सांप्रदायिक ताकतें बनीं वैश्विक लुटेरे साम्राज्यवाद की सबसे बड़ी रक्षा कवच 

 

सांप्रदायिक ताकतें बनीं वैश्विक लुटेरे साम्राज्यवाद की सबसे बड़ी रक्षा कवच

मुनेश त्यागी

पहलगाम आतंकवादी हमले में 26 से ज्यादा निर्दोष पर्यटकों को साम्प्रदायिक आतंकवादी हत्यारों द्वारा जानबूझकर मौत के घाट उतार दिया गया। इस दुर्दांत घटना की जितनी आलोचना की जाए वह कम है। इस मामले में सबसे ज्यादा जरूरी है कि मारे गए पर्यटकों के परिवार जनों को 20-20 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाए, परिवारजनों को सरकारी नौकरियां दी जाएं, सरकार द्वारा की गई सुरक्षा चूक की निष्पक्ष जांच की जाए, आतंकवादी हथियारों को कानूनी कार्रवाई करके तुरंत सख्त से सख्त सजा दी जाए, इसी के साथ एक सर्व दलीय समिति बनाकर इस साम्प्रदायिक आतंकवादी घटना की पूरी निष्पक्ष और ईमानदार जांच की जाए कि आखिर इन हमलों के लिए कौन जिम्मेदार है? सरकारी एजेंसी या हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिक ताकतें और इसी के साथ-साथ सुरक्षा में हत्यारी चूक करने वाले अधिकारियों को तुरंत नौकरी से हटाया जाए और उन्हें मिलने वाली समस्त आर्थिक सुविधाओं से पूरी तरह से वंचित किया जाए।

इसके साथ-साथ यह जानना भी बहुत जरूरी है कि आखिर वे कौन सी जनविरोधी, अमानवीय और असंवेदनशील ताकतें हैं जो इन सांप्रदायिक ताकतों का नेतृत्व कर रही हैं, इन्हें पैसा मुहैया करा रही है और सांप्रदायिक आतंकवादी हमलों को धरती पर उतारने की नीतियां तैयार कर रही हैं। सांप्रदायिक ताकतों और साम्राज्यवादी ताकतों के गठजोड़ के भारत में किये जा रहे इन कारनामों को जानने के लिए यह जरूरी है कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हिंदू और मुस्लिम एकता का बहुत बड़ा योगदान रहा था। इस स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी विरासत हिंदू और मुस्लिम एकता थी। अंग्रेज इससे पूरी तरह से डर गए थे और वे किसी भी तरीके से इस हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अपनी “बांटो और राज करो” नीति के तहत, 1906 में हिंदू महासभा और 1907 में मुस्लिम लीग की स्थापना करवाई।

इसके बाद हिंदू मुस्लिम एकता को पूरी तरह से तोड़ने के लिए 1925 में आरएसएस का निर्माण हुआ। गज़ब की और बहुत ही आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि इन हिंदू मुस्लिम दोनों सांप्रदायिक ताकतों का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं था। इन्होंने कभी भी भारत की आजादी की लड़ाई में कोई हिस्सेदारी नहीं की थी, बस इनका एक ही काम था कि किसी भी तरह से आजादी के आंदोलन को कमजोर करने के लिए जनता की एकता खंड-खंड किया जाए। इसी नीति के तहत मुस्लिम लीग की सरकार में 1940-41में हिंदू महासभा ने भागीदारी की थी। स्वतंत्रता संग्राम के 1942 के “करो या मरो” और “अंग्रेज़ों भारत छोड़ो” के देशव्यापी आंदोलन को कमजोर करने के लिए हिंदू महासभा ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग नहीं लिया और अपने सदस्यों का आह्वान किया कि वे अंग्रेजों की सेना में शामिल हों। इसी के साथ-साथ उन्होंने आजाद हिंद फौज में सिपाहियों के रूप में भर्ती होने का विरोध किया था।

जब भारत का संविधान बनाया जा रहा था और उसे लागू किया गया तो आरएसएस और हिंदू महासभा ने इसके बनाए जाने का विरोध किया था और कहा था कि यहां किसी संविधान की जरूरत नहीं है, यहां तो पहले से ही मनुस्मृति मौजूद है। इन्होंने तिरंगे झंडे का भी विरोध किया था। इसके बाद से इन दोनों संप्रदायिक ताकतों ने भारत के संविधान में लिखे गए बुनियादी सिद्धांतों का लगातार विरोध और अनदेखी की। पिछले 75 साल से हम लगातार देखते चले आ रहे हैं कि इन दोनों सांप्रदायिक ताकतों ने भारत के जनता के बुनियादी अधिकारों और सिद्धांतों जैसे समता, समानता, आपसी भाईचारे, न्याय, सबका समुचित विकास, सबको शिक्षा सबको काम, सबको रोजगार, सबको मुक्त शिक्षा, सबको मुफ्त इलाज और सब का बुनियादी विकास जैसे बुनियादी नारों को धरती पर उतारने का कभी भी कोई समर्थन नहीं किया और इसके लिए कोई आंदोलन भी नहीं किया।

इन्होंने किसानों, मजदूरों, छात्रों और नौजवानों की समस्याओं को दूर करने का कोई काम नहीं किया है। इन्होंने किसानों को फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने और मजदूरों को न्यूनतम वेतन देने का, बेरोजगारों को रोजगार देने का, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जारी लूट को खत्म करने का, गरीबी दूर करने का, कमरतोड़ महंगाई और भ्रष्टाचार दूर करने का और औरतों और दलितों के खिलाफ जारी अपराधों की आंधी को खत्म करने का कोई आंदोलन नहीं किया है। इनका मुख्य काम रहा है कि किसी भी तरह से हिंदू मुसलमान के नाम पर धार्मिक उन्माद फ़ैला कर जनता की एकता तोड़ी जाए, उसके एकजुट संघर्ष को, उसके एकजुट संगठन और ताकत को कमजोर किया जाए और इसी के साथ-साथ इनका एक ही मकसद रहा है कि किसी तरह से भारत के धनी वर्ग, पूंजीपति वर्ग और देश-विदेश के लुटेरे पूंजीपतियों की रक्षा की जाए, उनकी मदद की जाए, उनकी बेलगाम लूट और उनके लूट के निजाम को आगे बढ़ाया जाए। आज भी हम देख रहे हैं कि इन तमाम साम्प्रदायिक ताकतों का जनता की बुनियादी समस्याओं का खात्मा करने से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि ये कुल मिलाकर भारत के संपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को अपने चंद पूंजीपति यारों को देने पर आमदा हैं। इनका मुख्य काम अडानी, अंबानी, बिरला टाटा के साम्राज्य को बढ़ाना है। यहीं इनकी सबसे बड़ी नीतियां हैं।

इसी के साथ-साथ यह भी एक बड़ी हकीकत है कि भारत से अंग्रेजों के चले जाने के बाद, वैश्विक लुटेरा साम्राज्यवाद, जिसका आज का वैश्विक नेता अमेरिका है, वह आज भी पूरी दुनिया में किसानों मजदूरों की एकता को तोड़ने के लिए, दुनिया की समस्त सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ावा दे रहा है, उनकी नीतियां निर्धारित कर रहा है, उन्हें पैसा मुहैया करा रहा है, ताकि ये सांप्रदायिक ताकतें समय-समय पर जनता की एकता तोड़ती रहें, धर्म के नाम पर झगड़ा करती रहें। आज भी इन सांप्रदायिक ताकतों का सबसे बड़ा नेता और परामर्शदाता, नीति निर्धारितकर्ता अमेरिका है और उसी के साथ-साथ सऊदी अरब का शासक वर्ग भी अमेरिका के साथ मिलकर यही काम कर रहा है।

आज समस्त वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतों का केवल एक ही मिशन रह गया है कि वे दुनिया में अपना प्रभुत्व कायम कर सकें। इस प्रभुत्व को कायम करने के लिए ही उन्होंने सांप्रदायिक तत्वों को जन्म दिया था और आज भी वे ही उनका पालन पोषण कर रहीं हैं। उनका एक ही उद्देश्य है कि पूरी दुनिया में उनका वैश्विक प्रभुत्व कायम रहे, ताकि वे दुनिया के समस्त प्राकृतिक संसाधनों को लूट कर और ज्यादा धनवान बन सकें और पूरी दुनिया को अपने नियंत्रण में कर सकें। इसी वैश्विक प्रभुत्व को कायम रखने के लिए, दुनिया भर की तमाम सांप्रदायिक ताकतें, इन वैश्विक प्रभुत्वकारी साम्राज्यवादी ताकतों की मोहरें और वैश्विक कवच बनी हुई हैं। इसी के साथ उनका दूसरा मिशन है कि जनता को धार्मिक विवादों में उलझाये रखा जा सके, ताकि जनता एकजुट होकर अपनी बुनियादी समस्याओं का स्थाई हल करने के लिए सामाजिक न्याय और समाजवादी व्यवस्था की तरफ न मुड़ जाये, समाजवादी सोच और मानसिकता न अपना ले, क्योंकि दुनिया की लुटेरी साम्राज्यवादी ताकतों को पता है कि सामाजिक न्याय और समाजवादी व्यवस्था और किसानों और मजदूरों की सरकार और सत्ता कायम होने के बाद, उनकी शोषणकारी लूट खसोट और दुनिया पर मनमाना नियंत्रण करने का उनका सपना टूट कर धाराशाई हो जाएगा। इसलिए वे किसी भी कीमत पर पूरी दुनिया में जनता की एकता तोड़ने के लिए धर्मांध सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ावा दे रही हैं, उनकी नीतियां निर्धारित कर रही है और तमाम तरह से उनकी मदद कर रही हैं।

इसलिए आज यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि भारत की तमाम जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, जन कल्याणकारी, समाजवादी, वामपंथी और संविधान में विश्वास रखने वाली सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की ताकतें एकजुट होकर, इन तमाम सांप्रदायिक और साम्राज्यवादी ताकतों के गठजोड़ का मुकाबला करें, सारी जनता को इनकी लुटेरी और धर्म के नाम पर बांटने वाली नीतियों और ताकतों से अवगत करायें और उनका आह्वान करें कि जनता की दुश्मन इन ताकतों से सावधान रहें और इनसे मुकम्मल निजात पाएं। तभी जाकर भारत की जनता को संविधान में दिए गए बुनियादी अधिकारों की प्राप्ति हो सकती है और उसकी एकता और भाईचारा कायम रह सकता है। यही आज की सबसे बड़ी जरूरत है। इसके अलावा अब और कोई रास्ता नहीं बचा है।