HomeBlogजीवन के जद्दोजहद का उपन्यासः दो पाटन के बीच जीवन के जद्दोजहद का उपन्यासः दो पाटन के बीच 14 January 202514 January 2025Pratibimb Media विकास बावरा जीवन में जब भी तुम्हें ये लगे कि तुम बहुत बड़े आदमी बन गए हो तो अपने बीते हुए कल को याद जरूर करना, ऐसा पिता जी अक्सर कहते रहते हैं। वह कहते हैं कि अपने से ऊपर वाले को नहीं बल्कि नीचे वाले को देखकर जिंदगी जीनी चाहिए। इससे जीना आसान हो जाता है। तुम्हारे पास भले छत कच्ची है मगर खुले आसमां के नीचे सोने वालों से पूछो कैसा होती है थपेड़े मार रही बारिश की बौछार…कैसा होती है सर्दी की ठिठुरन और कैसी होती है गर्मी की तपिश…जब भी मैं बड़ी-बड़ी इमारतें और महंगी गाड़ियां देखता हूं और खुद को उनमें पाता हूं तो हर बार अतीत को याद करते हुए आगे बढ़ता हूं। कुछ ऐसा ही एहसास हुआ “दो पाटन के बीच” उपन्यास को पढ़कर। “दो पाटन के बीच” ये नाम आपको सुना-सुना लग रहा होगा। किताब का नाम कबीर के दोहे (चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय, दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय) से लिया गया है। उपन्यास के नाम से ही आप समझ जाएंगे इस कहानी में कोई ऐसा किरदार है जो दो लोगों के बीच फंसा नजर आ रहा है। इस कहानी को लिखने वाले लेखक और वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश तिवारी Omprakash Tiwari सर ने उपन्यास में कई किरदार दिए है। मगर इस कहानी का मुखिया अमर है। ये अमर होने वाला अमर नहीं बल्कि जिसके ऊपर ये कहानी है उसका नाम अमर है। तो आइए शुरू करते हैं। कहानी में अमर एक हिंदी अखबार का पत्रकार है। वह अपनी जिंदगी के संघर्षों को खत्म करते हुए आगे बढ़ता है। संघर्ष भरी इस जिंदगी में वो बस दो चीजों से उलझा रहता है और ये उलझन बार-बार उसे अपना बीता हुआ कल याद दिलाता है। कहानी में अमर की पत्नी नेहा, उसकी प्रेमिका अनु। अनु के माता पिता और उसके तलाकशुदा पति के अलावा अमर के बच्चे शामिल हैं। अमर हिंदी प्रेमी है, लेकिन उसे अंग्रेजी नहीं आती उसे इस बात का दुख भी है। ऐसा नहीं है कि उसे अंग्रेजी में रुचि नहीं है, उसने अंग्रेजी पढ़ने की कोशिश तो बचपन में ही की मगर कहते हैं न कि कभी-कभी परिस्थितियां साथ नहीं देती। संघर्ष के दिनों में भले ही अमर अकेला था मगर सफलता की सीढ़ी चढ़ने पर उसकी प्रेमिका अनु उसके साथ थी। उसका साथ होना अक्सर उसे खुशी देता था मगर जब पत्नी के प्रेम को याद करता है तो अमर काफी देर तक उसके ख्यालों में खो जाता है। अनु जब पूछती तो बताता कि कुछ नहीं पत्नी औऱ बच्चों की याद आ गई। अमर अनु को सब बता देता है। हां नेहा को अनु के बारे में बता पाना उसके लिए मुश्किल था। हालांकि कहानी के अंत में अनु का अमर के घर पहुंचना और बच्चों के द्वारा अनु को नई मम्मी कहकर पुकारना अमर की मुसीबतें खत्म कर देता है। बारिश में अनु का अमर को बाहों में भरकर किस करने वाली तस्वीर जब मौसम की खबर के साथ सभी टीवी चैनलों पर चलती है तो दोनों परेशान हो जाते हैं। मगर अमर के दिमाग और अनु के पिता का उद्योगपति होना अमर और अनु को शून्य से शिखर तक पहुंचा देते हैं। उधेड़-बुन की इस जिंदगी में अमर कहानी के अंत तक दो पाटन के बीच फंसा रहता है। अंग्रेजी न आने से अक्सर छटनी की तलवार उसके गले लटकती रहती है और हिंदी बेहतर होने के कारण अनु उसकी प्रेमिका बन जाती है। जब भी अंग्रेजी की बातें होतीं तो उसे अपना अतीत याद आता और बेटों के भविष्य को लेकर वो परेशान हो जाता। सोचता रहता तब तक, जब तक उसे कोई बुलाए न। ऐसा ही अनु के साथ हर मुलाकात पर होता था, अनु से प्यारभरी बातें करते-करते पता नहीं कब वह मंदी को उजागर करने लगता, कभी इस व्यवस्था पर सवाल उठाने लगता। हालांकि उसके भटकने पर अनु उसे अहसास भी दिलाती मगर उसके भीतर समाहित पत्रकार उसे बार-बार समाज की पीड़ा ओर खींच ले जाता। कई बार तो अमर ने अनु को ही निशाना बनाकर तर्क छोड़ा। आप जेसे बड़े लोग ही मजदूरों को कम वेतन देते हैं उनका शोषण करते हैं, अनु गुस्से से अमर को देखती मगर अनु का प्रेम उसे अमर से दूर ही नहीं होने देता। दो पाटन के बीच उपन्यास में सब कुछ है। जिंदगी जीना, संघर्ष, प्रेम, व्यवस्था से सवाल, कारपोरेट का सच, आर्थिक संकट और इन सब से बढ़कर एक पत्रकार की जिंदगी। ये उपन्यास पूरा फ्लैशबैक मे है। इसे जब आप पढ़ेगे तो बार-बार ये जानने की जल्दी रहेगी की आगे क्या हुआ होगा। अगर आप भी पूरी कहानी विस्तार से समझना चाहते हैं तो पढ़िए दो पाटन के बीच। Post Views: 229
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