थीं तो यहां उनकी चर्चाएं शुरू हो जाती थीं. वह सुंदर और सोशलाइट थीं. पार्टियां देना उनका शगल. तो उनकी पार्टियों में मसूरी का अभिजात्य और अंग्रेज साहिब लोग उमड़ आते थे. ऐसी ही एक पार्टी में उन्होंने पन्ना से निकले सबसे बड़े हीरे का भी पद्मिनी निवास में प्रदर्शन किया, लोग उसे देखकर मंत्रमुग्ध रह गए.
फिर महारानी ने भी भरे मन से इस निवास को 1964 में इसके मौजूदा मालिकों पद्मनाभन प्रकाश फैमिली को बेच दिया. उन्होंने इसे 1979 में हैरिटेज होटल में बदल दिया. हालांकि उन्होंने इसका नाम वही रहने दिया. इसकी फीलिंग को वही रहने दिया. ये होटल अब ब्रिटिश राज दौर और रियासतों की लग्जरी स्टाइल की मिली जुली कहानी कहता है लेकिन कुछ कुछ मॉडर्न जायके के साथ. अब इसमें कई आधुनिक और आरामदायक सुविधाएं हैं. हालांकि इसका मूल बेस कुछ राजसी कमरों का है लेकिन बाद में इसके कुछ हिस्से और जोड़े गए.

तो अब आखिर में ये बताता हूं कि दोबारा हमें इस होटल में क्यों आना पड़ा. डिनर के समय मन हुआ चलो सुरिची रेस्तरां में जैन-गुजराती थाली का आनंद लिया जाए. ये सुरिची रेस्तरां दरअसल इसी होटल पद्मिनी के अंदर बना खूबसूरत भोजन कक्ष है. इस कक्ष में दो हिरनों को ऊपर दीवार में जड़ा हुआ है. खूबसूरत फर्नीचर हैं और शोकेस में उम्दा कटलरी सेट्स. होटल में प्राचीन ड्राइंग रूम जस का तस है. गैलरी में पुराने मसूरी की कुछ तस्वीरें. अंदर कुछ और कमरे.

जब हम डिनर करने पहुंचे तो होटल सूनसान पड़ा हुआ था. रिसेप्शन पर मैनेजर मोबाइल पर आईपीएल का आनंद ले रहा था. अंदर बैरा हमारे आर्डर लेने के लिए. खैर हमने पनीर ग्रेवी, बाजरा नो रोटला और थपला का आर्डर दिया. मेथी के जायके के साथ सब्जी का स्वाद बेहतरीन था और रोटियां तो करारी और स्वादिष्ट.
खाने के बाद जब हम बाहर निकले तो इस हैरिटेज होटल की कुछ फोटोएं खींची. बाहर होटल के मुख्य द्वार पर लाल रंग के चिकने पत्थर पर ये लाइनें पढ़ीं – ये मसूरी के सबसे पुराने एस्टेट्स में है. जो महाराजा राजपीपला का ग्रीष्म पैलेस था. वैसे मसूरी को राजे-रजवाड़ों ने शिमला को टक्कर देने के लिए तैयार किया, लिहाजा यहां ना जाने कितनी ही बिल्डिंग्स में राजा-महाराजाओं के निशान मौजूद हैं.

 

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