मुनेश त्यागी
हर तरह की गुलामियों से आजाद कराने के लिए, हमारे देश के लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जानें कुर्बान की थीं, अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था, हम उन सब का दिलों जान से परम सम्मान करते हैं, मगर इन सब में सर्वोच्च स्थान शहीदे आजम भगत सिंह और उनके साथियों और “आजादी के दीवाने सुभाष चंद्र बोस” का था। जब सुभाष चंद्र बोस की जीवनी पढ़ते हैं तो आदमी का रोम रोम रोमांचित हो जाता है और वह स्वतंत्रता की भावना से और स्रोत हो जाता है।
आज भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस का 128वां अवसर है। सुभाष चंद्र बोस 23 जनवरी 1897 को पैदा हुए थे। सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही आजादी के स्वप्न द्रष्टा थे। वह ऐसे सपने देखते थे कि जहां शोषण न हो, स्वार्थ वर्धन न हो, अन्याय को बनाए रखने के स्वप्न नहीं, बल्कि प्रगति के स्वप्न, जनसाधारण की सुख शांति के स्वप्न, स्वतंत्रता और हर राष्ट्र की आजादी के स्वप्न।
सुभाष चंद्र बोस की पत्नी का नाम एमिली शेंकेल और उनकी पुत्री का नाम अनीता था। उनकी पत्नी ऑस्ट्रियावासी थी और वहीं पर उनकी बेटी का जन्म हुआ था। सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी को अपना नेता समझते थे और आजादी को लेकर दोनों का एक ही उद्देश्य था कि भारत किसी भी तरह से आजाद हो।
गांधीजी अहिंसा और शांति के द्वारा इस आजादी को प्राप्त करना चाहते थे, तो सुभाष चंद्र बोस इससे बढ़कर किसी भी तरह से अहिंसा, हिंसा या जंग के माध्यम से आजादी को हासिल करना चाहते थे, इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया और अपने देशवासियों का आह्वान किया कि वह इस सेना में भर्ती हों और अंग्रेजों को सशस्त्र लड़ाई के माध्यम से, यहां से मार भगाएं क्योंकि उनका मानना था कि तलवार का मुकाबला तलवार से ही किया जा सकता है।
अपने इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया और इस आर्मी के माध्यम से अंग्रेजों को यहां से भगाने का काम शुरू किया। उनका काम आगे बढ़ता, इससे पहले ही 19 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में अंग्रेजों द्वारा उनकी हत्या करा दी गई। इसके बाद आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों की गिरफ्तारी हो जाती है। उनकी रिहाई की मांग को लेकर भारतीय नेवी सेना 20 फरवरी 1946 को विद्रोह कर देती है और उसके 78 जहाजों के सिपाही यूनियन जैक को उतार कर फेंक देते हैं और उसके स्थान पर कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे लगा लेते हैं। वे बगावत का ऐलान कर देते हैं और अंग्रेजों के आदेशों का पालन करने से मना कर देते हैं। यहीं से अंग्रेज शासन भयंकर रूप से डर जाता है और इस महान घटना के बाद अंग्रेजों द्वारा भारत को आजाद करने का कार्यक्रम शुरू हो जाता है।
सुभाष चंद्र बोस की विरासत बहुत अहम और महत्वपूर्ण है। सुभाष की विरासत संपूर्ण समर्पण और निरंतर बलिदान का आदर्श है। वे समस्त भारतीयों की एकता में विश्वास करते थे। सुभाष चंद्र बोस भारत की भाषा “हिंदुस्तानी भाषा” को भारतीय भाषा बनाना चाहते थे जो हिंदी और उर्दू का मिश्रण होगी।
सुभाष चंद्र बोस धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित सम्पूर्ण, स्वाधीन, जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, गणतंत्र की स्थापना करना चाहते थे। सुभाष चंद्र बोस की स्वतंत्रता का आदर्श था,,,, समाज की स्वतंत्रता, निर्धनों की स्वतंत्रता, सभी वर्गों की स्वतंत्रता, राजनीतिक स्वतंत्रता, धन का समान वितरण, सामाजिक असमानताओं का उन्मूलन, सांप्रदायिकता, जातिवाद तथा धार्मिक असहिष्णुता का पूर्ण नाश। ये थे उनके आदर्श। उनके जीवन का एक ही अर्थ और एक ही उद्देश्य था और वह था कि हर तरह की गुलामी से आजादी, किसी भी तरह से आजादी,,,, शांति से या जंग से।
सुभाष चंद्र बोस छात्रों को राजनीति में लाने के हिमायती थे। वे चाहते थे कि छात्र राजनीति में हिस्सा लें, साम्राज्यवाद के खिलाफ उनकी सेना में शामिल हों और भारत को आजाद कराने के लिए आगे आएं और गांव गांव, झोपड़ियों झोपड़ियों और कारखानों में किसान मजदूरों को स्वतंत्रता के लिए, आजादी के लिए जागृत करें, संगठित और एकजुट करें।
उनका कहना था कि “हमें भारत को आजाद कराने के लिए “स्वतंत्रता की सेना” बनानी पड़ेगी और इसमें हर किसी को शामिल करना पड़ेगा। उनका मानना था कि हमें दासता, अन्याय और असमानता से कोई समझौता नहीं करना है तथा जनता को जागृत करने के लिए गहन तथा विस्तृत प्रचार की जरूरत है।”स्वतंत्रता का जागरण करने के लिए हमें मिशनरी पैदा करने होंगे। हमारे मिशनरियों को किसान और मजदूरों के बीच जाना होगा, उन्हें संगठित करना होगा, उन्हें महिलाओं को जागृत करना होगा। चीन के छात्रों की तरह, हमारे छात्रों को गांवों, कस्बों, कारखानों और खेतों में आजादी का संदेश ले जाना होगा, पूरे देश की जनता को एक कौने से दूसरे कौने तक संगठित करना होगा। आजादी का रास्ता कांटों भरा रास्ता है, मगर हमें इसी रास्ते पर चलना होगा।”
वे समाजवाद को हर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्या का रामबाण समझते थे। आजादी के दीवाने और महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का कहना था कि “इसमें मुझे तनिक भी संदेह नहीं है कि हमारी गरीबी, निरक्षरता और बीमारी का उन्मूलन और वैज्ञानिक उत्पादन और वितरण से संबंधित समस्याओं का प्रभावी समाधान, समाजवादी मार्ग पर चलकर ही प्राप्त किया जा सकता है” उन्होंने “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा दिया और “दिल्ली चलो” का नारा दिया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही गांधी जी को 1944 में “राष्ट्रपिता” की उपाधि प्रदान की थी और गांधी जी को “राष्ट्रपिता” के नाम से पुकारा था और उनका प्रसिद्ध नारा है “जय हिंद” जिसे इंकलाब जिंदाबाद की तरह हर मीटिंग में और अब तो अभिवादन के रूप में प्रयोग किया जाता है। याद रखिए,,,,,यह नारा उनके सबसे करीबी और विश्वसनीय सहयोगी “आबिद हसन” ने दिया था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत में हिंदू मुस्लिम एकता के सबसे बड़े हामी और प्रवर्तक थे। अपने दोस्त आबिद हसन के साथ वे दक्षिणी अफ्रीका से जापान पहुंचे और जब वे तैवान से रूस के लिए जा रहे थे तो उनके साथ उनके प्रिय दोस्त हबीबुर्रहमान थे। उन्होंने जो अंतरिम सरकार बनाई थी उसमें आठ मंत्री थे जिनमें चार हिंदू और चार मुसलमान थे। उनकी आजाद हिंद सेना के तीन जनरल थे,,,, ढिल्लों, सहगल और शाहनवाज।
नेताजी, महिलाओं की आजादी के जबरदस्त समर्थक थे। उनका मानना था कि जब तक इस देश की महिलाएं स्वतंत्र और आजाद नहीं होंगी, तब तक हमारा देश आजाद नहीं हो सकता, यह संपूर्ण रूप से आजाद नहीं हो सकता, इसलिए उन्होंने अपनी सेना में रानी झांसी रेजीमेंट युनिट बनाई थी। इसका नेतृत्व कैप्टन लक्ष्मी सहगल कर रही थी, जिन्हें बाद में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत के राष्ट्रपति चुनाव में अपना राष्ट्रपति का उम्मीदवार चुना था।
आइए, युगों की दासता और गुलामी, शोषण, अन्याय और भेदभाव की जंजीरों को काटने के लिए, आजादी के लिए, नेताजी के बताये मार्ग पर अग्रसर हों। हमारा देश 1947 में आजाद हुआ मगर 78 साल की आजादी का इतिहास बता रहा है कि यह आजादी हासिल करने के बाद का भारत, सुभाष चंद्र बोस के स्वप्नों का भारत नहीं है। यह जो आजादी है, सुभाष चंद्र बोस के सपनों की आजादी नहीं है। हमें फिर से आजाद होना है, गुलामी से, शोषण से, अन्याय से, जुल्मों सितम से, जातिवाद से, सांप्रदायिकता से, गरीबी से, भुखमरी से, गरीबी से, भ्रष्टाचार से, अमीरी गरीबी से, ऊंच नीच और छोटे बड़े की मानसिकता से और साम्राज्यवादी प्रभुत्व की नीतियों से।
हमें फिर से एक स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत करनी होगी और आजादी के दीवाने, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सपनों का भारत बनाने की शुरुआत करनी होगी और यह काम किसानों मजदूरों की एकता, उनका संगठन, उनकी सरकार और सत्ता ही कर सकती है। इसके अलावा पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकार, आम जनता की, किसानों की, मजदूरों की, मेहनतकशों की, महिलाओं की, नौजवानों की और विद्यार्थियों की किसी भी समस्या का हल नहीं कर सकता। सुभाष चंद्र बोस का प्यारा नारा “जय हिंद” जिंदाबाद।
आजादी के सबसे बड़े दीवाने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके नारों और विचारधारा,,,,, सम्प्रभुतासम्पन्न, जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी गणतंत्र और सब प्रकार की सच्ची आजादी को धरती पर उतारा जाए और सारी जनता को सब प्रकार के शोषण अन्याय अत्याचार और दमन से आजाद किया जाए और उनके सपनों के भारत का निर्माण किया जाए और हम सब बिना कोई बहाना बनाते इस सच्ची आजादी को धरती पर उतारने के अभियान में शामिल हों।