सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉण्ड योजना को निरस्त किया; दानदाताओं, राशि के खुलासे का आदेश

  • कोर्ट ने कहा, चुनावी बॉण्ड योजना असंवैधानिक, 6 मार्च तक एसबीआई चुनाव आयोग
  • शीर्ष अदालत केंद्र की इस दलील से सहमत नहीं हुई कि योजना का उद्देश्य राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाना और काले धन पर अंकुश लगाना था
  • भाजपा ने अपना बचाव तो विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया

नई दिल्ली। केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए वीरवार का दिन अच्छा नहीं रहा। काफी समय से लंबित चुनावी बांड मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में राजनीति के वित्तपोषण के लिए लाई गई चुनावी बॉण्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए निरस्त कर दिया तथा चंदा देने वालों, बॉण्ड के मूल्यों और उनके प्राप्तकर्ताओं की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।

भाजपा प्रवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करते हुए कहा कि इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। जबकि कांग्रेस समेत विपक्ष ने भी स्वागत किया है।प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने 2018 की इस योजना को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सूचना के संवैधानिक अधिकारों का “उल्लंघन” बताया।

शीर्ष अदालत केंद्र की इस दलील से सहमत नहीं थी कि इस योजना का उद्देश्य राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाना और काले धन पर अंकुश लगाना था।लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में उच्चतम न्यायालय ने इस योजना को तत्काल बंद करने तथा इस योजना के लिए अधिकृत वित्तीय संस्थान ‘भारतीय स्टेट बैंक’ (एसबीआई) को 12 अप्रैल, 2019 से अब तक खरीदे गये चुनावी बॉण्ड का विस्तृत ब्योरा छह मार्च तक निर्वाचन आयोग को सौंपने का भी निर्देश दिया।

न्यायालय के आदेशानुसार, निर्वाचन आयोग 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर छह वर्ष पुरानी योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने के निर्देश दिए।संविधान पीठ ने 232 पृष्ठों के अपने दो अलग-अलग, लेकिन सर्वसम्मत फैसलों में कहा कि एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा भुगतान कराए गए सभी चुनावी बॉण्ड का ब्योरा देना होगा। इस ब्योरे में यह भी शामिल होना चाहिए कि किस तारीख को यह बॉण्ड भुनाया गया और इसकी राशि कितनी थी। इसने कहा कि साथ ही पूरा विवरण छह मार्च तक निर्वाचन आयोग के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।

पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।शीर्ष अदालत ने एसबीआई को विवरण साझा करने का भी निर्देश दिया, जिसमें “प्रत्येक चुनावी बॉण्ड की खरीद की तारीख, बॉण्ड के खरीदार का नाम और खरीदे गए चुनावी बॉण्ड का मूल्य शामिल है।’’प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘चुनावी बॉण्ड योजना और विवादित प्रावधान ऐसे हैं कि वे चुनावी बॉण्ड के माध्यम से योगदान को गुमनाम बनाते हैं तथा मतदाता के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, साथ ही अनुच्छेद 19(1)(ए) का भी उल्लंघन करते हैं।’’

पीठ ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है।फैसले में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी अवैध ठहराया गया।शीर्ष अदालत ने 12 अप्रैल, 2019 को एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें निर्देश दिया गया था कि राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे और आगे प्राप्त होने वाले चंदे की जानकारी एक सीलबंद कवर में निर्वाचन आयोग को प्रस्तुत करनी होगी।अदालत ने आदेश दिया कि 15 दिनों की वैधता अवधि वाले चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दल या खरीदार द्वारा जारीकर्ता बैंक को वापस कर दिए जाएंगे, जो बदले में खरीदार के खाते में राशि वापस कर देगा।इसमें कहा गया कि एसबीआई चुनावी बॉण्ड जारी नहीं करेगा और 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉण्ड के ब्योरे निर्वाचन आयोग को देगा।

न्यायालय ने कहा कि साथ ही एसबीआई को उन राजनीतिक दलों के भी ब्योरे देने होंगे, जिन्हें 12 अप्रैल 2019 से अब तक चुनावी बॉण्ड के जरिये धनराशि मिली है।फैसले में 2017-18 से 2022-23 तक राजनीतिक दलों की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट का हवाला दिया गया, जिसमें ऐसे बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त पार्टी-वार चंदे को दर्शाया गया है।

इस दौरान भाजपा को 6,566.11 करोड़ रुपये, जबकि कांग्रेस को 1,123.3 करोड़ रुपये मिले। इसी अवधि के दौरान तृणमूल कांग्रेस को 1,092.98 करोड़ रुपये प्राप्त हुए।सीजेआई ने खुद और न्यायमूर्ति गवई, न्यायमूर्ति पारदीवाला और न्यायमूर्ति मिश्रा की ओर से 152 पन्नों का फैसला लिखा।इस फैसले में कहा गया है कि कंपनी अधिनियम के एक प्रावधान को हटाना और राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदे की अनुमति देना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) ‘एकतरफा और उल्लंघन’ था।यह मानते हुए कि किसी मतदाता को प्रभावी ढंग से वोट देने की अपनी स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने के लिए एक राजनीतिक दल को मिलने वाले वित्तपोषण के बारे में जानकारी आवश्यक है, पीठ ने कहा कि यह योजना न्यूनतम प्रतिबंधात्मक साधन परीक्षण को पूरा नहीं करती है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘चुनावी बॉण्ड योजना चुनाव में काले धन पर अंकुश लगाने का एकमात्र साधन नहीं है। ऐसे अन्य विकल्प भी हैं जो उद्देश्य को काफी हद तक पूरा करते हैं और सूचना के अधिकार पर चुनावी बॉण्ड के प्रभाव की तुलना में सूचना के अधिकार को न्यूनतम रूप से प्रभावित करते हैं।”न्यायमूर्ति खन्ना ने 74 पन्नों का फैसला लिखा, जिसमें उन्होंने प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए फैसले से सहमति के लिए अलग-अलग कारण बताए।

कुरैशी ने जताई प्रसन्नता

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने इस फैसले पर प्रसन्नता जताई है। उन्होंने कहा, ‘‘इससे लोगों का लोकतंत्र पर विश्वास बहाल होगा। इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता था। यह उच्चतम न्यायालय की ओर से पिछले पांच-सात वर्ष में दिया गया सबसे ऐतिहासिक निर्णय है।यह लोकतंत्र के लिए वरदान है।’’उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड को असंवैधानिक करार दिया। उच्चतम न्यायालय जिंदाबाद।’’

पीठ ने पिछले वर्ष अक्टूबर में चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की, जिनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिकाएं शामिल हैं।ठाकुर ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद मीडिया से कहा, ‘‘जो लोग चुनावी बॉण्ड के माध्यम से धन दान कर रहे थे वे अपने नाम का खुलासा नहीं कर रहे थे। कहीं न कहीं वे सरकार से कोई फायदा चाहते होंगे….इस फैसले से फर्क पड़ेगा। यह लोगों के हितों की रक्षा करेगा।’’मामले में ठाकुर के वकील वरुण ठाकुर ने इस फैसले को सरकार के लिए एक झटका बताया ‘‘क्योंकि 2018 से 2024 तक जो भी लेनदेन हुआ है उसे सार्वजनिक करना होगा।’’ठाकुर ने कहा, ‘‘जिस तरह से योजना के माध्यम से गुमनाम योगदान प्राप्त हुआ उसके लिए यह एक झटका है। अब जवाबदेही तय की जाएगी। यह लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक कदम है और आज हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र की जीत हुई है।’’

चुनाव आयोग वेबसाइट पर सार्वजनिक करनी होगी जानकारी :प्रशांत भूषण

एडीआर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने एसबीआई को इस बात की पूरी जानकारी देने का निर्देश दिया है कि बॉण्ड किसने खरीदे, किसने भुनाए… यह सारी जानकारी निर्वाचन आयोग को सौंपनी होगी, जिसे इसे अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करना होगा ताकि लोगों को पता चले कि बॉण्ड किसने खरीदे।’’

चुनावी बॉण्ड योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉण्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है।

आलोचकों का कहना था कि इससे चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता समाप्त होती है और सत्तारूढ़ दल को फायदा होता है।वास्तव में चुनावी बॉन्ड है क्या?चुनावी बॉन्ड वित्तीय तरीका है जिसके माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है। इसकी व्यवस्था पहली बार वित्तमंत्री ने 2017-2018 के केंद्रीय बजट में की थी।

चुनावी बॉन्ड योजना- 2018 के अनुसार चुनावी बॉन्ड के तहत एक वचन पत्र जारी किया जाता है जिसमें धारक को राशि देने का वादा होता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अनुसार इसमें बॉन्ड के खरीदार या भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है, स्वामित्व की कोई जानकारी दर्ज नहीं की जाती और इसमें धारक (यानी राजनीतिक दल) को इसका मालिक माना जाता है।

योजना भारतीय नागरिकों और घरेलू कंपनियों को इन बॉन्ड के जरिये दान करने की अनुमति देती है जो एक हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपये के गुणांक में अपनी पसंद की पार्टी को दे सकते हैं।इन बॉन्ड को राजनीतिक पार्टियों द्वारा 15 दिनों के भीतर भुनाया जा सकता है। व्यक्ति या तो स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के साथ इन बॉन्ड को खरीद सकता है।मौजूदा समय में व्यक्ति (कंपनियों के लिए) के लिए बॉन्ड खरीदने की कोई सीमा नहीं है। राजनीतिक दल द्वारा 15 दिनों में बॉन्ड को नहीं भुनाने की स्थिति में राशि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राहत कोष में जमा हो जाती है।

एडीआर ने रेखांकित किया कि योजना के तहत राजनीतिक पार्टियों को चुनाव आयोग में सलाना चंदे का विवरण जमा करने के दौरान बॉन्ड के जरिये चंदा देने वाले का नाम व पता देने की जरूरत नहीं होती है।कार्यकर्ताओं ने राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाया था। उनका मानना है कि बॉन्ड नागरिकों के जानने के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है।एडीआर ने रेखांकित किया कि चुनावी बॉन्ड नागरिकों को कोई विवरण नहीं देते लेकिन सरकार हमेशा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से डेटा की मांग करके दानकर्ता की जानकारी प्राप्त कर सकती है।

एडीआर ने कहा, ‘‘निर्वाचन आयोग ने रिकॉर्ड पर कहा था कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से किसी राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त किसी भी दान को रिपोर्टिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया है और इसलिए यह एक प्रतिगामी कदम है और इसे वापस लेने की जरूरत है।’’

चंदे में पारदर्शिता के लिए चुनावी बॉन्ड योजना लाई गई थी, उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान

भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी बॉन्ड योजना का बचाव करते हुए कहा कि इसका प्रामाणिक उद्देश्य चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाना था।भाजपा नेता और पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हालांकि कहा कि उनकी पार्टी उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करती है।उच्चतम न्यायालय की ओर से एक ऐतिहासिक फैसले में राजनीति के वित्तपोषण के लिए लाई गई चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द किए जाने के बाद केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी की यह टिप्पणी सामने आई।शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि यह संविधान प्रदत्त सूचना के अधिकार और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है।लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को छह वर्ष पुरानी योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने के निर्देश दिए।शीर्ष अदालत की संविधान पीठ द्वारा फैसला सुनाए जाने का जिक्र करते हुए प्रसाद ने कहा कि फैसला सैकड़ों पृष्ठों का है और पार्टी द्वारा सुनियोजित जवाब देने से पहले व्यापक अध्ययन की जरूरत है।

उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने चुनाव के लिए चंदे की व्यवस्था में सुधार के प्रयास किए हैं और चुनावी बॉन्ड जारी करना इसी कदम का हिस्सा है।चुनावी बॉन्ड को मोदी सरकार की ‘काला धन सफेद करने की’ योजना बताए जाने के कांग्रेस के आरोप पर उन्होंने विपक्षी पार्टी पर निशाना साधा और कहा कि जिन दलों का ‘डीएनए’ भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी पर आधारित है, उन्हें भाजपा के खिलाफ ऐसे आरोप नहीं लगाने चाहिए।चुनावी बॉन्ड द्वारा विपक्षी दलों को चुनाव में समान अवसर देने से वंचित करने के आरोपों पर उन्होंने कहा कि कौन मैदान में है और कौन मैदान से बाहर निकल है, यह जनता तय करती है।उन्होंने कांग्रेस पर स्पष्ट रूप से निशाना साधते हुए कहा कि लोगों ने कुछ पार्टियों को मैदान से बाहर कर दिया है और वे अब उन क्षेत्रों में एक भी सीट नहीं जीत सकते जो उनके गढ़ हुआ करते थे।

इससे पहले, भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि विपक्ष इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहा है क्योंकि उसके पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और उनकी सरकार द्वारा किए गए सकारात्मक कार्यों से मुकाबले का कोई विकल्प नहीं है।कोहली ने कहा, ‘‘हम अदालतों में वकालत करते हैं और रोजाना मामले जीते और हारे जाते हैं।’’उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के किसी भी आदेश या उसके फैसले को स्वीकार किया जाना चाहिए और उसका सम्मान किया जाना चाहिए।उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘लेकिन जो राजनीतिक दल इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, वे मुख्य रूप से इस आधार पर ऐसा कर रहे हैं क्योंकि उनके पास मोदीजी के नेतृत्व और उनकी सरकार द्वारा किए गए सकारात्मक कार्यों का कोई जवाब या विकल्प नहीं है, जिनसे करोड़ों लोग लाभान्वित हुए हैं।’’

न्यायालय ने मोदी सरकार की ‘काला धन सफेद करने की’ योजना को रद्द कर दिया : खड़गे

विपक्षी दलों ने फैसले का स्वागत किया, सत्तारूढ़ भाजपा पर हमला बोलाकांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि न्यायालय ने मोदी सरकार की ‘काला धन सफेद करने की’ योजना को रद्द कर दियाहै। उन्होंने उम्मीद जताई कि मोदी सरकार भविष्य में ऐसे विचारों का सहारा लेना बंद कर देगी और उच्चतम न्यायालय की बात सुनेगी ताकि लोकतंत्र, पारदर्शिता और समान अवसर कायम रहें।

पूर्व सीईसी कृष्णमूर्ति ने कहा, चुनावी बॉण्ड मामले में न्यायालय का फैसला ऐतिहासिक; लोकतंत्र के हित में :

बेंगलुरु। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) टी. एस. कृष्णमूर्ति ने राजनीतिक चंदे के लिए चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले को ”ऐतिहासिक” करार देते हुए कहा कि यह स्वच्छ लोकतंत्र के हित में है।कृष्णमूर्ति ने कहा कि वह फैसले से पूरी तरह सहमत हैं। उन्होंने पहले भी सार्वजनिक बयान दिया था कि चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता के लिए सही नहीं है।उन्होंने कहा कि यद्यपि यह दावा किया गया था कि चुनावी बॉण्ड के जरिये पारदर्शिता को बढ़ावा दिया जा रहा है, क्योंकि यह (चंदे की राशि) बैंकिंग चैनल से होकर गुजरती है, लेकिन यह योजना कतई सही नहीं थी।उन्होंने बताया, ‘‘लेकिन चंदे का स्रोत और दानकर्ता का नाम ज्ञात नहीं है। फिर आप कैसे जानते हैं कि यह उचित माध्यम से अर्जित पैसा है या गलत पैसा; यह ज्ञात नहीं है।’’

कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘‘यह एक ऐतिहासिक फैसला है, यह स्वच्छ लोकतंत्र के हित में है। मैं केवल आशा करता हूं कि राजनीतिक दल अपना सबक सीखेंगे।’’

चुनावी बॉन्ड से केवल भाजपा को फायदा हुआ : महाराष्ट्र के विपक्षी दल

महाराष्ट्र में विपक्षी दलों ने कहा कि इस योजना से केवल भारतीय जनता पार्टी को फायदा हुआ है।राकांपा-शरदचंद्र पवार के प्रवक्ता क्लाइड क्रास्टो ने दावा किया कि गुमनाम दानदाताओं के जरिए सत्तारूढ़ भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना शुरू की गई थी।उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत, राजनीतिक दलों को किसी व्यक्ति से मिलने वाले चंदे के बदले में फायदे पहुंचाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता और इसलिए भाजपा को प्राप्त हुए चुनावी बॉन्ड की मात्रा को देखते हुए इसकी संभावना है।क्रास्टो ने कहा, ‘‘चुनावी बॉन्ड योजना को “असंवैधानिक” बताते हुए इसे रद्द करने का उच्चतम न्यायालय का फैसला एक बहुत ही स्वागत योग्य कदम है। राजनीतिक दल को मिलने वाले हर चंदे में पारदर्शिता और जवाबदेही होनी चाहिए।’’

उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना (यूबीटी) ने कहा कि शीर्ष न्यायालय ने चुनावी बॉंड पर एक ऐतिहासिक फैसला दिया है लेकिन जैसा मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के मामले में देखने को मिला, वैसा इसमें नहीं होना चाहिए।शिवसेना (यूबीटी) सांसद विनायक राउत ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को दरकिनार कर दिया और एक कानून पारित किया, जिसके तहत प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता मुख्य निर्वाचन आयुक्त का चयन करेंगे। इस विषय में भी ऐसा नहीं होना चाहिए।’’शिवसेना (यूबीटी) न केवल न्यायालय के फैसले का स्वागत करती है बल्कि यह भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और सरकार पर लोगों के साथ सूचना (चुनावी बॉन्ड के बारे में) साझा करने के लिए भी दबाव डालेगी।

माकपा ने किया स्वागत

इस बीच, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह एक अनुचित योजना थी जिसे सत्तारूढ़ दल को मदद पहुंचाने के लिए तैयार किया गया था और अब राजनीतिक एवं चुनावी वित्तपोषण के लिए सुधारों की जरूरत है।पार्टी ने एक बयान में कहा कि पार्टी ने शुरूआत में ही कहा था कि वह इस योजना को स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि यह भ्रष्टाचार को कानूनी रूप देती है। इसमें कहा गया है कि माकपा ने चुनावी बॉन्ड योजना को उच्चतम न्यायालय में अन्य याचिकाओं के साथ चुनौती दी थी।माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि न्यायालय के फैसले में पार्टी की दलील को बरकरार रखा गया।उन्होंने कहा, ‘‘हमारे वकील शदान फरासत और अन्य को बधाई, जिन्होंने मामले में प्रभावकारी दलील पेश की।’’

चुनावी बॉन्ड पर फैसले से वोट की ताकत मजबूत होगी : कांग्रेस

कांग्रेस ने चुनावी बॉन्ड योजना पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि यह निर्णय नोट के मुकाबले वोट की ताकत को और मजबूत करेगा तथा उम्मीद की जाती है कि सरकार अब ऐसे ‘शरारतपूर्ण’ विचारों का सहारा लेना बंद करेगी।पार्टी ने साथ ही यह आरोप भी लगाया कि इस फैसले से इस बात पर मुहर लग गई है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चुनावी बॉण्ड को रिश्वत और कमीशन लेने का माध्यम बना दिया था।इस फैसले में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को छह वर्ष पुरानी योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने के निर्देश दिए गए हैं।

‘नरेन्द्र मोदी की भ्रष्ट नीतियों का एक और सबूत आपके सामने: राहुल गांधी

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि भाजपा ने चुनावी बॉण्ड को रिश्वत और कमीशन लेने का माध्यम बना दिया था।उन्होंने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘नरेन्द्र मोदी की भ्रष्ट नीतियों का एक और सबूत आपके सामने है। भाजपा ने चुनावी बॉण्ड को रिश्वत और कमीशन लेने का माध्यम बना दिया था। आज इस बात पर मुहर लग गई है।’’पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार की बहुप्रचारित चुनावी बॉन्ड योजना को संसद द्वारा पारित कानूनों के साथ-साथ भारत के संविधान दोनों का उल्लंघन माना है। लंबे समय से प्रतीक्षित फैसला बेहद स्वागत योग्य है और यह नोट पर वोट की शक्ति को मजबूत करेगा।’’

उन्होंने किसानों के ‘दिल्ली मार्च’ आंदोलन की पृष्ठभूमि में आरोप लगाया कि मोदी सरकार ‘चंदादाताओं’ को विशेषाधिकार देते हुए अन्नदाताओं पर हर तरह का अत्याचार कर रही है।रमेश ने कहा, ‘‘हमें यह भी उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इस बात पर ध्यान देगा कि चुनाव आयोग लगातार वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के मुद्दे पर राजनीतिक दलों से मिलने से भी इनकार कर रहा है। यदि मतदान प्रक्रिया में सब कुछ पारदर्शी है तो फिर इतनी जिद क्यों?”उन्होंने आरोप लगाया कि आज उच्चतम न्यायालय ने साबित कर दिया है कि मोदी सरकार ‘सूट-बूट-झूठ-लूट की सरकार’ है।

कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘कांग्रेस पार्टी न्यायालय के इस फैसले का स्वागत करती है और मांग करती है कि एसबीआई तमाम जानकारी सार्वजनिक पटल पर रखे, जिससे जनता को मालूम पड़े कि किसने कितना पैसा दिया।’’उन्होंने कहा, ‘‘यह योजना मोदी सरकार ‘मनी बिल’ के तौर पर लाई थी, ताकि राज्यसभा में इसपर चर्चा न हो, यह सीधा पारित हो जाए। हमें डर है कि कहीं फिर से कोई अध्यादेश जारी न हो जाए और मोदी सरकार उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से बच जाए। ’’

उन्होंने सवाल किया कि क्या इस ‘घोटाले’ की जांच के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को लगाया जाएगा?खेड़ा ने आरोप लगाया, ‘‘चुनावी बॉन्ड योजना भ्रष्टाचार का मामला है, जिसमें सीधे-सीधे प्रधानमंत्री शामिल हैं। देश पर चुनावी बॉन्ड को थोपा गया, जबकि चुनाव आयोग, वित्त मंत्रालय और कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने विरोध किया था। आज प्रधानमंत्री और उनका भ्रष्टाचार बेनकाब हो गया है।’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘प्रधानमंत्री ने धन विधेयक लाकर इसे कानूनी जामा पहनाया था, ताकि विधायक खरीदे जा सकें, मित्रों को कोयले की खदान, हवाई अड्डे दिए जा सकें।’’

द्रमुक और अन्नाद्रमुक ने फैसले को सराहना की

तमिलनाडु की सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और विपक्षी अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) दोनों ने बृहस्पतिवार को राजनीतिक चंदे के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले की सराहना की।मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इस फैसले ने लोकतंत्र और सभी राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर बहाल करने के अलावा जनता का तंत्र में विश्वास सुनिश्चित किया है।स्टालिन ने ‘एक्स’ पर लिखा, ”माननीय उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया। इससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शी और तंत्र की अखंडता सुनिश्चित होगी।इस फैसले ने लोकतंत्र और सभी राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर बहाल कर दिया है। इसने तंत्र में आम आदमी के विश्वास को भी सुनिश्चित किया है।”

अन्नाद्रमुक के महासचिव एडप्पादी के पलानीस्वामी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि अन्नाद्रमुक एकमात्र ऐसी पार्टी थी, जिसे योजना के माध्यम से धन नहीं प्राप्त हुआ।पलानीस्वामी ने ब विधानसभा भवन के बाहर संवाददाताओं को संबोधित करते हुए मीडिया से उन सभी पार्टियों को बेनकाब करने का आह्वान किया, जिन्होंने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से मोटी रकम प्राप्त की।पलानीस्वामी ने कहा, ”इन बॉन्ड के माध्यम से बहुत बड़ी राशि जुटाई गई। ये पार्टियां हमें दबा रही हैं और अपनी धन शक्ति से हमें नष्ट करने की कोशिश कर रही हैं। निश्चित रूप से हम इस फैसले का स्वागत करते हैं।”