ओम प्रकाश तिवारी की पांच कविताएं

 

1.

डर और कुदरत

………

कौन नहीं डरता है अंधेरे से

डर को भी डर लगता है अंधेरे से

आदिकाल से मानव अंधेरे के डर को भगाने के लिए

करता आया है उजाला

शुरुआत में जलाईं होंगी लकड़ियां

फिर जलाए होंगे मशाल

फिर दीपक जलाए होंगे

लालटेन से अब बिजली तक आ गया है

उसके ये कृत्रिम उपाय

हमेशा ही नाकाम रहे हैं

यहां तक कि उसने चांद की भी चापलूसी कर डाली

वह भी असफल रहा

हर बार सूरज ही काम आया है

सुबह की उजास के साथ ही भागा है अंधेरा

साथ ही मानव का डर भी

कुदरत ही डराती है

वही डर भगाती है

उसी ने खुद से बनाया है

वही खुद में मिला लेती है।

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2.

स्वभाव

…..

लालच में अथवा स्वामिभक्ति में

श्वान दुम हिलाने लगते हैं

इस कला में इंसान श्वान से भी आगे है

एक के पास पूंछ है

वह हिलाता है तो समझ में आता है

लेकिन मानव के पास तो है ही नहीं

फिर भी वह श्वान से बेहतर

दुम हिला लेता है…

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3.

नीयत

……….

वर्षों बाद दिखे हो

कहां थे?

क्या कहूं?

ईद के चांद?

गुलरी के फूल?

क्या कहा?

कोई उपमा पसंद नहीं?

भई अच्छी बात है

जब कुछ न जंचे तो

नफरत करना आसान हो जाता है

एक बात यह भी याद रखना

जो कभी कभी आते हैं

वे जल्दी चले जाते हैं

नफरतों के गुलशन में

गुल नहीं खिला करते

नीयत में खोट हो तो

पानी भी जहर हो जाता है

जड़ों में चला जाए तो

पौधे सूख जाते हैं…

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4.

सुनो बेटियो, परमेश्वर नहीं होता पति

मेरी पलकों में टंग गई है

वह तस्वीर

दिमाग में चिपक गई है

बिना किसी गोंद के

सर्द रात में

ठंडी फर्श पर

बिना बिस्तर

बिना रजाई

अपने घुटनों को सीने से चिपकाए

(मानों वे माता -पिता हों

भगा देंगे ठंड को

ओढ़ा देंगे रजाई

सुला लेंगे अपनी गोंद में

जो दुनिया की सबसे महफूज जगह होगी)

गठरी बनी

वह नवविवाहिता

और

उसके बगल में

बेड पर रजाई में सो रहा युवक

(जिसे युवक कहना पूरी एक पीढ़ी को गाली देने जैसा है। जिसे पागल कहना भी पागलपन का सरलीकरण है। जिसे हैवान कहना बिल्कुल उचित है।)

वह युवक

जो उस युवती को ब्याह कर लाया है

पति की हैसियत से दे रहा है सजा

क्योंकि वह लड़की अपने मायके से

नहीं लाई है दहेज में

बेड और रजाई

टीवी, फ्रिज और वाशिंग मशीन

मोटरसाइकिल और कार

उसके माता-पिता नहीं दे पाए

उस मानसिक अपाहिज को

दो तोले सोने की चेन और अंगूठी

किसी महंगी ब्रांड की घड़ी

कोई महंगे ब्रांड वाला मोबाइल

जब जब यह दृश्य

आखों के सामने से गुजरता है

शरीर में उठती है क्रोध की ज्वालामुखी

जो उस युवक को ही नहीं

उसके तमाम रक्त संबंधियों को भी

कर देना चाहती है भस्म

राख बनाकर ऐसा भूचाल लाना चाहती है

जिससे दहल जाए वह समाज

जो लालसा रखता है दहेज का

जला देना चाहती है

उन सभी बन्धनों, रस्मों और रिवाज़ों को

जो विवाह के नाम पर

एक लड़की की आजादी को छीनते हैं

और कुचलते हैं उसके अस्तित्व को

मैं कह रहा हूं

उस और उस जैसी तमाम लड़कियों से

उठो और तोड़ दो उन तमाम बेड़ियों को

जो तुम्हें गुलाम बनाती हैं

और विवश करती हैं

किसी लालची, निर्दयी, क्रूर हैवान को

पति परमेश्वर मानने के लिए

हाथ में अस्त्र उठा लो

खींच लो उसकी रजाई

फाड़ दो उसका विस्तर

तोड़ दो उसका बेड

और दरवाजे पर खड़ा करके

पिछवाड़े पर मारो लात

इतनी जोर की मारो कि गिरे दूर जाकर

और टूट जाएं सारे दांत

फिर तुम करो अठ्ठाहस

बता दो कमीने समाज को

कि

तुमने लगा दी है उसकी लंका में आग

तुम चंडी हो यह भी बता दो

नहीं स्वीकार है कोई पुरुष

 किसी पति परमेश्वर के रूप में

कोई दहेजलोभी तो कतई नहीं

तुम जीना चाहती हो अपनी जिंदगी

अपनी मर्जी से अपनी शर्तों पर

नहीं चाहिए कोई पति परमेश्वर

नहीं चाहिए कोई गुलाम

जो कंधे से कंधा मिलाए

समान हक जताए

कदम चलेंगे तुम्हारे उसी के साथ

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5.

कर्म-फल

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हर सही जगह पर ताला लगा दिया

हर गलत जगह को खुला छोड़ दिया

जहां-जहां पर होना चाहिए था उजास!

वहां-वहां पर घना अंधेरा कर दिया है!

बगीचे में लगाए बबूल की झाड़ियां!

फल आम का मिलेगा, कांटों के सिवा!

अमावस्या को चांदनी रात कहते रहो!

गगन में चांद दिखेगा न धरती पर चांदनी!

 


कवि के बारे में ———–

कवि ओम प्रकाश तिवारी वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेकिन वह मूलतः कथाकार हैं। उनकी कई कहानियां चर्चित रही हैं। उनके दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। निनाद उपन्यास हंस प्रकाशन दिल्ली से छपा है साल 2023 में। दो पाटन के बीच उपन्यास इसी साल अक्तूबर में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है। कहानी संग्रह किचकिच इसी पब्लिकेशन से आने वाला है। कविता संग्रह डरा हुआ पेड़ notnul.com ऑन लाइन वेबसाइट पर मौजूद है। पहली कहानी 1995 वैचारिकी संकलन में छपी थी। कविताएं भी तभी से लिखते रहे हैं। लेकिन ज्यादातर कहानी। साल 2021 के बाद कविताएं लिखने लगे। कविताओं का विषय सामयिक ही होता है। इसे राय, नजरिया, सुझाव, सलाह या हस्तक्षेप जैसा कुछ कह सकते हैं। तिवारी जी की कहानियों में समाज के आए बदलाव के साथ रिश्तों की गहराई से पड़ताल होती है। पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया में जो बदलाव आया है निश्चित तौर पर उसका असर भारत पर भी पड़ा  है। रिश्तों में दरार आ रही है। संवेदना लुप्त होती जा रही है। रूढ़िवादिता और धर्मांधता तेजी से पैर पसार रही है या यों कहें कि मदद देकर उनको प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है। सच कहने की हिम्मत कम होती जा रही है। ऐसे समय में ओम प्रकाश तिवारी की कविताएं सुकून देती हैं।