मजदूर दिवस पर जयपाल की दो कविताएं

मजदूर

जयपाल

मजदूर

पेड़ के बीज में छिपा होता है

बन जाता है जड़,तना और पत्ते

महक जाता है फूल की तरह

पक जाता है फल की तरह

फिर खा लिया जाता है

मिट्टी में उगता है

पलता है खेत में

बनता है फसल

दाने में ढलता है

फिर चबा लिया जाता है

पानी में रहता है

वाष्प में उड़ता है

बरसता है बारिश में

नदी में बहता है

फिर पी लिया जाता है

पृथ्वी सा घूमता है

सूरज सा तप्ता है

चमकता है चांद सा

तारे सा दमकता है

फिर तोड़ लिया जाता है

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मालिक की शुभकामनाएं

 

पिछले साल दीवाली पर

आपने जो शुभकामनाएं

दी थी साहेब

वे इस दीवाली तक बहुत काम आई

बारह-बारह, पन्द्रह-पन्द्रह घंटे काम मिला

बीमारी में भी छुट्टी नहीं की

सारी बीमारियां बिना दवा के ही ठीक हो गई

अब तो मैं बीमार ही नहीं पड़ता साहेब

आपने मिठाई का जो डिब्बा दिया था

उसकी मिठास पूरे साल रही हमारे बीच

आप सपने में भी मीठे-मीठे दिखते रहे

नये साल पर आपने जो कंबल दिया था गर्मागर्म

उसे लेकर तो मैं साल भर सोता ही रहा

आंख ही नहीं खुली पूरे साल

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