मंजुल भारद्वाज की कविता- जब ख़्वाब देखता हूं

कविता

जब ख़्वाब देखता हूं

-मंजुल भारद्वाज

हवा में उड़ता हूं

पानी पर चलता हूं

जब ख़्वाब देखता हूं

जड़ता को तोड़ता हूं

पिंजरे को खोलता हूं

जब ख़्वाब देखता हूं

ठहरे हुए वक़्त में

पर लगाता हूं

जब ख़्वाब देखता हूं

वसुंधरा को

अंतराल से जोड़ता हूं

जब ख़्वाब देखता हूं

जीवन को

अर्थ देता हूं

जब ख़्वाब देखता हूं!