हम यहां कार्ल सैंडबर्ग की दो कविताएं प्रकाशित कर रहे हैं। इनका अंग्रेजी से अनुवाद दीपक वोहरा ने किया है। कवि का परिचय भी अनुवादक ने दिया है।
कार्ल सैंडबर्ग अमेरिकी कवि, इतिहासकार, उपन्यासकार और लोकगीतकार थे। उनका जन्म 6 जनवरी, 1878 गैलेसबर्ग, इलिनोइस में 313 ईस्ट थर्ड स्ट्रीट पर एक तीन कमरे की झोपड़ी में क्लारा मैथिल्डा और अगस्त सैंडबर्ग दंपति के घर हुआ।
परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, यही वजह है कि कार्ल को तेरह साल की छोटी उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा। उन्होंने दूध के वैगन को चलाने से लेकर ईंटों को धोने के लिए कई तरह के अजीब काम किए। उन्होंने गैलेसबर्ग में यूनियन होटल नाई की दुकान में कुली के रूप में काम किया। फिर वह कंसास के गेहूं के मैदानों में राजमिस्त्री और खेतिहर मजदूर बन गए । गैलेसबर्ग के लोम्बार्ड कॉलेज में कुछ समय बिताने के बाद , वह डेनवर में एक होटल नौकर बन गए , फिर ओमाहा में कोयला बीनने वाले बन गए। उन्होंने अपने लेखन करियर की शुरुआत शिकागो डेली न्यूज़ के लिए एक पत्रकार के रूप में की।
बाद में उन्होंने कविता, इतिहास, जीवनियाँ, उपन्यास, बच्चों का साहित्य और फ़िल्म समीक्षाएँ लिखीं। सैंडबर्ग ने गाथागीत और लोककथाओं की पुस्तकों का संग्रह और संपादन भी किया। उत्तरी कैरोलिना जाने से पहले उन्होंने अपना अधिकांश जीवन इलिनोइस, विस्कॉन्सिन और मिशिगन में बिताया ।
कार्ल सैंडबर्ग की मृत्यु 22 जुलाई, 1967 को उत्तरी कैरोलिना के फ्लैट रॉक में हुई। उनकी मृत्यु पूरे अमेरिका में पहले पन्ने की खबर थी, और लाखों लोगों ने उन पर शोक व्यक्त किया, जिन्होंने महसूस किया कि वे मिडवेस्ट के एक स्पष्ट कवि को जानते थे।
उनकी मृत्यु पर, राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन ने कहा कि “कार्ल सैंडबर्ग अमेरिका की आवाज से कहीं अधिक, इसकी ताकत और प्रतिभा के कवि से कहीं अधिक थे। वह अमेरिका थे।”
सैंडबर्ग ने अपने कार्यों के लिए तीन पुलित्जर पुरस्कार जीते, “द कम्प्लीट पोयम्स ऑफ़ कार्ल सैंडबर्ग”, “कॉर्नहूसर्स”, और उनकी जीवनी के लिए, “अब्राहम लिंकन: द वार इयर्स”। 1957 में, सैंडबर्ग ने जीवनी और न्यूयॉर्क शहर में कैडमॉन रिकॉर्ड्स के लिए लिंकन के कुछ भाषणों के अंश रिकॉर्ड किए। दो साल बाद उन्हें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए ग्रैमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया – न्यूयॉर्क फिलहारमोनिक के साथ हारून कोपलैंड के लिंकन पोर्ट्रेट की रिकॉर्डिंग के लिए वृत्तचित्र या स्पोकन वर्ड। दीपक वोहरा (अनुवादक)
मैं ही अवाम, जनसमूह
मैं ही अवाम – जनसैलाब
मैं ही हुजूम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा1
क्या आपको मालूम है कि
दुनिया के श्रेष्ठ काम मेरे द्वारा हुए हैं?
मैं ही मज़दूर , मैं ही अन्वेषक
दुनिया के रोटी कपड़े का मूजिद2
मैं ही तमाशबीन
इतिहास का शाहिद3।
नेपोलियन और लिंकन हममें से ही हुए हैं
वो इस दुनिया से रुख़सत हुए,
और ज्यादा नेपोलियन-लिंकन मुझसे ही पैदा हुए हैं।
मैं ही क्यारी।
मैं ही घास का मैदान-
जोते जाने के लिए खड़ा तैयार
भूल जाता हूं मैं
गुजरते हैं मेरे ऊपर से
कितने भयानक तूफ़ान ।
छीन ली जाती हैं मुझसे
बेहतरीन चीज़ें
और तबाह कर दी जाती हैं
फिर भी भूल जाता हूं मैं।
मौत के सिवाय हर चीज़ मुझे मिलती है
जो मुझसे काम करवाती है
और छीन लेती है
जो कुछ मेरे पास होता है
और मैं भूल जाता हूं ।
कभी कभी मैं दहाड़ता हूं
खुद को झिंझोड़ता हूं
और लाल लाल बूंदें बिखेरता हूं
ताकि इतिहास याद रखा जाए
फिर भूल जाता हूं सबकुछ ।
अगर हम लोग
याद रखना सीख लें,
अगर हम लोग
बीते हुए कल से सबक़ लें,
और यह कभी न भूलें
पिछले साल लूटा किसने
किसने बेवकूफ़ बनाया मुझे
तब दुनिया का कोई भी जुमलेबाज
अपनी ज़ुबान पर नहीं ला पायेगा लफ़्ज़
‘अवाम’
उसकी आवाज़ में नहीं होगी खिल्ली
या उपहास की कुटिल मुस्कान।
तब उठ खड़ा होगा जनसैलाब,
अवाम – ख़ल्क़-ए-ख़ुदा।
1. ख़ल्क़-ए-ख़ुदा: जनता, प्रजा
2. मूजिद : आविष्कर्ता, अन्वेषक
3. शाहिद : गवाह, साक्षी
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शिकागो
(कार्ल सैंडबर्ग ने शिकागो के बारे में यह कविता 1914 में लिखी थी। शिकागो की स्थापना 1833 में एक शहर के शिकागो की इस रूपक तुलना का उपयोग करके, सैंडबर्ग दिखा सकते हैं कि कैसे शिकागो एक अपरिपक्व युवा के समान कई गुण हैं: दोनों जीवंत और सक्रिय हैं, लेकिन दोनों में कई खामियां भी हैं। हालाँकि, सैंडबर्ग अपने पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि उन खामियों के बावजूद, शिकागो जिस तरह से विकास कर रहा है, उसमें प्रशंसा करने लायक बहुत कुछ है।)
दुनिया के वास्ते सूअर गोश्त क़साई
औजार बनाने वाला लुहार, गेहूं ढोने वाला काश्तकार,
रेलमार्ग संचालक, राष्ट्र का माल ढोने वाला मज़दूर
जोशीला, प्रचण्ड, झगड़ालू,
चौड़े कंधों का शहर:
वो कहते हैं: तुम दुष्ट हो और मैं उन पर यकीन कर लेता हूं,
क्योंकि मैंने देखा है गैस लैंपों के नीचे
तुम्हारी सजी-धजी कामुक औरतों को
नादान लड़कों को फुसलाते ।
और वो कहते हैं मुझे कि तुम घाघ हो
और मैं कहता हूं: हाँ, यह सच है
क्योंक्ति मैंने देखा है हत्यारे को हत्या करते हुए
और उसे छूटते हुए फिर से हत्या करने के लिए।
और वो कहते हैं मुझे कि तुम ज़ालिम हो
और मैं भी कहता हूँ: हाँ मैंने देखें हैं
स्त्रियों और बच्चों के चेहरे पर
ख़ौफ़नाक भुखमरी के निशान।
और ऐसा जवाब देकर
मैं एक बार फिर मुड़ता हूँ उन लोगों की तरफ
जो मेरे शहर की उड़ाते हैं खिल्ली
और मैं भी उन्हीं के अंदाज़ में मज़ाक उड़ाते हुए कहता हूँ:
आओ दिखाओ मुझे भी कोई और ऐसा शहर
जो सिर उठाकर गाता हो गर्व से
अपने जीवंत, बेलगाम, मजबूत और शातिर होने का नग्मा।
मुख्तलिफ़ काम के बोझ में दबा
दिनभर भागदौड़ करते हुए
फँस जाता है और भी भयानक मुसीबतों में
फिर भी खड़ा है सशक्त खिलाड़ी-सा
छोटे सुस्त-धीमे शहरों के सामने।
भयानक कुत्ते की तरह लपलपाती जीभ
वहशी जानवर सा खड़ा है
बयाबान के खिलाफ़ संघर्ष करने के लिए
खुले सिर
बेलता चलाते हुए
तोड़फोड करते हुए
ख़ाका बनाते हुए
निर्माण, विध्वंस, पुननिर्माण
धुंए से घिरा, धूल से लथपथ चेहरा
बदनसीबी के भयानक बोझ में दबा
खिलखिलाकर हँसता है
जैसे कोई युवा हँसता हो अपनी बत्तीसी दिखाते हुए
वो भी हँसता है ऐसी हँसी
जैसे कोई अनजान योद्धा जिसने कभी कोई युद्ध न हारा हो
गुमान करता है और हँसता है
कि उसकी बाजु में अभी भी जान है
और उसके सीने में धड़कता है दिल अपने लोगों के लिए,
खिलखिलाकर हँसता
ठहाका लगाकर हँसता है बेधड़क, ककर्श युवा हँसी,
नंग-धड़ंग, पसीने से तर-बदर, गर्व करते हुए
कि वो सूअर गोश्त क़साई, औजार बनाने वाला लुहार, गेहूं ढोने वाला काश्तकार,
रेलमार्ग का संचालक और राष्ट्रीय माल ढुलाई मज़दूर है।