कविता की तलाश
अनुराधा मैंदोला
कविता को ढूंढते हुए
कविता ही हुई हूं
प्रेम को ढूंढते हुए प्रेमिका
पहाड़ को ढूंढते बही हूं नदी की तरह
नदी को ढूंढते थमी हूं पहाड़ सी
कितनी ही कविताएं जन्म नहीं ले सकीं
अवांछित बेटियों जैसी गिरायी गईं गर्भ से
उन सभी कविताओं का दुःख आता है
दूसरी नई कविताओं में
दुःख लौट आता है ऐसा कहते हैं
दुःख जाता ही नहीं है
कविता जाती है ब्याही हुई बेटियों जैसी
हाथों हाथ ली जाएं सभी कविताएं ऐसा भाग्य नहीं लातीं
लौट आती हैं पछाड़ खाकर
कवि का दुख और कविता साथ ही रहते हैं
दुःख से आती है कविता
कविता से दुख नहीं आता
बुलाने से नहीं आती कविता अनजान बच्चे जैसी
अचानक लिपट जाती है पैरों से भूखे बच्चे जैसी
क्षण भर गले लगाने की गुहार करती कविता
कब लिख जाती है अमरत्व की कहानी
नहीं जान पाता कवि ।
अनुराधा मैंदोला उत्तराखंड सरकार में नर्सिंग र्ऑफिसर हैं। एक दो सालों से वे कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं में गहराई है।