तर्कशील सोसायटी हरियाणा के अध्यक्ष सतीश बहादुर पांच साल पहले इस दुनिया से कूच कर गए। उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं, जीवटता और कर्मठता का उल्लेख गुरमीत अम्बाला एवं शीना ने अपने लेख में किया है। सतीश बहादुर को श्रद्धांजलि स्वरूप यहां हम आलेख प्रकाशित कर रहे हैं-
गुरमीत अम्बाला / शीना
पांच साल पहले 03 फरवरी 2020 को तर्कशील सोसायटी हरियाणा के प्रधान सतीश बहादुर जी हम सब से सदा के लिए बिछुड़ गए थे।
द्वंद्वात्मक भौतिकवादी (डायलेक्टिकल मैटेरियलिसटक), तर्कशील और क्रांतिकारी कॉमरेड सतीश बहादुर अब केवल हमारी यादों में रह गए हैं। सभी लोग उन्हें सिर्फ “कॉमरेड” कहकर संबोधित करते थे। उनकी पत्नी का निधन पाँच साल पहले हो चुका था, उसके बाद से वे अकेले ही रह रहे थे। उनके चार बच्चे थे, जिनमें से एक बेटे का 2019 में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।
हालाँकि उनकी आँखों की रोशनी कुछ कम हो गई थी, फिर भी 90 वर्ष की उम्र में वे स्कूटर चलाकर व्यस्त सड़कों पर सफर करते थे। उनका आत्मविश्वास और साहस अद्भुत था। वे किसी से भी न झिझकते थे, न ही किसी की उदारता स्वीकार करते थे। अन्याय देखकर तुरंत प्रतिक्रिया देना उनके स्वभाव की खासियत थी। आक्रामक स्वभाव के बावजूद उनका ह्यूमर और दोस्ती की भावना उन्हें सबका प्रिय बनाती थी। तर्कशील सोसायटी के बैनर तले उन्होंने विभन्न सामाजिक,धार्मिक कार्यक्रमो में होने वाले शोर प्रदूषण को लेकर बड़ा अभियान चलाया। जिस कारण बहुत से धर्मवादी उनके दुश्मन भी बन गए थे,लेकिन वे इस मुद्दे पर समझौता करने को तैयार न हुए। वे इस मुद्दे को लेकर डी. सी. और एस. पी.को लगातार मिलते रहते थे। इसी कारण एस. पी.ने एक नम्बर उन्हें दिया था कि अगर थाने में उनकी शिकायत नहीं सुनी जाती तो इन नम्बर पर डायरेक्ट कॉल कर सकते हैं।
जातिवाद के घोर विरोधी रहे कॉमरेड सतीश बहादुर ने उत्तर भारत में अपने उपनाम को दशकों पूर्व हटा दिया था।जिस कारण उनकी अलग पहचान बनी। जिससे वे अन्य वामपंथियों से अलग नजर आते थे। तबीयत ठीक न लगने पर वे खुद ऑटो लेकर अंबाला कैंट रेलवे अस्पताल गए और भर्ती हो गए और लगातर ट्रीटमेंट लेते रहे लेकिन 3 फरवरी 2020 को सुबह 11:00बजे उन्हें कार्डियक अरेस्ट हुआ और उनका निधन हो गया।
संघर्ष से भरा जीवन
उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे और पले-बढ़े कॉमरेड सतीश बहादुर मुगलसराय में सीपीआई (एम) और रेलवे ट्रेड यूनियन से जुड़े थे व जार्ज फर्नाडीज के साथ मिल कर रेलवे बोर्ड तक रेलवे की मांगों को उठाते रहे। 1974 की ऐतिहासिक रेलवे हड़ताल में भाग लेने के कारण उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। साथ ही मुगलसराय में उनकी लोकप्रियता से सरकार घबराई रहती थी। उन पर संघी नेता दीन दयाल उपाध्याय के मुगलसराय में कत्ल के बाद उन पर भी शक की बिना पर केस चलाया गया ,जिसमे वे निर्दोष साबित हुए।सी पी आई ने उन्हें इस क्षेत्र से लोकसभा की टिकट की सिफारिश की थी,लेकिन वे मजदूर आंदोलन में ही सक्रिय रह कर काम करते रहे। वे महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन से बेहद प्रभावित रहे उनकी सभी प्रसिद्ध पुस्तकों का उन्होंने अध्ययन किया जिस कारण बहुत बार बातचीत में वे राहुल सांस्कृत्यायन की कोटेशन दोहराते थे।
बाद में मधु दण्डवते के रेल मंत्री बनने पर उन्हें रेलवे में बहाली मिली ,लेकिन इस शर्त के साथ कि उन्हें दूर कहीं ट्रांसफर जाना होगा व मुगलसराय में आने पर संबंधित थाने को सूचना देनी होगी। उन्हें हरियाणा के कालका रेलवे वर्कशॉप में स्थानांतरित किया गया बाद में वे अंबाला में स्थानांतरित हुए व यहीं से रिटायर हुए।
कठिन परिस्थितियों के बावजूद वे आजीवन कम्युनिस्ट बने रहे। अंबाला में पार्टी की औपचारिक इकाई न होने के बावजूद, वे वामपंथी साथियों के साथ संगठित रूप से काम करते रहे। 1990 से वे तर्कशील सोसाइटी के हरियाणा अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर कई चर्चाएँ और सेमिनार आयोजित किए।
एक प्रेरणादायक विदाई
उनका घर तर्कशील,कम्युनिस्ट साथियों के विचार-विमर्श और राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र था। उनका गहरा मार्क्सवादी ज्ञान साथियों को प्रेरित करता था। ट्रेड यूनियन व बाद में तर्कशील सोसायटी के कार्यों के कारण उन्हें पूरे भारत में यात्रा करनी पड़ी, जिससे उनके बच्चे असंतुष्ट रहते थे। इसी कारण वह अपनी पत्नी के साथ जंडली कालोनी (अंबाला ) में अकेले रहने लगे।
एक सच्चे कामरेड व तर्कशील होने के कारण उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा के अनुसार अपने शरीर को चंडीगढ़ मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग को प्रदान कर दिया था उनकी अत्यधिक धार्मिक संतानें पहले उनकी माँ के शरीरदान के खिलाफ थीं, जिस कारण उनकी आंखें ही प्रदान की जा सकी। लेकिन कॉमरेड सतीश बहादुर के निधन पर अन्य कम्युनिस्ट व तर्कशील साथियों के दबाव के चलते व उनके मृतक शरीर को मैडीकल कालेज को सौंपने को तैयार हो गए थे,क्योकि उन्होंने लिखित में मृतक शरीर मैडीकल कालेज को प्रदान करने की विल की हुई थी बाद में परिवारिक सहमति के बाद उनके मृतक शरीर को छोटे बेटे व प्रपौत्र ने रेलवे अस्पताल से लेकर चंडीगढ़ मेडिकल कॉलेज को प्रदान कर दिया था। यह उनकी विचारधारा की सबसे बड़ी विजय थी।
निवास स्थान को सांस्कृतिक केंद्र बनाना
उन्होंने कई बार अपने निवास स्थान को वामपंथी एंव तर्जशील सांस्कृतिक केंद्र बनाने की इच्छा जताई थी, लेकिन जिसे पूरा नहीं किया जा सका ,जबकि वे वीडियो बना कर व लिखत रूप में अपनी विल बना गए थे लेकिन रजिस्टर्ड विल न बनने के कारण व परिवार द्वारा उनके मृत्यु वाले दिन ही उनके निवास पर कब्जा कर लिए जाने के कारण यह सम्भव न हो सका । जबकि उनके चाहने वाले बकायदा धन लगाकर उनकी याद को सदा के लिए जीवित रखना चाहते थे।
लेकिन उनके विचार, वैज्ञानिक सोच और क्रांतिकारी चेतना हमेशा जीवित उनके चाहने बालों के बीच जीवित रहेगी।