ओमप्रकाश तिवारी की कविता -आपको तय करना है

आपको तय करना है 

ओमप्रकाश तिवारी 

आपको तय करना है 

क्या चाहिए 

आम या अमरूद चाहिए 

तो बाग बगीचा लगाइए 

बबूल की झाड़ियाँ 

ख़ुद ही उग आती हैं 

उन्हें तो साफ़ करना पड़ता है 

यदि रास्ते में आ जायें 

इमली के पौधे लगाकर 

आंवला की चाहत 

बेवक़ूफ़ ही करता है 

विषैले पानी से सींची फसलें 

ज़हरीली हो जाती हैं 

अमूमन तो सूख ही जाती हैं 

मिट्टी और आबोहवा ख़राब हो जाती है 

रोटी मांगने पर 

प्रसाद देने वाले 

पानी मांगने पर 

चरणामृत देने वाले 

वस्त्र मांगने पर 

पट्टा देने वाले 

घर मांगने पर 

कुटिया देने वाले 

दवाई मांगने पर 

भभूत देने वाले 

शिक्षा मांगने पर 

प्रवचन देने वाले 

भिक्षा मांगने पर 

आशीर्वचन देने वाले 

आपको अच्छे लगते हैं 

वे यही चाहते भी हैं 

वे आपको भरमाते हैं 

आप भ्रम में रहते हैं 

वे मलाई खाते हैं 

आप उसकी व्यवस्था करते हैं 

आपको इस पर यकीन ही नहीं है 

कि धरती गोल है 

सूरज का चक्कर लगाती है 

चंद्रमा एक ग्रह है 

जैसी की पृथ्वी 

कि नदियाँ पहाड़ से निकलती हैं 

पहाड़ पर जमा होती है बर्फ 

बर्फ पिघलती है 

वही पानी नदियों में बहता है 

जिन्हें नहीं मिलता ग्लेशियर का पानी 

वे बरसात के बाद सूख जाती हैं 

कि सूरज आग का गोला है 

उसके क़रीब जाने वाला जल जाता है 

जैसे कि जल गया था संपाती 

कि उसे कोई निगल नहीं सकता 

चंद्रग्रहण या सूर्य ग्रहण 

खगोलीय घटना है 

उन्हें कोई निगलता नहीं है 

उरगा उरगा बोलने वाले 

मुर्गा बन जाते हैं 

काट कर भून दिए जाते हैं 

नमक लगाकर खा जाता है कोई 

दारू पीने के बाद 

आपको भभूति और आशीर्वाद देने वाले 

बीमार पड़ने पर 

अस्पताल ही जाते हैं इलाज कराने 

चिकित्सक बताता है बीमारी के बारे में 

रोग दवा खाने से ठीक होता है 

दुआ या भभूत से नहीं 

दवाईयां शोध के बाद तैयार होती हैं 

इसके लिए चाहिए शिक्षा 

विद्यालय और महाविद्यालय 

जहां पढ़ाया जाय विज्ञान 

इस ज्ञान से खोजी जाय बीमारी 

फिर उसकी दवाई और किया जाए उपचार 

जीव विज्ञान पढ़ेंगे तो पता चलेगा 

अमर नहीं है कोई और हो भी नहीं सकता 

अमृतवाणी नहीं होती कोई 

बचपन के बाद जवानी 

फिर बुढ़ापा आता ही है 

उसके बाद शरीर से सांस बंद हो जाती है 

दिल धड़कता है तब सांस चलती है 

दिल की भी एक उम्र होती है 

बीमारी से बचाना पड़ता है 

तभी वह धड़कता है 

वह कोई आत्मा नहीं है 

इसलिए कोई आत्मा भटकती नहीं है 

आत्मा नहीं है तो परमात्मा भी नहीं है 

जीव का सृजित होना 

बायोलॉजिकल प्रक्रिया है 

उसे कोई सृजित नहीं करता 

भौतिक विज्ञान बताएगा 

पदार्थ के बारे में सबकुछ 

जो अनजान है उसे खोजना होगा 

तमाम तकनीकें गवाह है 

विज्ञान की और ज्ञान की 

उन्हें मानव ने ही बनाया है 

वैसे ही एक समय बनाया था 

ख़ुद को बनाने वाला भी 

अस्पताल और भभूत दोनों सच नहीं हो सकते 

दोनों एक साथ नहीं चल सकते 

दवाई खाने वाला बीमारी से ठीक हो सकता है 

भभूत किसी को स्वस्थ नहीं कर सकते।

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