श्योपत मेघवाल को ज़रूरत है किडनी की और इसके इलाज के लिए ढेर सारे पैसे की

त्रिभुवन वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक हैं। वे जो चीज सही समझते हैं बगैर लाग लपेट के लिखते हैं। वे हर संवेदनशील होकर  हर  पहलू  को  देखते हैं और फिर  लिखते हैं। उन्होंने फेसबुक  पर  राजस्थान के सीपीएम कार्यकर्ता आप चाहें तो नेता कह सकते हैं, श्योपत मेघवाल पर एक पोस्ट लिखी है। श्योपत जी किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं और किडनी बहन देने के लिए तैयार है तो उनके पास इलाज कराने  के पैसे नहीं हैं। सीपीएम के पास इतना  फंड नहीं है कि वह अपने कार्यकर्ता का इलाज करा सके। उन्होंने राजस्थान  के मुख्यमंत्री मोहन लाल शर्मा से अपील  की है कि वह श्योपत मेघवाल का इलाज कराएं और इसके लिए उन्होने भैरो सिंह शेखावत जी का उदाहरण भी दिया है। त्रिभुवन को केवल श्योपत की चिंता नहीं है बल्कि वह श्योपत जैसे उन तमाम नेताओं/कार्यकर्ताओं की चिंता कर रहे हैं जो समाजसेवा में अपना जीवन होम कर देते हैं और फिर उनका इलाज तक नहीं हो पाता। वह मुख्यमंत्री मोहन लाल से अपील कर रहे हैं कि राज्य सरकार ऐसे तमाम लोगों का इलाज कराने की व्यवस्था करे ताकि अपना सबकुछ त्याग कर समाजसेवा के लिए लोग आगे आने में हिचकें नहीं। यह पोस्ट आप सभी को भी पढ़ना चाहिए, इसलिए त्रिभुवन जी के फेसबुक  वाल से पोस्ट और फोटो साभार लेकर इसे प्रतिबिम्म मीडिया में प्रकाशित किया जा रहा है। – संपादक

त्रिभुवन

श्योपत मेघवाल को ज़रूरत है किडनी की और इसके इलाज के लिए ढेर सारे पैसे की।

आख़िर सरकारें राजनीतिक कार्यकर्ताओं के मुफ़्त इलाज की व्यवस्था क्यों नहीं करती? क्या श्योपत जैसे कार्यकर्ता के प्रति भजनलाल शर्मा दिखाएंगे भैरोसिंह शेखावत जैसी सदाशयता?

श्योपत मेघवाल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के ऐसे कार्यकर्ता हैं, जो ज़मीन स्तर पर किसानों, मज़दूरों और वंचितों के लिए बड़ी लड़ाइयां लड़ते हैं। इन दिनों वह जयपुर में है और अपनी किडनी के ट्रांस्प्लांट के लिए जूझ रहे हैं।

इस दुनिया में कॅरियर छोड़कर और धन-वैभव की राह से दूर निकलकर कोई किसानों, श्रमिकों, वंचितों के लिए घर से निकल तो पड़ता है; लेकिन किडनी की ज़रूरत हो तो बहन से पहले कौन आगे आएगा? लेकिन पैसा तो बहन कहाँ से लाए? पार्टी भी अगर बॉण्ड-वॉण्ड से बहुत दूर हो तो कार्यकर्ता भी क्या ही करेगा?

हालांकि चिंता-विंता तो संघ-संघ में भी एक वहम ही है। पिछले दिनों संघ के एक बहुत पुराने और सदैव प्रफुल्लित रहने वाले और जब तब मुझ जैसे वैचारिक दुष्टों का भी हाल जानने की उत्कंठा रखने वाले सदाशयी प्रद्युम्न शर्मा भी अनदेखी में ही चले गए। उन्होंने कहाँ काम नहीं किया; लेकिन एक बेहद प्रतिभाशाली व्यक्ति को सिर्फ़ सेवा का ही मौक़ा मिला। सत्ता की इस उन्मादी लहर में भी किसी ने उन्हें अच्छी जगह पर नहीं रखा। पत्रकारिता में क़दम रखने के दिन से ही मैं जिन कम्युनिस्टों, संघ वालों, अंतरराष्ट्रीयतावादियों और समाजवादियों के संपर्क में रहा हूँ और निरंतर बना हुआ हूँ, उनमें प्रद्युम्न भाई साहब प्रमुख थे।

यह गंगानगर की मिट्‌टी का क़माल है कि कम्युनिस्ट और आरएसएस वाले वैचारिक द्वंद्व को ख़तरनाक़ स्तर पर लड़ते हुए भी निजी जीवन में बहुत अच्छे दोस्त रहते आए हैं। लेकिन दरअसल, गंगानगर की मिट्‌टी ने जिन संघ वालों को पाला-पोसा, वे भी बहुत कुछ लेफ़्ट कल्चर वाले ही थे। हमने कभी उन्हें वैसा नहीं देखा, जैसा आजकल संघ वाले दिखते हैं।

मेरे अपने घर पर ऑर्गेनाइज़र और पांचजन्य लाने वाले बुज़ुर्ग और पीपल्स डेमोक्रेसी और लोकलहर लेकर आने वाले बुजुर्ग एक साथ बैठकर चाय पीते और अपने-अपने नेताओं को जमकर कोसते। और सामने वाला दूसरे को अधिक सही बताता। जाने अब वह उदारता कहाँ चली गई है!

जयपुर आया तो सुना कि अनशन कर रहे सीटू नेता कॉमरेड वक़ार उल अहद के स्वास्थ्य को लेकर मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत चिंतित हैं। शेखावत बाद में भी वक़ार साहब को याद करते और उनके किस्से सुनाते थे।

शेखावत के कॉमरेड त्रिलोकसिंह से भी अच्छे रिश्ते रहे थे।

इन हालात में एक अच्छे राजनीतिक कार्यकर्ता के प्रति सहानुभूति रखते हुए भजनलाल सरकार को चाहिए कि वह श्योपत मेघवाल के नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था करे।

श्योपत ने 2023 के रायसिंहनगर विधानसभा चुनाव में 61 हजार से अधिक वोट लिए थे और तीसरे स्थान पर रहे थे। वे इस सीट पर 2018 में भी दूसरे स्थान पर रहे थे। तीन विधानसभा चुनाव लड़ चुके श्योपत मेघवाल ने बीकानेर से लोकसभा का चुनाव भी माकपा की टिकट पर लड़ा था।

सत्ता में ऐसे ही एक कार्यकर्ता से शीर्ष पर पहुंचे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को वैचारिक मतभेदों को परे रखकर एक अच्छे और लोकतांत्रिक कार्यकर्ता का इलाज मुफ़्त करवाने में मदद करनी चाहिए।

भजनलाल शर्मा को एक नीति भी बनानी चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसे राजनीतिक कार्यकर्ताओं को इलाज मुफ़्त मिले, जो पूर्णकालिक हों और जिन्हें राजनीतिक पहचान हो। जैसे उन्होंने अपने दलों से चुनाव लड़े हों और अच्छे वोट लिए हों।

श्योपत मेघवाल आज की कॅरियरिस्ट और अंधेरी दुनिया में एक अकेला ही दीया है, जिससे वंचितों को रोशनी मिल रही है। उसके पाँव अथक मेहनत ने चाहे कितने भी छील डाले हों; वह अपने विचारों के सहारे चलता हुआ, हर ज़ुल्म-सितम और अन्याय के ख़िलाफ़ डटा रहता है।

श्योपतसिंह एक जाँबाज़ इलाक़े का अंगारा है, बहुत से लोगों की आरती का दीया इसी से जलता है। श्योपत की मदद में किसानों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों के असंख्य हाथ उठे हैं; लेकिन उनकी सीमा है।

सरकार को एक अच्छे और राजनीति को महिमामय ढंग से करने वाले एक कार्यकर्ता के पुनर्जीवन के लिए पहल करनी चाहिए। सियासत की कोई कड़ी जीवन की इस सर्द धूप में जुड़ जाएगी तो वही घड़ी एक पर्व हो जाएगी।