साहित्य चिंतन – 24
सार्त्र और सिमोन द बुआ
आनंद प्रकाश
सार्त्र और सिमोन द बुआ की मित्रता ने स्त्री-पुरुष के परंपरागत संबंधों के मिथक को पूरी तरह तोड़ा, वैवाहिक जीवन में मौजूद नैतिक नियमावली के सामने गंभीर सवाल खड़े किए, परिवार की संकल्पना को सामाजिक सार्थकता के रूबरू रखा, और स्पष्ट कहा कि मनुष्यों की दोस्ती का, उनके पारस्परिक लगाव का मूल सूत्र व्यापक सवालों पर बनी सहमति या फिर तीखी समस्याओं पर होने वाली बहस में है।


स्वीकृत अर्थ में सार्त्र और सिमोन द बुआ विवाहित नहीं थे, वे उसे बंधन मानते थे जो व्यक्ति की निजता को सीमित करता है, उसे जकड़ता है। यह बीसवीं सदी के अंत में लोकप्रिय होने वाला उच्चवर्गीय ‘लिव इन’ नहीं था जिसकी पिछले वर्षों में पूरी दुनिया के साधन-संपन्न तथा मध्य वर्ग के बीच फैशनेबल उपस्थिति मिलती है। ‘लिव इन’ में सामाजिक-पारिवारिक जिम्मेदारी, वैधानिक स्वीकृति, आदि द्वारा उत्पन्न पारस्परिक प्रतिबद्धता से बचने पर ज़ोर रहता है। इस कारण वहां स्वच्छंदता है, मानो दो व्यक्ति अपने परिवेश के भीतर मात्र व्यक्ति हैं, न वे आसपास किसी को जानते हैं, न कोई अन्य उनसे परिचित है। वे समाज के भीतर एक तरह का टापू बना कर रहते हैं। काश, ऐसे टापू आज के जैसे असमान समाज में संभव होते जिनका कोई आर्थिक-वैचारिक आदान-प्रदान समाज से न होता!!
