रमेश जोशी की एक कविता
आँधी, वर्षा, तूफाँ सब कुछ
झेल गए हँसते-हँसते
शायद उनके वादों पर थे
हमको ही विश्वास बहुत|
प्रथम किरण से गोधूली तक
कहाँ-कहाँ उड़ते फिरते
परवाज़ें थीं बहुत बड़ी और
छोटा था आकाश बहुत|
रुपया, पैसा, कपड़ा ,लत्ता
गाड़ी, बंगला सब तो है
क्या बतलाएँ किसकी ख़ातिर
हम हैं आज उदास बहुत|
साक़ी, सागर, मीना सब थे
उनकी महफ़िल में लेकिन
हमने अपना खून पी लिया
क्या करते थी प्यास बहुत|
