मनजीत मानवी की कविता – ईदगाह

 ईदगाह

(मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित)

मनजीत मानवी

 

सब की प्यारी ईद है आई

जहां देखो हरियाली छाई

ईद के दिन की बहुत बधाई

आज का सूरज कितना न्यारा

ईद मिलन का करे इशारा

सब मेले की तैयारी में

क्या निर्धन क्या पैसे वाला

पर बच्चों की बात अलग है

भले ही न रखा हो रोज़ा

ईद पे इनका पूरा हक है

गाँव से तीन कोस दूरी पर

ईदगाह का लगता मेला

खूब मिठाई और खिलौने

रंग बिरंगा सजता मेला

बच्चे ईदगाह जाएँगे

मिल कर धूम मचाएँगे

ढेर खिलौने लाएंगे

आकर सेवैयाँ खाएँगे

हामिद दुबला पतला लड़का

बूढ़ी दादी के संग रहता

अम्मी जान को थी बीमारी

जल्दी हुई ख़ुदा को प्यारी

अब्बाजान भी गए कमाने

कब आएँगे कौन ये जाने

घर में बूढ़ी दादी अमीना

उसी की गोद में मरना जीना

न कपड़े, न पाँव मेँ जूते

लेकिन दिल में लड्डू फूटें

घर में नहीं अन्न का दाना

ईदगाह तो फिर भी जाना

जेब में केवल तीन ही पैसे

पर उत्साह कम न किसी से

दौड़ के सबसे आगे जाए

थकने की तो सोच न पाए

हामिद ने जो शहर को देखा

रह गया इकदम हक्का-बक्का

कोई इक्के तांगे पर बैठा

कोई बैठ मोटर में ऐंठा

आख़िर आ ही गई ईदगाह

यहाँ नहीं कोई बड़ा या छोटा

सभी खड़े इक सफ़ मे होते

एक साथ सज्दे में झुकते

कर नमाज़ मेले में जाएँ

देख मिठाई जी ललचाए

बैठ हिंडोले झूला झूलें

ज़मीं, कभी अम्बर को छू लें

घोडा ऊंट की देख सवारी

आई खिलौनों की है बारी

दोस्त सिपाही-भिश्ती खरीदें

हामिद खड़ा खड़ा पर सोचे

जेब में मेरी तीन ही पैसे

महँगे खिलौने लूँ मैं कैसे

छोड़ो ये तो मिट्टी के हैं

नीचे गिरते ही टूटे हैं

आगे बढ़े तो मिली मिठाई

हामिद छोड़ सभी ने खाई

लोहे का सामान जो देखा

हामिद का तो चेहरा चमका

दादी पास नहीं है चिमटा

तभी रोज़ हाथ है जलता

क्यों न आज ख़रीदूँ चिमटा

सबसे अधिक इसी में फ़ायदा

चिमटा कितने काम है आए

रोटी सेके आग जलाए

गिर जाए फ़िर भी न टूटे

और दादी भी ख़ूब दुआ दे

राखी जो कंधे बन्दूक कहाए

चाहूँ तो मजीरा बन जाए

हो न इसका बाल भी बांका

शेर बहादुर मेरा चिमटा

चिमटा ले हामिद घर पहुँचा

शुरू में दादी का मन बैठा

न कुछ पीया, न कुछ खाया

तुझको ये चिमटा ही भाया?

हामिद ने जब वजह बताई

दादी की आँखें भर आईं

बच्चा हामिद बूढ़ा होए

और दादी बच्चे सी रोए

मुंशी प्रेमचंद की यह कहानी

प्यार की इक अद्भुत कुर्बानी

हर बरस अब ईद जो आए

हामिद आँखों में बस जाए

कैसे भूलें दादी अमीना

जिसने हमें सिखाया जीना

कम से कम में भी खुश रहना

आदर प्यार ही असली गहना !

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