हरियाणाः जूझते जुझारू लोग -32
ओमप्रकाश बहार – हर फन में माहिर, नाम नहीं, काम की चिंता करने वाला
सत्यपाल सिवाच
ओमप्रकाश बहार निवासी रतिया, जिला हिसार (अब फतेहाबाद) 1973 के ऐतिहासिक और मील का पत्थर साबित हुए अध्यापक आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे। 1969 में गठित हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने 1969 से 1984 तक हरियाणा राष्ट्रीय अध्यापक संघ के विभिन्न पदों पर कार्य किया तथा 1985 से सेवानिवृत्ति (1994) तक बिना किसी पद के अध्यापक संगठन के कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया। वे ऐसी शख्सियत रहे जिन्हें अपने नाम की नहीं, काम की चिंता होती थी।
जब पहली बार उनसे मिलन हुआ तो लगा ही नहीं कि वे बहुत बड़े (सीनियर) हैं। एक साथी – कामरेड तरह हमारे समय के शिक्षक आन्दोलन के मुद्दों और संगठन की स्थिति पर चर्चा करते रहे। अपने दौर के अनुभव बताते रहे तथा मुझे पता ही नहीं चला कि उन्होंने बातों-बातों में रिकॉर्ड रखने, मांग-मुद्दों की पृष्ठभूमि समझने, प्रशासन की ओर से उठने वाले सवालों और उन पर यूनियन पॉजिशन आदि दर्जनों टिप्स सहज ढंग से समझा दिए थे। निस्संदेह, मैं उनकी घंटे भर की संगति से लाभान्वित हुआ हूँ। बाद में जब भी रतिया जाता उनके पास बैठकर बातचीत जरूर करता और हर बार कोई नयी रोशनी थमा देते।
ओ.पी. बहार का जन्म 2 अप्रैल 1936 को रतिया में श्रीमती राम प्यारी एवं श्री हंसराज गर्ग के घर हुआ। इनके तीन भाई और दो बहनें थीं। भाइयों में ये सबसे ज्येष्ठ थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा रतिया से हुई तथा हाई स्कूल की परीक्षा 1953 में जिला बोर्ड टोहाना से उत्तीर्ण की, जो पंजाब यूनिवर्सिटी, सोलन (शिमला हिल्स) से संबद्ध था। इसके पश्चात् इन्होंने उर्दू ऑनर्स स्नातक अप्रैल 1957 में पंजाब यूनिवर्सिटी से उत्तीर्ण किया। दयानंद कॉलेज हिसार से इन्होंने 1958 में बी.टी. की उपाधि प्राप्त की। 1963 में एम.ए. (इतिहास) की परीक्षा दूरस्थ माध्यम से पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से उत्तीर्ण की। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण इन्होंने आत्मनिर्भर रहकर ही अपनी पूरी शिक्षा पूरी की। इसी दौरान 14 अगस्त 1957 को इनका विवाह श्रीमती दयावती से संपन्न हुआ। इनका ससुराल बीजंबायला (गंगानगर) में थी।
2 मई 1959 को इनकी नियुक्ति शिक्षा विभाग, पंजाब में तदर्थ आधार पर जमालपुर शेखां में सामाजिक विज्ञान अध्यापक के पद पर हुई, परंतु इस पद से इन्होंने जल्द ही त्यागपत्र दे दिया। 1961 से 1965 तक आर्य स्कूल रामामंडी, जिला बठिंडा में मुख्य अध्यापक के रूप में कार्य किया। तत्पश्चात् 1965 में सबऑर्डिनेट सर्विस सेलेक्शन बोर्ड, पंजाब द्वारा चयनित होकर 22 दिसंबर 1965 को रा.मा.वि. अलीका (तत्कालीन तहसील फतेहाबाद, जिला हिसार) में एस.एस. अध्यापक के पद पर कार्यग्रहण किया। 27 अक्तूबर 1993 को पदोन्नत होकर उच्च विद्यालय मुख्याध्यापक के पद पर रा. उच्च विद्यालय, रतिया में कार्यग्रहण किया और यहीं से 30 अप्रैल 1994 को सेवानिवृत्त हुए।
बहार साहब एक उच्च कोटि के लेखक, सहृदय पाठक, ओजस्वी वक्ता एवं मंच संचालक, विद्वान होने के साथ-साथ एक मंजे हुए रंगकर्मी थे। इन्होंने भगत सिंह, हकीकतराय आदि पर अनेक बार नाटकों का सफल निर्देशन किया। उन्होंने अपनी लेखनी से ‘बिखरी यादें’, ‘प्रायश्चित’ एवं प्रतीक्षा’ शीर्षक उपन्यास भी लिखे।
बहार साहब शिक्षा के प्रति समर्पित रहे। परिवार के भीतर भी और बाहर भी शिक्षा के प्रसार में तल्लीन रहे। वे प्रखर बुद्धि के साथ साथ अत्यन्त सरल ढंग से समझाने में दक्ष शिक्षक थे। इलाके में अंग्रेजी, उर्दू और इतिहास के शिक्षक के रूप में उन्होंने बड़ी पहचान बनाई। सैकड़ों विद्यार्थियों को उन्होंने बिना ट्यूशन के पढ़ाया। अपने छोटे बहन-भाइयों को भी पढ़ाया। उनमें से दो शिक्षक बने। अपने बच्चों को पोस्टग्रेजुएशन तक पढ़ाया। वे अध्यापन को पहला काम मानते थे।
जनहितैषी मानसिकता के चलते वे हमेशा से गलत नीतियों के विरोध में रहे। निर्भीकता उनमें जन्मजात गुण के रूप में समाहित थी। सत्ता की तानाशाही के आगे उन्होंने कभी समर्पण नहीं किया, बल्कि अग्रणी पंक्ति में रहकर डटकर सामना किया। इसी कारण 28 वर्षों के सेवाकाल में दर्जनों तबादले झेले और कुल छह जिलों – रेवाड़ी, जींद, कैथल, भिवानी, हिसार और फतेहाबाद में अपनी सेवाएँ दीं। 1973 के अध्यापक आंदोलन में रामलीला मैदान, दिल्ली में सफल मंच संचालन करते हुए आंदोलन को गतिमयता दी। संगठन में उन्होंने जिला हिसार के सचिव के पद पर कर्तव्य निर्वहन किया।
वे अक्सर कहते थे – “सर जिस दर पे न झुके, उसे दर नहीं कहते; हर दर पे जो झुक जाए, उसे सर नहीं कहते।” यही उनके जीवन का मूलमंत्र और सार रहा।
उनका देहांत 68 वर्ष की आयु में 6 अगस्त 2004 को हृदय गति रुक जाने से रतिया में हुआ। उनके परिवार में दो बेटे और दो बेटियाँ हैं। पिता इतने सृजनशील और जुझारू हैं तो बच्चों में भी उनके नैसर्गिक गुण आने ही थे। वर्षों हरियाणा में अध्यापक आन्दोलन के अग्रणी रहे और वर्तमान में स्कूल टीचर फेडरेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष सी.एन. भारती इनके बड़े बेटे हैं। छोटे बेटे जाने-माने एडवोकेट हैं और बेटी प्राचार्य रही हैं।(सौजन्य: ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक: सत्यपाल सिवाच।
