व्यंग्य
बिहार की सियासत – गर्मी में ठंड का एहसास!
विजय शंकर पांडेय
वैसे तो बिहार में सियासी पारा साल के 365 दिन हाई रहता है। हालांकि इस बार जो हुआ, उसने तो अप्रैल-मई की लू को भी शर्मिंदा कर दिया। बात कुछ यूं है कि प्रदेश के खेल मंत्री सुरेन्द्र मेहता ने 40 डिग्री की चिलचिलाती धूप में, जब पंखे भी गर्म हवा फेंक रहे थे, तब बेगूसराय के अहियापुर गांव में 700 लोगों को ठंडी ठंडी कंबलें बांट दीं। जी हां, वही कंबल जो ठंड में भी लोग मुँह ढँक के ओढ़ते हैं, ताकि नाक से ठंडी हवा अंदर न घुस जाए।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस गर्मी स्पेशल कंबल योजना के पीछे क्या रहस्य है? क्या सरकार ने मौसम विभाग से कोई विशेष जानकारी प्राप्त कर ली है? या किसी पहुंचे हुए बाबा ने शीतलहरी की भविष्यवाणी कर दी? क्या उत्तर भारत में मई में बर्फबारी की संभावना है? या फिर ये नया योगासन है – ‘गरमी में कंबलासन’, जिसमें शरीर को अंदर से ठंडा करने के लिए गर्म कपड़े पहने जाते हैं?
ग्रामीणों का कहना है कि मंत्री जी जब मंच पर चढ़े, तो पहले उन्होंने माथे से पसीना पोंछा, फिर कहा – “हम ठंडी चीज़ लाए हैं, ताकि आप सबको सुकून मिले।” और फिर कंबलों की बरसात होने लगी। कुछ बुजुर्ग महिलाएं तो यह सोचकर भावुक हो गईं कि शायद यह कोई ‘सर्दी का अग्रिम ऑफर’ है। एक ग्रामीण युवक ने कहा, “कंबल बहुत अच्छा है, लेकिन इसे ओढ़ने से पहले मैं एयर कंडीशनर खरीदना चाहूंगा।”
मंत्री जी का बचाव करते हुए पार्टी प्रवक्ता ने कहा, “देखिए, हमारी सरकार दूरदर्शी है। जब बाकी नेता वोट के लिए पंखे, कूलर या छाते बांट रहे हैं, हमारे नेता ठंड के लिए तैयारी कर रहे हैं। ठंड आए, उससे पहले राहत पहुंचा दी गई है। हमारे प्रधानमंत्री अक्सर कहते हैं विजन बड़ा होना चाहिए। इसे कहते हैं “जनकल्याण की दूरदृष्टि।”
कुछ विपक्षी नेताओं ने इसे कंबल कांड का नाम दे दिया और चुनाव आयोग से शिकायत की है कि “जब जनता पसीने-पसीने है, तब उन्हें कंबल देकर मानसिक उलझन में डाल दिया गया है। यह भावनात्मक शोषण है।” सियासी गलियारों में तो अब चर्चा है कि अगली रैली में क्या बंटेगा – गरमी में रजाई? या बरसात में अंगीठी?
पत्रकारों ने जब मंत्री जी से इस पहल के पीछे का लॉजिक जानना चाहा, तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “देखिए, खेल मंत्रालय के तहत हम लोगों को हर मौसम के लिए फिट बनाए रखना चाहते हैं। यह थर्मल रेजिस्टेंस ट्रेनिंग का हिस्सा है।” इसके बाद उन्होंने माइक से कहा, “अब अगली बार मच्छरों से बचावा के लिए मच्छरदानी बांटेंगे – वो भी विंटर कलेक्शन।” तो भाइयों और बहनों, बिहार की राजनीति में अगर कुछ भी सामान्य लगे, तो समझिए कि या तो आप सपना देख रहे हैं, या फिर गर्मी में कंबल ओढ़े बैठे हैं।
अगली बार कोई नेता आपको जून में कंबल दे, तो उसे ओढ़िए मत – उससे सवाल कीजिए। वरना अगली बार सर्दी में बर्फ सिलियां भी मुफ्त में बांटी जा सकती है – जनसेवा के नाम पर!