मंजुल भारद्वाज की कविता – भारत में आज शिक्षक होते तो?

भारत में आज शिक्षक होते तो?

– मंजुल भारद्वाज

प्रेम, भाईचारा, सौहार्द

किताबों में न सिसकते

संविधान में दिए मौलिक अधिकार

कागज़ी नहीं होते

सरकार ने शिक्षा का

निजीकरण नहीं किया होता

आज सबके सामने देश

ऐसे न बिकता !

नागरिक ग्राहक नहीं बनता

भारतीय होने से ज्यादा

हिंदू-मुसलमान होना

गर्व की बात नहीं होता

हुक्मरान, जलते दीयों को बुझा

सब जगह अंधेरा नहीं फैलाता!

अंधेरे में हिंसक भीड़

ताली, थाली नहीं बजाती

सत्य को कुचल

झूठ का परचम

नहीं लहराता !

आज भारत में

शिक्षक होते तो

भारत में अमृतकाल

मृत्युकाल नहीं होता !

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