अजय शुक्ला का कालम: बेतुकी बातें: 5- हैपी ईद
सिरम्मन: चांद रात मुबारक। हैपी ईद
झम्मन: तू मुझे गुस्सा क्यों दिलाता रहता है। मैं मुसलमान नहीं, नहीं, नहीं। अब बस त्रिबाचू कह दिया।
सिरम्मन: ठीक है बाबा। तू मुसलमान नहीं। दत्तात्रेय गोत्र का ब्राह्मण है। नाउ ओके?
झम्मन: नोके।
सिरम्मन: अमां, अजब अहमक हो। मुसलमान न सही। ईद मनाने में क्या दिक्कत है। कुछ नहीं मुझको हैपी ईद बोल। गले लग। यह क्या हुआ! खुशी के इतने बड़े मौके पर मुंह लटकाए बैठा है।
झम्मन: मेरी उदासी का कारण मत पूछ। तू समझ नहीं पाएगा।
सिरम्मन: बता के देख। थोड़ा ग़म बांट लूंगा। हल्का हो जाएगा।
झम्मन: बात यह है कि मैं फिलस्तीनियों को लेकर बहुत परेशान हूं। बेचारे कैसे ईद मना रहे होंगे। हे राम! कैसा वक्त आ गया है। एक मुल्क इस दुनिया में बिलकुल तनहा खड़ा है। सब मिल कर कूट रहे हैं उसे।
सिरम्मन: सही बात है। बेचारे तनहा खड़े हैं। पर तू एक बात बता। तूने कभी सड़क पर घायल किसी आदमी को अस्पताल पहुंचाया है?
झम्मन: नहीं। वह मेरा काम नहीं।
सिरम्मन: ओके। चलो यह बताओ कि कभी किसी दबंग या सिपाही के हाथों कुटते गरीब रिक्शे वाले के पक्ष में मोर्चा लिया है?
झम्मन: क्यों भाई। अपने ऊपर पुलिस मुज़हमत का केस चलवाना है क्या?
सिरम्मन: चलो, कोई बात नहीं। दफ्तर में अपने सेठ जी की गलत बात का कभी विरोध किया है क्या?
झम्मन: वाह भई वाह! चार पैसे की नौकरी खोनी है क्या?
सिरम्मन: कभी किसी भूखे को खाना खिलाया है?
झम्मन: काले कुत्ते को खिलाता हूं। रोज़। एक पांच रुपए का बिस्कुट का पैकेट। बेनागा।
सिरम्मन: किसी आदमी को नहीं?
झम्मन: ये भिखमंगे बड़े बदमाश होते हैं। दिन में मांगते हैं। रात में डाका डालते हैं।
सिरम्मन: तुझे अपने समाज, अपने लोगों के दुख से कोई वास्ता नहीं और चला है फिलस्तीनियों का हमदर्द बनने। वाहियाद आदमी!
झम्मन: क्यों गरीब आदमी के पीछे पड़े हो, भाई। किसी तरह रोटी कमा रहा हूं और तू चाहता है कि मैं बरबाद हो जाऊं।
सिरम्मन: नहीं भाई, झम्मन। ये बेतुकी बातें हैं। इनका कोई सर पैर नहीं। तू उदास मत हो। लेकिन हैपी ईद तो बोल।
झम्मन: हैपी ईद।
सिरम्मन: सुबह आना मेरे घर। गले मिलने।
झम्मन: और सिवइयां?
सिरम्मन: वह भी।